Close

    स्वामी विवेकानंद जयंती समारोह, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र

    Publish Date: जनवरी 12, 2023

    आदरणीय श्री सुभाष सुधा जी, विधायक, थानेसर
    श्री सोमनाथ सचदेवा जी, कुलपति, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र
    डा0 संजीव शर्मा, कुलसचिव, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र
    उपस्थित विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, अतिथिगण, युवा, भाईयों-बहनों और मीडिया के बंधुओं!
    भारतीय संस्कृति के पुरोधा व युवा शक्ति के आदर्श स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के उपलक्ष में आज देश भर में मनाए जा रहे राष्ट्रीय युवा दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। मुझे बहुत ही खुशी है कि मैं गीता स्थली पवित्र भूमि कुरूक्षेत्र में आज युवाओं के बीच उपस्थित हूं। मैं आज इस कार्यक्रम में सम्मानित होने वाले युवाओं को भी बधाई देता हूं जिन्होंने शिक्षा, खेल, सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है।
    भाईयों-बहनों!
    19वीं सदी में जब भारत में अंग्रेजी शासन का बोल-बाला था और दूनिया हमें हेय दृष्टि से देख रही थी। भारत माता ने एक ऐसे लाल को 12 जनवरी 1863 में जन्म दिया, जिसने भारत के लोगांे का ही नहीं पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया। माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा। इसके बाद वे आध्यात्म से सराबोर होकर स्वामी विवेकानंद कहलाए। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहराकर हर भारतवासी का सिर उंचा किया था। आज हम ऐसे महान धर्म पुरोधा को नमन करते हैं।
    स्वामी विवेकानंद जी के जीवन में गीता का गहरा प्रभाव था। उन्होंने गीता पर Bhagwad Gita as viewed by Swami Vivekanand पुस्तक लिखी। स्वामी विवेकानंद जी ने 11 सितंबर, 1893 को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में अपने ओजस्वी भाषण से दुनिया भर के धार्मिक और आध्यात्मिक सन्तों को अचंभित कर दिया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत ही अमेरिकी बहनों और भाईयों के रूप में संबोधित करते हुए की, जिससे पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। उन्होंने कहा था- “मुझे उस धर्म व राष्ट्र से संबंध रखने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता सिखाई है। आज युवाओं में उसी प्रकार की राष्ट्रीयता की भावना, देशभक्ति जागृत करने की जरूरत है, जिससे सच्चे शब्दों में आप स्वामी जी के अनुयायी कहलाएगें।
    भाईयों-बहनों!
    जब स्वामी विवेकानंद जी चार साल बाद अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप की यात्रा कर भारत लौटे तो वेे मातृभूमि को नमन कर पवित्र भूमि में लेट कर लोट-पोट होे गए थे। यह मातृभूमि के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा और मां भारती के प्रति प्रेम था। उन्होंने कहा था कि मातृभूमि का कण-कण पवित्र और प्रेरक है, इसलिए इस धूलि में रमा हूं।
    स्वामी जी के बारे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लिखा है ‘‘स्वामीजी इसलिए महान हैं कि उन्होंने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान, अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित किया है, देशवासियों ने उनकी शिक्षाओं से अभूतपूर्व आत्म-सम्मान, आत्मनिर्भरता और आत्म-विश्वास आत्मसात किया है। इसी प्रकार स्वामी जी से प्रभावित होकर प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ए.एल. बाशम ने कहा था-स्वामी विवेकानंद जी को भविष्य में आधुनिक दुनिया के प्रमुख निर्माता के रूप में याद किया जाएगा।
    स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आहवान करते हुए कहा था- ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए‘‘। आज पूरी दूनिया भारत के युवाओं की तरफ आशाभरी नजरों से देख रही है। भारत युवाओं का देश है। इसलिए आप बड़ी जिम्मेवारी निभाने में सक्षम बने।
    स्वामी विवेकानंद के भारतीय मूल्यों, संस्कृति और आदर्शों से प्रेरित होकर ही हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्म निर्भर, स्वस्थ भारत अभियान शुरू किया है। इस पर 2025-26 तक 64,180 करोड़ रूपए खर्च होगें। इसका उद्देश्य 10 उच्च फोकस वाले राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सुदृढ़ करना है। सभी राज्यों में 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित करना और 602 जिलों और 12 केंद्रीय संस्थानों में विशेष केयर अस्पताल स्थापित करना है। इस प्रकार के कार्यक्रम शुरू किया जाना यह दर्शाता है कि हमारी सरकार युवाओं, गरीबों, महिलाओं सहित सभी वर्गों के कल्याण के प्रति कितनी संवेदनशील है।
    आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गई है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी-2020) स्वामी विवेकानंद के वैज्ञानिक दृष्टिकोण, नैतिक मूल्यों और नए भारत के निर्माण की दृष्टि के अनुरूप है। एनईपी-2020 में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना, शिक्षा में मातृभाषा को बढ़ावा देना और समावेशी शिक्षा के लिए प्रावधान करने के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 2035 तक 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है।
    दिव्यात्मा स्वामी विवेकानंद जी ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका की कल्पना की थी। इसलिए जब वे एक जहाज में प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेदजी टाटा से मिले, तो उन्होंने विज्ञान के विकास में उनकी मदद मांगी। स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर जमशेदजी टाटा ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु की स्थापना की। वे भारतीय संस्कृति व पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के दोनों सर्वाेत्तम पहलुओं को सामने लाना चाहते थे।
    मुझे पता चला है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागु करने में आपका विश्वविद्यालय देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि विश्वविद्यालय परिसर में स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा की स्थापना का कार्य प्रगति पर है। इसी प्रकार से भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विश्वविद्यालय में रत्नावली महोत्सव का आयोजन किया जाना और विश्वविद्यालय में धरोहर हरियाणा संग्रहालय स्थापित किया जाना भी विश्वविद्यालय ने सराहनीय पहल की है। ऐसे आयोजनों से देश की संस्कृति का विकास होता है। इसके लिए मैं विश्वविद्यालय के कुलपति श्री सोमनाथ सचदेवा व उनकी पूरी टीम को शुभकामनाएं देता हूं।
    प्रिय छात्रों!
    स्वामी जी का दर्शन और आदर्श आपके लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत है। स्वामी विवेकानंद जी के दिखाए रास्ते पर चलकर ही एक भारत-श्रेष्ठ भारत, आत्मनिर्भर भारत, स्वस्थ भारत का निर्माण करना और भारत को विश्व गुरू बनाने के सपने को साकार किया जा सकता है। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सोच है। आइए, हम अमृत काल में एक महान दार्शनिक, विचारक और युवाओं के प्रेरणा पुंज, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं, राष्ट्रीयता की भावना, देशभक्ति, विविधता में एकता और समावेशिता को आत्मसात करने का संकल्प लें। यही स्वामी विवेकानंद को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
    अंत में, मैं राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर स्वामी विवेकानंद जयंती समारोह का सफल कार्यक्रम आयोजित करने पर विश्वविद्यालय परिवार को बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
    जय हिन्द-जय हरियाणा !