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    राज्यपाल की भूमिकांए और शक्ति

    अनुच्छेद 151(2). संपरीक्षा प्रतिवेदनः-

    1. भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के किसी राज्य के लेखाओं संबंधी प्रतिवेदनों को उस राज्य के राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो उनको राज्य के विधान मण्डल के समक्ष रखवाएगा।

    अनुच्छेद 153. राज्यों के राज्यपालः-

    प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त किये जाने से निवारित नहीं करेगी।

    अनुच्छेद 154. राज्य की कार्यपालिका शक्तिः-

    1. (1) राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
    2. (2) इस अनुच्छेद की कोई बात-
    1. (क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी को प्रदान किये गये कृत्य राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी, या
    2. (ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मण्डल को निवारित नहीं करेगी।

    अनुच्छेद 155. राज्यपाल की नियुक्तिः-

    • राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।

    अनुच्छेद 156. राज्यपाल की पदावधिः-

    1. (1) राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा ।
    2. (2) राज्यपाल, राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
    3. (3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्यपाल अपने पदग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। परन्तु राज्यपाल, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

    अनुच्छेद 157. राज्यपाल नियुक्त होने के लिए अर्हताएंः-

    कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है।

    अनुच्छेद 158. राज्यपाल पद के लिए शर्तेंः-

    1. (1) राज्यपाल संसद के किसी सदन का या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
    2. (2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।
    3. (3) राज्यपाल, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा ।
      1. (3क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहॉ उस राज्यपाल को संदेय उपलब्धियॉं और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आवण्टित किये जायेंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे ।
    4. (4) राज्यपाल की उपलब्धियॉं और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जायेंगे ।

    अनुच्छेद 159. राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञानः-

    • प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यक्ति, जो राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थातः
    • ‘‘मैं अमुक………. , ईश्वर की शपथ लेता हॅूं ध्सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हॅंू कि मैं श्रद्धापूर्वक ……………. (राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन) करूॅंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूॅंगा और मैं …………… (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहॅंूगा ।‘‘

    अनुच्छेद 160. कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहनः-

    राष्ट्रपति ऐसे किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबन्धित नहीं है, राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है ।

    अनुच्छेद 161. क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्तिः-

    किसी राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी ।

    अनुच्छेद 163. राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद्ः-

    1. (1) जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे, उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद् होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा ।
    2. (2) यदि कोई र्प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं, जिसके सम्बन्ध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंन्तिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गयी किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर र्प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं ।
    3. (3) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जॉंच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।

    अनुच्छेद 164. मंत्रियों के बारे में अन्य उपबन्धः-

    1. (1) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे । परन्तु (छत्तीसगढ़, झारखण्ड), मध्य प्रदेश और (उड़ीसा) राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक हो सकेगा ।
      1. (1क) किसी राज्य की मंत्रि-परिषद में, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी । परन्तु किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी । परन्तु यह और कि जहां संविधान (इक्यानबेवां संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारम्भ पर किसी राज्य की मंत्रि-परिषद में मुख्यमंत्री सहित की कुल संख्या, यथास्थिति, उक्त पन्द्रह प्रतिशत या पहले परन्तुक में विनिर्दिष्ट संख्या से अधिक है वहां उस राज्य मंत्रियों की कुल संख्या ऐसी तारीख से जो राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा नियत करे, छह मास के भीतर इस खण्ड के उपबन्धों के अनुरूप लाई जाएगी ।
      2. (1ख) किसी राजनीतिक दल का किसी राज्य की विधान सभा या किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का जिसमें विधान परिषद् हैं, कोई सदस्य जो दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित है, अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारम्भ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहां वह, ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व यथास्थिति, किसी राज्य की विधान सभा के लिए या विधान परिषद् वाले किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लड़ता है, उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, की अवधि के दौरान, खण्ड (1) के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए भी निरर्हित होगा ।
      3. (2) मंत्रि-परिषद राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी ।
      4. (3) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा ।
      5. (4) कोई मंत्री, जो निरन्तर छह मास की किसी अवधि तक राज्य के विधान मण्डल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा ।
      6. (5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो उस राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक उस राज्य का विधान-मण्डल इस प्रकार अवधारित नहीं करता है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विर्निदिष्ट हैं ।

      अनुच्छेद 165. राज्य का महाधिवक्ताः-

      1. (1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा ।
      2. (2) महाधिवक्ता का यह कर्त्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों ।
      3. (3) महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे।

      अनुच्छेद 166. राज्य की सरकार के कार्य का संचालनः-

      1. (1) किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राज्यपाल के नाम से की हुई कहीं जाएगी ।
      2. (2) राज्यपाल के नाम से किये गये और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखतों को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जाएगा जो राज्यपाल द्वारा बनाये जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर र्प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया या निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है ।
      3. (3) राज्यपाल, राज्य की सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिए और जहॉं तक वह कार्य ऐसा कार्य नहीं है जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे वहॉं तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा ।

      अनुच्छेद 167. राज्यपाल को जानकारी देने आदि के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री के कर्त्तव्यः-

      प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा कि वहः

      1. (क) राज्य के कार्यों के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं सम्बन्धी मंत्रि-परिषद् के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे ।
      2. (ख) राज्य के कार्यों के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं सम्बन्धी जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे और
      3. (ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे ।

      अनुच्छेद 168. राज्यों के विधान-मण्डलों का गठनः-

      1. (1) प्रत्येक राज्य के लिए एक विधान मण्डल होगा जो राज्यपाल औरः
        1. (क) बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश राज्यों में दो सदनों से
        2. (ख) अन्य राज्यों में एक सदन से, मिलकर बनेगा
      2. (2) जहॉं किसी राज्य के विधान-मण्डल के दो सदन हैं वहॉं एक का नाम विधान परिषद और दूसरे का नाम विधान सभा होगा और जहॉं केवल एक सदन है वहॉं उसका नाम विधान सभा होगा ।

      अनुच्छेद 171. विधान परिषदों की संरचनाः-

      (1) ..,(2) ..,(3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या काः ………

      1. (ड.) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खण्ड (5) के उपबन्धों के अनुसार नाम निर्देशित किये जाएंगे ।
      2. (5) राज्यपाल द्वारा खण्ड (3) के उपखण्ड (ड.) के अधीन नाम निर्देशित किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थातः साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा ।
      3. as nearly as may be, one-twelfth shall be elected by electorates consisting of persons who have been for at least three years engaged in teaching in such educational institutions within the State, not lower in standard than that of a secondary school, as may
        be prescribed by or under any law made by Parliament;
      4. as nearly as may be, one-third shall be elected by the members of the Legislative Assembly of the State from amongst persons who are not members of the Assembly;
      5. the remainder shall be nominated by the Governor in accordance with the provisions of clause (5).

      The members to be nominated by the Governor under sub-clause (e) of clause (3) shall consist of persons having special knowledge or practical experience in respect of such matters as the following, namely ; Literature, science, art, co-operative movement and social service.

      अनुच्छेद 174. राज्य के विधान-मण्डल के सत्र, सत्रावसान और विघटनः-

      1. (1) राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अन्तर नहीं होगा ।
      2. (2) राज्यपाल, समय-समय पर-
        1. (क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ।
        2. (ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा ।

      अनुच्छेद 175. सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकारः-

      1. (1) राज्यपाल, विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान-मंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा ।
      2. (2) राज्यपाल, राज्य के विधान-मण्डल में उस समय लम्बित किसी विधेयक के सम्बन्ध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा ।

      अनुच्छेद 176. राज्यपाल का विशेष अभिभाषणः-

      1. (1) राज्यपाल, विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मण्डल को उसके आह््वान के कारण बताएगा ।
      2. (2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उपबन्ध किया जाएगा ।

      अनुच्छेद 180. अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्तिः-

      1. (1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो विधान सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करें, उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा ।
      2. (2) विधान सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधान सभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा ।

      अनुच्छेद 184. सभापति के पद के कर्त्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप-सभापति या अन्य व्यक्ति की शक्तिः-

      1. जब सभापति का पद रिक्त है तब उपसभापति, या यदि उप सभापति का पद भी रिक्त है तो विधान परिषद का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा ।

      अनुच्छेद 187. राज्य के विधान-मण्डल का सचिवालयः-

      1. राज्य के विधान-मण्डल के सदन का या प्रत्येक सदन का पृथक सचिवीय कर्मचारिवृृन्द होगा । परन्तु विधान परिषद वाले राज्य के विधान मण्डल की दशा में, इस खण्ड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे विधान मण्डल के दोनों सदनों के लिए सम्मिलित पदों के सृजन को निवारित करती है ।
      2. (2) राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा, राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों के सचिवीय कर्मचारिवृन्द में भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेगा ।
      3. (3) जब तक राज्य का विधान-मण्डल खण्ड (2) के अधीन उपबंध नहीं करता है तब तक राज्यपाल, यथास्थिति, विधान सभा के अध्यक्ष या विधान परिषद के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् विधान सभा के या विधान परिषद के सचिवीय कर्मचारिवृन्द में भर्ती के और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए नियम उक्त खंड के अधीन बनाई गई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होेंगे ।

      अनुच्छेद 188. सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञानः-

      राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा ।

      अनुच्छेद 192. सदस्यों की निरर्हताओं से सम्बन्धित प्रश्नों पर विनिश्चयः-

      (1) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 191 के खण्ड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राज्यपाल को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चिय अन्तिम होगा ।

      1. (2) ऐसी किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा ।
      2. अनुच्छेद 199. धन विधेयक की परिभाषाः-

        1. इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से सम्बन्धित उपबन्ध हैं, अर्थात्ः

          1. (क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन
          2. (ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा राज्य द्वारा अपने ऊपर ली गयी या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से सम्बन्धित विधि का संशोधन
          3. (ग) राज्य की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना
          4. (घ) राज्य की संचित निधि में से धन का विनियोग
          5. (ड.) किसी व्यय को राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना
          6. (च) राज्य की संचित निधि या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन, या
          7. (छ) उपखण्ड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय
          8. (2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा, कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गयी सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबन्ध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबन्ध करता है ।

          9. (3) यदि यह प्रश्न उठता है कि विधान परिषद् वाले किसी राज्य के विधान-मण्डल में पुरःस्थापित कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर उस राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अन्तिम होगा ।
          10. (4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 198 के अधीन विधान परिषद् को पारेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 200 के अधीन अनुमति के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर विधान सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है ।

        अनुच्छेद 200. विधेयकों पर अनुमतिः-

        जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है। परन्तु राज्यपाल अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि सदन या दोनों सदन विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुरःस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन या दोनों सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति नहीं रोकेगा। परन्तु यह और कि जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि वह स्थान, जिसकी पूर्ति के लिए वह न्यायालय इस संविधान द्वारा परिकल्पित है संकटापन्न हो जाएगा, उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किन्तु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा।

        अनुच्छेद 201. विचार के लिए आरक्षित विधेयकः-

        जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है। परन्तु जहां विधेयक धन विधेयक नहीं है वहॉं राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह विधेयक को, यथास्थिति, राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों को ऐसे सन्देश के साथ, जो अनुच्छेद 200 के पहले परन्तुक में वर्णित हैं, लौटा दे और जब कोई विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब ऐसा संदेश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर सदन या सदनों द्वारा उस पर तदनुसार पुनर्विचार किया जाएगा और यदि वह सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा ।

        अनुच्छेद 202. वार्षिक वित्तीय विवरणः-

        1. (1) राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों के समक्ष उस राज्य की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में ‘‘वार्षिक वित्तीय विवरण‘‘ कहा गया है ।
        2. (2) वार्षिक वित्तीय विवरण में दिये हुए व्यय के प्राक्कलनों मेंः
          1. (क) इस संविधान में राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियॉं, और
          2. (ख) राज्य की संचित निधि में से किये जाने के लिए प्रस्थापित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियॉं,
            पृथक-पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगाः
        3. (3) निम्नलिखित व्यय प्रत्येक राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय होगा , अर्थात
          1. (क) राज्यपाल की उपलब्धियॉं और भत्ते तथा उसके पद से सम्बन्धित अन्य व्यय,
          2. (ख) विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा विधान परिषद वाले राज्य की दशा में विधान परिषद के सभापति और उपसभापति के भी वेतन और भत्ते
          3. (ग) ऐसे ऋण भार जिनका दायित्व राज्य पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से सम्बन्धित अन्य व्यय हैं
          4. (घ) किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतनों और भत्तों के सम्बन्ध में व्यय
          5. (ड.) किसी न्यायालय या माध्यमस्थम् अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियॉं
          6. (च) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या राज्य के विधान-मण्डल द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है।

        अनुच्छेद 203. विधान मण्डल में प्राक्कलनों के सम्बन्ध में प्रक्रियाः-

        1. (1) प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित हैं वे विधान सभा में मतदान के लिए नहीं रखे जाएंगे, किन्तु इस खण्ड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह विधान-मण्डल में उन प्राक्कलनों में से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है ।
        2. (2) उक्त प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से सम्बन्घित हैं वे विधान सभा के समक्ष अनुदानों की मांगों के रूप में रखे जाएंगे और विधान सभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति दे या अनुमति देने से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को कम करके, अनुमति दे ।
        3. (3) किसी अनुदान की मांग राज्यपाल की सिफारिश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं ।

        अनुच्छेद 205. अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदानः-

        1. (1) यदिः
          1. (क) अनुच्छेद 204 के उपबन्धों के अनुसार बनाई गयी किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गयी किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गयी है, या
          2. ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गयी रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है, तो राज्यपाल, यथास्थिति, राज्य के विधान मण्डल के सदन या सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या राज्य की विधान सभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा ।
        2. (2) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से सम्बन्धित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के सम्बन्ध में भी, अनुच्छेद 202, अनुच्छेद 203, और अनुच्छेद 204 के उपबन्ध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय के संबंध में या किसी अनुदान की किसी मांग के सम्बन्ध में और राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के सम्बन्ध में प्रभावी हैं ।

        अनुच्छेद 207. वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबन्धः-

        1. (1) अनुच्छेद 199 के खण्ड (1) के उपखण्ड (क) से उपखण्ड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबन्ध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबन्ध करने वाला विधेयक विधान परिषद में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा । परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबन्ध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खण्ड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी।
        2. (2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी विषय के लिए उपबन्ध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गयी सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबन्ध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबन्ध करता है ।
        3. (3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किये जाने पर राज्य की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राज्यपाल ने सिफारिश नहीं की है ।

        अनुच्छेद 208. प्रक्रिया के नियमः-

        (3) राज्यपाल, विधान परिषद वाले राज्य में विधान सभा के अध्यक्ष और विधान परिषद के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् दोनों सदनों में परस्पर संचार से सम्बन्धित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा ।

        अनुच्छेद 213. विधान मण्डल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्तिः-

        1. (1) उस समय को छोड़कर जब किसी राज्य की विधान सभा सत्र में है या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियॉं विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्यवाही करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों, परन्तु राज्यपाल, राष्ट्रपति के अनुदेशों के बिना, कोई ऐसा अध्यादेश प्रख्यापित नहीं करेगा, यदि

          1. (क) वैसे ही उपबन्ध अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को विधान-मण्डल में पुरःस्थापित किये जाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी की अपेक्षा इस संविधान के अधीन होती, या
          2. (ख) वह वैसे ही उपबन्ध अन्तर्विष्ट करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना आवश्यक समझता, या
        2. (ग) वैसे ही उपबन्ध अंन्तर्विष्ट करने वाले राज्य के विधान मण्डल का अधिनियम इस संविधान के अधीन तब तक अविधिमान्य होता जब तक राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त नहीं हो गयी होती ।
          1. (2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वहीं बल और प्रभाव होगा जो राज्य के विधान मण्डल के ऐसे अधिनियम का होता है जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश-
          2. (क) राज्य की विधान सभा के समक्ष और विधान परिषद वाले राज्य में दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा तथा विधान मण्डल के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले विधान सभा उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देती है और यदि विधान परिषद है तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथास्थिति, संकल्प के पारित होने पर या विधान परिषद द्वारा संकल्प से सहमत होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा, और.
        3. (ख) राज्यपाल द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा ।
          स्पष्टीकरणः जहां विधान परिषद वाले राज्य के विधान मण्डल के सदन, भिन्न-भिन्न तारीखों को पुनः समवेत होने के लिए, आहूत किये जाते हैं वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चातवर्ती तारीख से की जाएगी ।
        4. (3) यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबन्ध करता है जो राज्य के विधान मण्डल के ऐसे अधिनियम में, जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है, अधिनियमित किये जाने पर विधिमान्य नहीं होता तो और वहॉं तक वह अध्यादेश शून्य होगा ।
          परन्तु राज्य के विधान मण्डल के ऐसे अधिनियम के, जो समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के बारे में संसद के किसी अधिनियम या किसी विद्यमान विधि के विरुद्ध हैं, प्रभाव से सम्बन्धित इस संविधान के उपबन्धों के प्रयोजनों के लिए यह है कि कोई अध्यादेश, जो राष्ट्रपति के अनुदेशों के अनुसरण में इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित किया जाता है, राज्य के विधान मण्डल का ऐसा अधिनियम समझा जाएगा जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया था और जिसे उसने अनुमति दे दी है ।

        अनुच्छेद 217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तेंः-

        1. (1) (अनुच्छेद 124-क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की सिफारिश पर) राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबन्धित रूप में पद धारण करेगा और किसी अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता हैः
          परन्तु –

          1. (क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा
          2. (ख) किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद 124 के खण्ड (4) में उपबन्धित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा ।
        2. (ग) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्य क्षेत्र में किसी अन्य उच्च न्यायालय को अंतरित किये जाने पर रिक्त हो जाएगा ।

        (2) कोई व्यक्ति, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और-

        1. (क) भारत के राज्य क्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका है, या
        2. (ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा हैः
        3. स्पष्टीकरणः इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए –

        4. (क) भारत के राज्य क्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान कोई व्यक्ति न्यायिक पद धारण करने के पश्चात किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है
        5. (कक) किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित हैः
        6. (ख) भारत के राज्य क्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारम्भ से पहले की वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने, यथास्थिति, ऐसे क्षेत्र में जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, न्यायिक पद धारण किया है या वह ऐसे किसी क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है ।
        7. (3) यदि उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई र्प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का विनिश्चय भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, राष्ट्रपति द्वारा दिया जायेगा और राष्ट्रपति का विनिश्चय अंतिम होगा ।

      अनुच्छेद 219. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञानः-

      उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने से पहले, उस राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा ।

      अनुच्छेद 227. सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्तिः-

      1. (1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके सम्बन्ध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा ।
      2. (2) पूर्वगामी उपबन्ध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालयः
        1. क) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा
        2. (ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण नियम और प्ररूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा, और
        3. (ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों,
          प्रविष्टियों और लेखाओं के प्ररूप विहित कर सकेगा ।
      3. (3) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियॉं भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यवसाय करने वाले अटार्नियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होगी । परन्तु खण्ड (2) या खण्ड (3) के अधीन बनाये गये कोई नियम, विहित किये गये कोई प्ररूप या स्थिर की गयी कोई सारणी तत्समय प्रवृत किसी विधि के उपबन्ध से असंगत नहीं होगी और इनके लिए राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी ।

      अनुच्छेद 229. उच्च न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्ययः-

      (1) किसी उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियॉं उस न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निर्दिष्ट करे । परन्तु उस राज्य का राज्यपाल नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं दशाओं में जो नियम में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं हैं, न्यायालय से सम्बन्धित किसी पद पर राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श करके ही नियुक्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
      (2) राज्य के विधान मण्डल द्वारा बनाई गयी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो उस न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा, जिसे मुख्य न्यायमूर्ति ने इस प्रयोजन के लिए नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया है, बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं । परन्तु इस खण्ड के अधीन बनाए गये नियमों के लिए, जहां तक वे वेतनों, भत्तों, छुट्टी या पेंशनों से सम्बन्धित हैं, उस राज्य के राज्यपाल के अनुमोदन की अपेक्षा होगी ।

      अनुच्छेद 230. उच्च न्यायालयों की अधिकारिता पर संघ का राज्यक्षेत्रों पर विस्तारः-

      1. 2(ख) उस राज्यक्षेत्र में अधीनस्थ न्यायालयों के लिए किन्हीं नियमों, प्ररूपों या सारणियों के संबंध में, अनुच्छेद 227 में राज्यपाल के प्रति निर्देश का, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह राष्ट्रपति के प्रति निर्देश है ।
      2. अनुच्छेद 231. दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापनाः-

        1. (2) किसी ऐसे उच्च न्यायालय के सम्बन्ध मेंः
        2. (ख) अधीनस्थ न्यायालयों के लिए किन्हीं नियमों, प्ररूपों या सारणियों के सम्बन्ध में, अनुच्छेद 227 में राज्यपाल के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं जिसमें वे अधीनस्थ न्यायालय स्थित है, और
        3. (ग) अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश हैं, जिसमें उस उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है। परन्तु यदि ऐसा मुख्य स्थान किसी संघ राज्यक्षेत्र में है तो अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के, राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, विधान मण्डल और संचित निधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमशः राष्ट्रपति, संघ लोक सेवा आयोग, संसद और भारत की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं ।

        अनुच्छेद 233. जिला न्यायाधीशों की नियुक्तिः-

        1. (1) किसी राज्य में जिला न्यायाधीश नियुक्त होने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति तथा जिला न्यायाधीश की पदस्थापना और प्रोन्नति उस राज्य का राज्यपाल ऐसे राज्य के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करके करेगा ।
        2. (2) वह व्यक्ति, जो ंसंघ की या राज्य की सेवा में पहले से ही नहीं है, जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता या प्लीडर रहा है और उसकी नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय ने सिफारिश की है ।

        अनुच्छेद 234. न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की भर्तीः-

        जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की किसी राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्ति उस राज्य के राज्यपाल द्वारा, राज्य लोक सेवा आयोग से और ऐसे राज्य के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात् और राज्यपाल द्वारा इस निमित्त बनाये गये नियमों के अनुसार की जाएगी।

        अनुच्छेद 237. कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर इस अध्याय के उपबन्धों का लागू होनाः-

        राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगा कि इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्ध और उनके अधीन बनाए गए नियम ऐसी तारीख से, जो वह इस निमित्त नियत करे, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, राज्य में किसी वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्त व्यक्तियों के सम्बन्ध में लागू होते हैं ।

        अनुच्छेद 243(छ).

        ‘‘ग्राम‘‘ से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट ग्रामों का समूह भी है ।

        अनुच्छेद 243झ. वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठनः-

        (1) राज्य का राज्यपाल, संविधान (तिहत्तरवॉं संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारम्भ से एक वर्ष के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात् प्रत्येक पॉंचवे वर्ष की समाप्ति पर, वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा और जो (ग) पंचायतों के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किये गये किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा ।

        (4) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गयी प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गयी कार्यवाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित, राज्य के विधान मण्डल के समक्ष रखवाएगा ।

        अनुच्छेद 243ट. पंचायतों के लिए निर्वाचनः-

        1. (1) पंचायतों के लिए कराये जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।
        2. (2) किसी राज्य के विधान मण्डल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होगी जो राज्यपाल नियम द्वारा अवधारित करे।

        अनुच्छेद 243ठ. संघ राज्यक्षेत्रों का लागू होनाः-

        इस भाग के उपबन्ध संघ राज्यक्षेत्रों पर लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानों किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान-मण्डल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों ।

        अनुच्छेद 243त(ग).

        ‘‘महानगर क्षेत्र‘‘ से दस लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाला ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसमें एक या अधिक जिला समाविष्ट हैं और जो दो या अधिक नगरपालिकाओं या पंचायतों या अन्य संलग्न क्षेत्रों से मिलकर बनता है तथा जिसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, महानगर क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट करें ।

        अनुच्छेद 243त(घ).

        ‘‘नगरपालिका क्षेत्र‘‘ से राज्यपाल द्वारा अधिसूचित किसी नगरपालिका का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है।

        अनुच्छेद 243थ. नगरपालिकाओं का गठनः-

        1. 1) प्रत्येक राज्य में, इस भाग के उपबन्धों के अनुसार-
          1. (क) किसी संक्रमणशील क्षेत्र के लिए, अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में संक्रमणगत क्षेत्र के लिए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो )
          2. (ख) किसी लघुतर नगरीय क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद का और
          3. (ग) किसी वृहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम का, गठन किया जाएगा । परन्तु इस खण्ड के अधीन कोई नगरपालिका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके किसी भाग में गठित नहीं की जा सकेगी जिसे राज्यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्योगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिए जाने के लिए प्रस्तावित नगरपालिका सेवाओं और ऐसी अन्य बातों के, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट करे।
        2. (2) इस अनुच्छेद में, ‘‘संक्रमणशील क्षेत्र‘‘, ‘‘लघुतर नगरीय क्षेत्र‘‘ या ‘‘बृहत्तर नगरीय क्षेत्र‘‘ से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसमें जनसंख्या की सघनता, स्थानीय प्रशासन के लिए उत्पन्न राजस्व, कृषि से भिन्न क्रियाकलापों में नियोजन की प्रतिशतता, आर्थिक महत्व या ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।

        अनुच्छेद 243म. वित्त आयोगः-

        1. (1) अनुच्छेद 243झ के अधीन गठित वित्त आयोग नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का भी पुनर्विलोकन करेगा और …….
        2. (2) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गयी प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गयी कार्यवाही के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित, राज्य के विधान-मण्डल के समक्ष रखवाएगा ।

        अनुच्छेद 243यख. संघ राज्यक्षेत्रों का लागू होनाः-

        इस भाग के उपबन्ध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानों किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान मण्डल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों।

        अनुच्छेद 243य(घ). जिला योजना के लिए समितिः-

        (3) प्रत्येक जिला योजना समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में-(क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी, अर्थात

        1. (प) पंचायतों और नगरपालिकाओं के सामान्य हित के विषय, जिनके अंतर्गत स्थानिक योजना, जल तथा अन्य भौतिक और प्राकृतिक संसाधनों में हिस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत विकास और पर्यावरण संरक्षण है,
          1. (पप) उपलब्ध वित्तीय या अन्य संसाधनों की मात्रा और प्रकार
          2. (ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें राज्यपाल, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।

        अनुच्छेद 255. सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय माननाः-

        यदि संसद के या किसी राज्य के विधान मण्डल के किसी अधिनियम को-

        1. (क) जहॉं राज्यपाल की सिफारिश अपेक्षित थी वहॉं राज्यपाल या राष्ट्रपति ने,
        2. (ख) जहां राजप्रमुख की सिफारिश अपेक्षित थी वहॉं राज्यप्रमुख या राष्ट्रपति ने
        3. (ग) जहां राष्ट्रपति की सिफारिश अपेक्षित थी वहॉं राष्ट्रपति ने, अनुमति दे दी है तो ऐसा अधिनियम और ऐसे अधिनियम का कोई उपबन्ध केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिफारिश नहीं की गयी थी या पूर्व मंजूरी नहीं दी गयी थी ।

        अनुच्छेद 258क. संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्तिः-

        इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमति से उस सरकार को या उसके अधिकारियों को ऐसे किसी विषय से सम्बन्धित कृत्य, जिन पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा ।

        अनुच्छेद 267. आकस्मिकता निधिः-

        (2) राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ‘‘राज्य की आकस्मिकता निधि‘‘ के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियॉं समय-समय पर जमा की जाएंगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान मण्डल द्वारा, विधि द्वारा प्राधिकृत किया जाना लम्बित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल के व्ययनाधीन रखी जाएगी ।

        अनुच्छेद 294. कुछ दशाओं में सम्पत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकारः-

        इस संविधान के प्रारम्भ से ही-—

        1. (क) जो संपत्ति और आस्तियॉं ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं और जो सम्पत्ति और आस्तियॉं ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रान्त की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं, वे सभी इस संविधान के प्रारम्भ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रान्तों के सृजन के कारण किये गये या किये जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में निहत होंगी, और
        2. (ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं भारत डोमिनियन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रान्त की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, वे सभी इस संविधान के प्रारम्भ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रान्तों के सृजन के कारण किये गये या किये जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं होंगी ।

        अनुच्छेद 299. संविदाएंः-

        1. (1) संघ की या राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए की गयी सभी संविदाएं, यथास्थिति, राष्ट्रपति द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल द्वारा की गयी कही जाएंगी और वे सभी संविदाएं और सम्पत्ति संबंधी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्ति का प्रयोग करते हुए किए जाएं, राष्ट्रपति या राज्यपाल की ओर से ऐसे व्यक्तियों द्वारा और रीति से निष्पादित किए जाएंगे जिसे वह निर्दिष्ट या प्राधिकृत करे ।
        2. (2) राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल इस संविधान के प्रयोजनों के लिए या भारत सरकार के संबंध में इससे पूर्व प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के प्रयोजनों के लिए की गयी या निष्पादित की गयी किसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र के सम्बन्ध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र करने या निष्पादित करने वाला व्यक्ति उसके संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा ।

        अनुच्छेद 309. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तेंः-

        इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, समुचित विधान-मण्डल के अधिनियम संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित लोक सेवाओं और पदों के लिए भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेंगे । परन्तु जब तक इस अनुच्छेद के अधीन समुचित विधान-मण्डल के अधिनियम द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त उपबंध नहीं किया जाता है, तब तक, यथास्थिति, संघ के कार्य कलाप से संबंधित सेवाओं और पदों की दशा में राष्ट्रपति या ऐसा व्यक्ति जिसे वह निर्दिष्ट करे और राज्य के कार्य कलाप से संबंधित सेवाओं और पदों की दशा में राज्य का राज्यपाल या ऐसा व्यक्ति जिसे वह निर्दिष्ट करे, ऐसी सेवाओं और पदों के लिए भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाले नियम बनाने के लिए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए नियम किसी ऐसे अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे ।

        अनुच्छेद 310. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधिः-

        1. (1) इस संविधान द्वारा अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है ।
        2. (2) इस बात के होते हुए भी संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है, कोई संविदा जिसके अधीन कोई व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या अखिल भारतीय सेवा के या संघ या राज्य की सिविल सेवा के सदस्य नहीं हैं, ऐसे किसी पद को धारण करने के लिए इस संविधान के अधीन नियुक्त किया जाता है, उस दशा में, जिसमें, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति की सेवाएं प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझता है, यह उपबंध कर सकेगी कि यदि करार की गई अवधि की समाप्ति से पहले वह पद समाप्त कर दिया जाता है या ऐसे कारणों से, जो उसके किसी अवचार से संबंधित नहीं है, उससे वह पद रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रतिकर किया जाएगा ।

        अनुच्छेद 311. संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना, पद से हटाया जाना या पंक्ति में अवनत किया जानाः-

        (2) यथापूर्वोक्त, किसी व्यक्ति को, ऐसी जॉंच के पश्चात ही, जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दे दी गयी है और उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दे दिया गया है, पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या पंक्ति में अवनत किया जाएगा, अन्यथा नहीं । परन्तु जहां ऐसी जांच के पश्चात उस पर ऐसी कोई शास्ति अधिरोपित करने की प्रस्थापना है वहां ऐसी शास्ति ऐसी जांच के दौरान दिये गये साक्ष्य के आधार पर अधिरोपित की जा सकेगी और ऐसे व्यक्ति को प्रस्थापित शास्ति के विषय में अभ्यावेदन करने का अवसर देना आवश्यक नहीं होगा । परन्तु यह और कि यह खंड वहां लागू नहीं होगा,

      3. (ग) जहां, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में यह समीचीन नहीं है कि ऐसी जॉंच की जाए।
      4. (3) यदि यथापूर्वोक्त किसी व्यक्ति के संबंध में यह प्रश्न उठता है कि खंड (2) में निर्दिष्ट जांच करना युक्तियुक्त रूप से साध्य है या नहीं तो उस व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति में अवनत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी का उस पर विनिश्चय अंतिम होगा ।

        अनुच्छेद 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोगः-

        (4) यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से, उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा ।

        अनुच्छेद 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधिः-

        1. (1) लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी ।
          1. (1क) यदि आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्यक्षता अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो, यथास्थिति, जब तक रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नही संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से ऐसा एक सदस्य, जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उन कर्त्तव्यों का पालन करेगा ।
        2. (2) लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में बासठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक, इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा,
          परन्तुः

          1. (क) लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ।

        अनुच्छेद 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलम्बित किया जानाः-

        (2) आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को, जिसके संबंध में खण्ड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय का प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित नही कर देता है ।

        अनुच्छेद 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृन्द की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्तिः-

        संघआयोगयासंयुक्तआयोगकीदशामेंराष्ट्रपतिऔरराज्यआयोगकीदशामेंउसराज्यकाराज्यपालविनियमोंद्वाराः

        1. आयोगकेसदस्योंकीसंख्याऔरउनकीसेवाकीशर्तोंकाअवधारणकरसकेगा, और
        2. आयोगकेकर्मचारिवृन्दकेसदस्योंकीसंख्याऔरउनकीसेवाकीशर्तोंकेसम्बन्धमेंउपबंधकरसकेगा। परन्तुलोकसेवाआयोगकेसदस्यकीसेवाकीशर्तोंमेंउसकीनियुक्तिकेपश्चातउसकेलिएअलाभकारीपरिवर्तननहींकियाजाएगा।

        अनुच्छेद 320. लोकसेवाआयोगोंकेकृत्यः-

        भारतसरकारयाकिसीराज्यकीसरकारयाभारतमेंक्राउनकेअधीनयाकिसीदेशीराज्यकीसरकारकेअधीनसिविलहैसियतमेंसेवाकरतेसमयकिसीव्यक्तिकोहुईक्षतियोंकेबारेमेंपेंशनअधिनिर्णीतकियेजानेकेलिएकिसीदावेपरऔरऐसेअधिनिर्णयकीरकमविषयकप्रश्नपर, —

        1. परामर्शकियाजाएगाऔरइसप्रकारउसेनिर्देशितकियेगयेकिसीविषयपरतथाऐसेकिसीअन्यविषयपर, जिसे, यथास्थिति, राष्ट्रपतियाउसराज्यकाराज्यपालउसेनिर्देशितकरें
        2. परामर्शदेनेकालोकसेवाआयेागकाकर्तव्यहोगा।परन्तुअखिलभारतीयसेवाओंकेसंबंधमेंतथासंघकेकार्यकलापसेसंबंधितअन्यसेवाओंऔरपदोंकेसंबंधमेंतथासंघकेकार्यकलापसेसंबंधितअन्यसेवाओंऔरपदोंकेसंबंधमेंभीराष्ट्रपतितथाराज्यके
        3. कार्यकलापसेसंबंधितअन्यसेवाओंऔरपदोंकेसंबंधमेंराज्यपालउनविषयोंकोविनिर्दिष्टकरनेवालेविनियमबनासकेगाजिनमेंसाधारणतयायाकिसीविशिष्टवर्गकेमामलेमेंयाकिन्हींविशिष्टपरिस्थितियोंमेंलोकसेवाआयोगसेपरामर्शकियाजानाआवश्यकनहींहोगा।
        4. राष्ट्रपतियाकिसीराज्यकेराज्यपालद्वाराखंड (3) केपरंतुककेअधीनबनाएगएसभीविनियम, बनायेजानेकेपश्चात्यथाशीघ्र, यथास्थिति,

        संसदकेप्रत्येकसदनयाराज्यकेविधानमण्डलकेसदनयाप्रत्येकसदनकेसमक्षकमसेकमचौदहदिनकेलिएरखेजाएंगेऔरनिरसनयासंशोधनद्वाराकियेगऐऐसेउपांतरणोंकेअधीनहोंगेजोसंसदकेदोनोंसदनयाउसराज्यकेविधानमण्डलकासदनयादोनोंसदनउससत्रमेंकरेंजिसमेंवेइसप्रकाररखेगयेहैं।

        अनुच्छेद 323. लोकसेवाआयोगोंकेप्रतिवेदनः-

        राज्यआयोगकायहकर्तव्यहोगाकिवहराज्यकेराज्यपालकोआयोगद्वाराकिएगएकार्यकेबारेमेंप्रतिवर्षप्रतिवेदनदेऔरसंयुक्तआयोगकायहकर्तव्यहोगाकिऐसेराज्योंमेंसेप्रत्येकके, जिनकीआवश्यकताओंकीपूर्तिसंयुक्तआयोगद्वाराकीजातीहै, राज्यपालकोउसराज्यकेसंबंधमेंआयोगद्वाराकियेगयेकार्यकेबारेमेंप्रतिवर्षप्रतिवेदनदेंऔरदोनोंमेंसेप्रत्येकदशामेंऐसाप्रतिवेदनप्राप्तहोनेपर, राज्यपालउनमामलोंकेसंबंधमें, यदिकोईहों, जिनमेंआयोगकीसलाहस्वीकारनहींकीगयीथी, ऐसीअस्वीकृतिकेकारणोंकोस्पष्टकरनेवालेज्ञापनसहितउसप्रतिवेदनकीप्रतिराज्यकेविधानमण्डलकेसमक्षरखवाएगा।

        अनुच्छेद 324. निर्वाचनोंकेअधीक्षण, निदेशनऔरनियंत्रणकानिर्वाचनआयोगमेंनिहितहोनाः-

        जबनिर्वाचनआयोगऐसाअनुरोधकरेतबराष्ट्रपतियाकिसीराज्यकाराज्यपालनिर्वाचनआयोगयाप्रादेशिकआयुक्तकोउतनेकर्मचारिवृन्दउपलब्धकराएगाजितनेखंड (1) द्वारानिर्वाचनआयोगकोसौंपेगयेकृत्योंकेनिर्वहनकेलिएआवश्यकहों।

        अनुच्छेद 333. राज्योंकीविधानसभाओंमेंआंग्ल-भारतीयसमुदायकाप्रतिनिधित्वः-

        अनुच्छेद 170 मेंकिसीबातकेहोतेहुएभी, यदिकिसीराज्यकेराज्यपालकीयहरायहैकिउसराज्यकीविधानसभामेंआंग्ल-भारतीयसमुदायकाप्रतिनिधित्वआवश्यकहैऔरउसमेंउसकाप्रतिनिधित्वपर्याप्तनहींहैतोवहउसविधानसभामेंउससमुदायकाएकसदस्यनामनिर्देशितकरसकेगा।

        अनुच्छेद 338. राष्ट्रीयअनुसूचितजातिआयोगः-

        जहांकोईऐसाप्रतिवेदन, याउसकाकेाईभागकिसीऐसेविषयसेसंबंधितहैजिसकाकिसीराज्यसरकारसेसंबंधहैतोऐसेप्रतिवेदनकीएकप्रतिउसराज्यकेराज्यपालकोभेजीजाएगीजोउसेराज्यकेविधानमण्डलकेसमक्षरखवाएगाऔरउसकेसाथराज्यसेसंबंधितसिफारिशोंपरकीगयीयाकियेजानेकेलिएप्रस्थापितकार्रवाहीतथायदिकोईऐसीसिफारिशअस्वीकृतकीगयीहैतोअस्वीकृतिकेकारणोंकोस्पष्टकरनेवालाज्ञापनभीहोगा।

        अनुच्छेद 338क. राष्ट्रीयअनुसूचितजनजातिआयोगः-

        जहांकोईऐसीरिपोर्टयाउसकाकेाईभाग, किसीऐसेविषयसेसंबंधितहैजिसकाकिसीराज्यसरकारसेसंबंधहैतोऐसीरिपोर्टकीएकप्रतिउसराज्यकेराज्यपालकोभेजीजाएगीजोउसेराज्यकेविधानमण्डलकेसमक्षरखवाएगाऔरउसकेसाथराज्यसेसंबंधितसिफारिशोंपरकीगयीयाकिएजानेकेलिएप्रस्थापितकार्यवाहीतथायदिकोईऐसीसिफारिशअस्वीकृतकीगयीहैतोअस्वीकृतिकेकारणोंकोस्पष्टकरनेवालाज्ञापनभीहोगा।

        अनुच्छेद 341. अनुसूचितजातियाँः-

        1. राष्ट्रपति, किसीराज्ययासंघराज्यक्षेत्रकेसंबंधमेंऔरजहांवहराज्यहैवहांउसकेराज्यपालसेपरामर्शकरनेकेपश्चातलोकअधिसूचनाद्वारा, उनजातियों, मूलवंशोंयाजनजातियों, अथवाजातियों, मूलवंशोंयाजनजातियोंकेभागोंयाउनमेंकेयूथोंकोविनिर्दिष्टकरसकेगा, जिन्हेंइससंविधानकेप्रयोजनोंकेलिए, यथास्थितिउसराज्ययासंघराज्यक्षेत्रकेसंबंधमेंअनुसूचितजातियॉंसमझाजाएगा।

        अनुच्छेद 342. अनुसूचितजनजातियाँः-

        1. राष्ट्रपति, किसीराज्ययासंघराज्यक्षेत्रकेसंबंधमेंऔरजहांवहराज्यहैवहांउसकेराज्यपालसेपरामर्शकरनेकेपश्चातलोकअधिसूचनाद्वारा, उनजनजातियोंयाजनजातिसमुदायोंअथवाजनजातियोंयाजनजातिसमुदायोंकेभागोंयाउनमेंकेयूथोंकोविनिर्दिष्टकरसकेगा, जिन्हेंइससंविधानकेप्रयोजनोंकेलिए, यथास्थितिउसराज्ययासंघराज्यक्षेत्रकेसंबंधमेंअनुसूचितजनजातियॉंसमझाजाएगा।

        अनुच्छेद 348. उच्चतमन्यायालयऔरउच्चन्यायालयोंमेंऔरअधिनियमों, विधेयकोंआदिकेलिएप्रयोगकीजानेवालीभाषाः-

        1. इसभागकेपूर्वगामीउपबंधोंमेंकिसीबातकेहोतेहुएभी, जबतकसंसदविधिद्वाराअन्यथाउपबंधनकरेतबतक –

          उच्चतमन्यायायलयऔरप्रत्येकउच्चन्यायालयमेंसभीकार्यवाहियॉंअंग्रेजीभाषामेंहोंगी।

          1. संसदकेप्रत्येकसदनयाकिसीराज्यकेविधान-मण्डलकेसदनयाप्रत्येकसदनमेंपुरःस्थापितकियेजानेवालेसभीविधेयकोंयाप्रस्तावितकियेजानेवालेउनकेसंशोधनके
          2. संसदयाकिसीराज्यकेविधान-मण्डलद्वारापारितसभीअधिनियमोंकेऔरराष्ट्रपतियाकिसीराज्यकेराज्यपालद्वाराप्रख्यापितअध्यादेशोंके, और
          3. इससंविधानकेअधीनअथवासंसदयाकिसीराज्यकेविधान-मण्डलद्वाराबनाईगयीकिसीविधिकेअधीननिकालेगयेयाबनाएगयेसभीआदेशों, नियमों, विनियमोंऔरउपविधियोंके,
            प्राधिकृतपाठअंग्रेजीभाषामेंहोंगे।
        2. खण्ड (1) केउपखण्ड (क) मेंकिसीबातकेहोतेहुएभी, किसीराज्यकाराज्यपालराष्ट्रपतिकीपूर्वसहमतिसेउसउच्चन्यायालयकाकार्यवाहियोंमें, जिसकामुख्यस्थानउसराज्यमेंहै, हिन्दीभाषाकायाउसराज्यकेशासकीयप्रयोजनोंकेलिएप्रयोगहोनेवालीकिसीअन्यभाषाकाप्रयोगप्राधिकृतकरसकेगा।परन्तुइसखण्डकीकोईबातऐसेउच्चन्यायालयद्वारादियेगयेकिसीनिर्णय, डिक्रीयाआदेशकोलागूनहींहोगी।
        3. खण्ड (1) केउपखण्ड (ख) मेंकिसीबातकेहोतेहुएभी, जहांकिसीराज्यकेविधान-मण्डलने, उसविधानमण्डलमेंपुरःस्थापितविधेयकोंमेंयाउसकेद्वारापारितअधिनियमोंमेंअथवाउसराज्यकेराज्यपालद्वाराप्रख्यापितअध्यादेशोंमेंअथवाउसउपखण्डकेपैरा (पपप) मेंनिर्दिष्टकिसीआदेश, नियम, विनियमयाउपविधिमेंप्रयोगकेलिएअंग्रेजीभाषासेभिन्नकोईभाषाविहितकीहै, वहांउसराज्यकेराजपत्रमेंउसराज्यकेराज्यपालकेप्राधिकारसेप्रकाशितअंग्रेजीभाषामेंउसकाअनुवादइसअनुच्छेदकेअधीनउसकाअंग्रेजीभाषामेंप्राधिकृतपाठसमझाजाएगा।

        अनुच्छेद 356. राज्योंमेंसांविधानिकतंत्रकेविफलहोजानेकीदशामेंउपबन्धः-

        1. यदिराष्ट्रपतिका, किसीराज्यकेराज्यपालसेप्रतिवेदनमिलनेपरयाअन्यथा, यहसमाधानहोजाताहैकिऐसीस्थितिउत्पन्नहोगयीहैजिसमेंउसराज्यकाशासनइससंविधानकेउपबंधोंकेअनुसारनहींचलायाजासकताहै, तोराष्ट्रपतिउद्घोषणाद्वारा –
          1. उसराज्यकीसरकारकेसभीयाकोईकृत्यऔरराज्यपालमेंयाराज्यकेविधानमण्डलसेभिन्नराज्यकेकिसीनिकाययाप्राधिकारीमेंनिहितयाउसकेद्वाराप्रयोक्तव्यसभीयाकोईशक्तियॉंअपनेहाथमेंलेसकेगा।
          2. यहघोषणाकरसकेगाकिराज्यकेविधान-मण्डलकीशक्तियॉंसंसदद्वारायाउसकेप्राधिकारकेअधीनप्रयोक्तव्यहोंगी
          3. राज्यकेकिसीनिकाययाप्राधिकारीसेसंबंधितइससंविधानकेकिन्हींउपबंधोंकेप्रवर्तनकोपूर्णतःयाभागतःनिलम्बितकरनेकेलिएउपबंधोंसहितऐसेआनुषंगिकऔरपारिणामिकउपबंधकरसकेगाजोउद्घोषणाकेउद्देश्योंकोप्रभावीकरनेकेलिएराष्ट्रपतिकोआवश्यकयावांछनीयप्रतीतहोंः
            परन्तुइसखण्डकीकोईबातराष्ट्रपतिकोउच्चन्यायालयमेंनिहितयाउसकेद्वाराप्रयोक्तव्यकिसीशक्तिकोअपनेहाथमेंलेनेयाउच्चन्यायालयोंसेसंबंधितइससंविधानकेकिसीउपबंधकेप्रवर्तनकोपूर्णतःयाभागतःनिलम्बितकरनेकेलिएप्राधिकृतनहींकरेगी।
            (2) ऐसीकोईउद्घोषणाकिसीपश्चात््वर्तीउद्घोषणाद्वारावापसलीजासकेगीयाउसमेंपरिवर्तनकियाजासकेगा।

        अनुच्छेद 361. राष्ट्रपतिऔरराज्यपालोंऔरराजप्रमुखोंकासंरक्षणः-

        1. राष्ट्रपतिअथवाराज्यकाराज्यपालयाराज्यप्रमुखअपनेपदकीशक्तियोंकेप्रयोगऔरकर्तव्योंकेपालनकेलिएयाउनशक्तियोंकाप्रयोगऔरकर्तव्योंकापालनकरतेहुएअपनेद्वाराकिएगएयाकियेजानेकेलिएतात्पर्यितकिसीकार्यकेलिएकिसीन्यायालयकोउत्तरदायीनहींहोगा।
        2. राष्ट्रपतियाकिसीराज्यकेराज्यपालकेविरुद्धउसकीपदावधिकेदौरानकिसीन्यायालयमेंकिसीभीप्रकारकीदांडिककार्यवाहीसंस्थितनहींकीजाएगीयाचालूनहींरखीजाएगी।
        3. राष्ट्रपतियाकिसीराज्यकेराज्यपालकीपदावधिकेदौरानउसकीगिरफ्तारीयाकारावासकेलिएकिसीन्यायालयसेकोईआदेशिकानिकालीनहींजाएगी।
        4. राष्ट्रपतियाकिसीराज्यकेराज्यपालकेरूपमेंअपनापदग्रहणकरनेसेपहलेयाउसकेपश्चातउसकेद्वाराअपनीवैयक्तिकहैसियतमेंकियेगयेयाकिएजानेकेलिएतात्पर्यितकिसीकार्यकेसंबंधमेंकोईसिविलकार्यवाहियॉं, जिनमेंराष्ट्रपतियाऐसेराज्यकेराज्यपालकेविरुद्धअनुतोषकादावाकियाजाताहै, उसकीपदावधिकेदौरानकिसीन्यायालयमेंतबतकसंस्थितनहींकीजाएगीजबतककार्यवाहियोंकीप्रकृति, उनकेलिएवादहेतुक, ऐसीकार्यवाहियोंकोसंस्थितकरनेवालेपक्षकारकानाम, वर्णन, निवास-स्थानऔरउसअनुतोषकाजिसकावहदावाकरताहै, कथनकरनेवालीलिखितसूचना, यथास्थिति, राष्ट्रपतियाराज्यपालकोपरिदत्तकियेजानेयाउसकेकार्यालयमेंछोड़ेजानेकेपश्चात्दोमासकासमयसमाप्तनहींहोगयाहै।

        अनुच्छेद 367, व्याख्याः-

        इससंविधानमेंकोईभीसंदर्भचाहेवहसंसदद्वारानिर्मितहो, अथवाकोईभीअधिनियमअथवाकानूनचाहेवहराज्यविधानमण्डलद्वाराबनायागयाहो, राष्ट्रपतिअथवाराज्यपालद्वाराजारीकियेगएअध्यादेशकेसंदर्भकेरूपमेंमानाजाएगा, जैसाभीमामलाहो।

        द्वितीयवअन्यअनुसूचियोंकेप्रावधान