देश के इतिहास में जुड़े काले अध्याय के साये में गुजरे दिनों का मेरा अनुभव !
आज एक बार फिर 48 वर्ष पहले आपातकाल की यातनाओं/प्रताड़नाओं से भरे उस काले अध्याय की याद ताजा हो गयी जोकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में दर्ज है। देश में इसी दिन अकस्मात आपातकाल लागु किया गया था।
आजाद भारत में घटे इस काले अध्याय को दोहराने का मेरा मकसद यह है कि देश के युवा कर्णधारांे को यह पता चल सके की स्वतंत्र भारत में किस तरह से उनके परिवारों के बुजुर्गाें को अपनी देश की आजादी और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बिना किसी कसूर के यातनाओं और प्रताड़नाओं को जेलों में पड़े रहे कर सहना पड़ा था। निःसंदेह मेरे इन विचारों से देश के युवा कर्णधारांे को प्रेरणा मिलेगी और उनके अन्दर देश भक्ति, देश के प्रति समर्पण और बलिदान की भावना जागृत हो सकेगी तथा वे अपने परिवार के बुजुर्गाे के त्याग और तपस्या पर गर्व महसूस कर सकेंगे।
देश में आपातकाल घोषित होने के समय मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कर्मठ एवं सक्रिय प्रचारक था और हैदराबाद एवं निज़ामाबाद दो जिलों के जोनल प्रमुख का दायित्व निभा रहा था। पुरे देश में लगभग सभी लोगांे को गिरफ्तार किया जा रहा था। तभी हमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सभी कार्यकर्ताओं को श्री जय प्रकाश नारायण जी की लोक संघर्ष समिति के नेतृत्व में लोकतंत्र बचाव व रक्षा करने, लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए आंदोलन छेड़ने-संघर्ष जारी करने का निर्देश मिला। उस समय मैं सादा जीवन-उच्च विचार के सिद्धांतो के अनुरूप कुर्ता पजामा सादी वेश भूषा पहनना पसंद करता था।
परन्तु मुझे अपने फ़र्ज़ को निभाने के लिए भेस बदलकर भूमिगत होना पड़ा और अंग्रेजो जैसा पहनावा पैंट-शर्ट एवं टाई पहनने पड़े तथा अपने बालों को बड़ा करना पड़ा और मैंने अपना नाम बदल कर धर्मेंद्र रखा ताकि पुलिस मुझे पहचान न सके।
मैं भी अपने अन्य साथियों की तरह लोकतंत्र को बचाने, मौलिक अधिकारों की रक्षा करने देश के समाचार पत्रों पर लगी सेंसरशिप के बावजूद इश्तिहारों से लोगो में जागरूकता पैदा करने, चोरी छिपे आंदोलन व सत्याग्रह तथा सावधानी से सभी काम करने का दायित्व निभा रहा था।
मुझे उस दौरान की एक घटना याद है कि मुझे एक मीटिंग के लिए कामारेड्डी (जिला निज़ामाबाद) रामेश्वरपल्ली गांव के रामालय मन्दिर में शामिल होने के लिए बुलाया गया था, जिसमे 250-300 कार्यकर्त्ता शामिल हुए थे। वेंकटरमण रेड्डी जो पेशे से इंजीनियर थे ने शादी के बाद भगवान सत्यनारयण की पूजा का आयोजन किया था जहां मीटिंग के लिए अन्य सभी लोगो के साथ अपने एक साथी इंद्रसेन रेड्डी (बदला हुआ नाम जाहान था) जिसने अपने आप को छुपाने के लिए गले में ईसामसीह के क्रॉस का लॉकेट डाला हुआ था। मीटिंग के आयोजन के दौरान पहले ही उस पूजा कार्यक्रम में लुंगी पहन कर भगत के रूप में नाटक करते हुए एक गुप्तचर आकर बैठ गया जिसकी पूजा पर कम और हम सब की गतिविधियों पर ज्यादा नजर थी। बाद में वह भी हम सब 250-300 लोगो की मीटिंग में ऊपर आ गया हम सब उसके आते ही तुरंत इधर-उधर हो गए मुझे और इन्द्रसेन को 18 फुट ऊंची दीवार से कूदना पड़ा जिससे मेरा दायां पैर मुड़ गया और शरीर में सूजन आने के कारण चलना फिरना मुश्किल हो गया जीवन में में पहली बार कूदा था पुलिस से संघर्ष किया और 20-25 किलोमीटर पैदल चल कर जिला मुख्यालय केन्द्र मेढक आ गए।
इसी प्रकार मुझे उसी दौरान घटी दूसरी घटना याद है की मै और मेरा साथी श्रीधर जी वीरंागल जिले के संघ प्रचारक थे दोनों मिल कर बिलमपल्ली माइनिंग जोन जा रहे थे तभी पुलिस को पता लग गया और हमें गिरफ्तार कर के पुलिस स्टेशन ले गए जहां श्रीधर पूछताछ के दौरान 2-3 घन्टे बोले नहीं और फिर मान गए। इसलिए उन्हें मीसा के तहत जेल भेज दिया।
मैने उस दौरान अपना नाम धर्मेंद्र बताया था मुझे पुलिस स्टेशन में पूछताछ के दौरान काफी यातनाएं दी गयी अगले दिन पुलिस ने धमकी दी कि हमे मालूम है कि कैसे बुलवाना है तीसरे दिन हैडक्वाटर निज़ामाबाद जिले से मुरली कांस्टेबल को लाया गया उसने मुझे आते ही नमस्ते साहब! बोला इसलिए मुझे भी स्वीकार करने पर मीसा के तहत हैदराबाद सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। पूछताछ के दौरान पुलिस जानना चाहती थी कि इस आंदोलन को पैसा/वित्तीय सहायता कहा से और कैसे मिल रही है? आंदोलनकारियो का मुख्यालय कहां है? कम्युनिकेशन नेटवर्क क्या है? प्रिंटिंग प्रेस कहा है और प्रचार सामग्री कहा छपवाते है?
इस संबंध में मैने जब कुछ नहीं बताया तो उन्होंने मुझे हैदराबाद की चंचलगुडा सेंट्रल जेल में भेज दिया जहां पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री बंगारू लक्ष्मण, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री ए. नरेंद्र, आंध्र प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री नरसिम्हा रेड्डी, प्रसिद्ध कवि वरावरा राव, अनेको सांसद एवं विधायक, जमाते इस्लाम, कम्युनिस्ट पार्टी और नैक्सलाइट पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ के लीडर तथा विभिन्न विचार धाराओं के भी लोग थे। जब मैं जेल में था तब वहां पर आंदोलन के बारे में सभी मुद्दों पर, तमाम समस्याओं पर विचार विमर्श होते थे। जेल में मुझे विश्व के इतिहास, राजनीति तथा अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों साहित बहुत कुछ सिखने का मौका मिला।
जेल में हर हफ्ते मेरी माता जी स्वर्गीय श्रीमती ईश्वरम्मा आकर मुझसे मुलाकात करती थी और मुझे आशीर्वाद स्वरुप फूल देती थी तथा मेरी हिम्मत और हौसला बढाती थी। उसी दौरान मेरे बड़े भाई माणिक प्रभु की पीलिया के कारण मौत हो गयी। इस दौरान सरकार ने मुझे शोकाकुल समय के दौरान पुलिस एस्कॉर्ट पैरोल मे ले जाने-लाने की छूट प्रदान की और उसके बाद एक महीने की पैरोल भी दी।
इसी दौरान मेरे मामा जी ने मेरी माता जी पर दबाव डाला कि अब वो अकेली जीवन कैसे गुजारेगी, क्योंकि आपका एक लड़का मर गया और दूसरा जेल में बंद है इसलिए अगर वो किसी भी सरकार विरोधी गतिविधि में भाग न लेने के बारे में हलफनामा दे तो मैं अपने हैदराबाद के मेयर श्री लक्ष्मी नारायण व सिकंदराबाद के विधायक एल. नारायण से कहकर जेल से छुड़वा देता हूँ।
मेरी कम पढ़ी लिखी स्वर्गीय माता जी श्रीमती ईश्वरम्मा उस्मान गंज की मार्किट में पटड़ी पर बैठकर खेतो से प्याज लाकर बेचती थी और हमारा लालन पालन करती थी परंतु उन्होंने गरीब होने के बावजूद भी मेरे मामा जी के उक्त प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया उन्होंने यह सब बाते मुझे जेल में आकर बताई और उन्होंने कहा कि मैने तेरे मामा जी से कहा है की मेरे लड़के का क्या कसूर था, उसने कोई चोरी नहीं की और न किसी लड़की से छेड़छाड़ की। वो तो केवल समाज व देश के लिए कार्य करता है।
माँ के इन उच्च विचारों से मेरी हिम्मत और साहस को बढ़ावा मिला उनकी बातों को सुनकर जो पुलिस अफसर परेशान हो गया था उसने हाथ जोड़ कर मेरी माँ को सलाम किया। माता जी की इस बहादुरी से मुझे प्रेरणा मिली और मुझे और अधिक समर्पण एवं साहस की भावना के साथ अपना देश भक्ति का दायित्व निभाने का बल मिला। मुझे पूरा विश्वास है की मेरे इस अनुभव से देश और प्रदेश के युवाओं को प्रेरणा मिलेगी।
(लेखक हरियाणा के राज्यपाल हैं। व्यक्त विचार पूर्णतः उनके निजी हैं)