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    सिखाराम आर्ट थियेटर हैदराबाद द्वारा बी आर अम्बेडकर आडिटोरियम, तेलंगाना ए पी भवन दिल्ली में 6 अप्रैल को 3 बजे नाटय वसंतोत्सव राष्ट्रीय उगादी पुरस्कार समारोह पर दिए जाने वाले भाषण का प्रारूप

    Publish Date: अप्रैल 6, 2022

    संबोधन- आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित
    लोकसभा सांसद श्री बीपी पाटिल जी
    विधायक श्री विसेष रवि जी
    श्रीमती प्रीता हरित जी
    श्री गोला कृष्णा जी
    विंग कमान्डर श्री अप्पा जी वेंकटराव
    1st कुचीपुडी दम्पत्ति डॉ विथल व डॉ भारथी विथल जी एवं कार्यक्रम में भाग ले रहे भाइयों, बहनों, महानुभाव।
    उगादी, भारत की प्राचीन संस्कृति का परिचायक है, क्योंकि यह सृष्टि, युग व वर्ष के आरम्भ का दिन है। इसलिए इसे युगादी अर्थात युग की शुरूआत का दिन भी कहा जाता है। यह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को होता है, इसी लिए इसे वर्ष प्रतिप्रदा के नाम से भी जानते हैं। यह इस वर्ष दो अप्रैल को थी। इस मधुरबेला पर आपके द्वारा इस नाटय वसंतोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जोकि प्रशंसनीय कार्य है।
    मुझे आज इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर गर्व का महसूस हो रहा है। आपने इस पूनीत कार्य में मुझे आमन्त्रित किया है, इसके लिए आपका धन्यवादी हूं।
    आज इस कार्यक्रम में ही 21 विजेताओं को राष्ट्रीय उगादी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है, जो कि एक सराहनीय कार्य है, इसके लिए मैं सभी पुरस्कार ग्रहण करने वालों का भी बधाई देता हूं।
    यह वह समय है जब बसंत ऋतु अपने यौवन पर होती है। इन दिनों सभी दिशाओं में प्रकृति का शोधन होता दिखाई देता है। सभी पेड़, पौधों व झाड़ियों पर रंग-बिरंगे फूलों की महक से मन प्रफुल्लित हो उठता है। पौधों पर नई-नई पत्तियों तथा फलों का आगमन होता है और वातावरण में चारों ओर एक मंद-मंद सुगंध का परवाह रहता है। प्रकृति का यह मनोहर दृश्य वर्ष में केवल इसी समय दिखाई देता है।
    हमारे ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के परिवर्तन, सूर्य की गति और सामाजिक परम्पराओं पर आधारित अनेक उत्सव मनाने की व्यवस्था दी ताकि हमारा जीवन उल्लास से भरा रह सके। आज जो पर्व हम मना रहे हैं वह भी सृष्टिक्रम से जुड़ा हुआ है। इसको आप ‘उगादि‘ या युगादि के नाम से जानते हैं।
    हमारे देश के महान प्रतापी राजा वीर विक्रमादित्य के नाम से शुरू हुए इस वर्ष को विक्रमी संवत कहा जाता है, जोकि 2 अप्रैल से दो हजार उनासी (2079) आरम्भ हो गया है।

    कलयुग का आगमन भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही पांच हजार एक सौ तेईस (5123) वर्ष पूर्व हुआ था। इसके लिए भी मैं आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं। नववर्ष की इस अमृतवेला पर मैं आपके लिए ही कहना चाहूंगा कि
    मान-सम्मान दे, सुख समृद्धि और ज्ञान दे,
    नववर्ष आपको शान्ति, शक्ति और भरपूर सम्मान दें।
    युगादि सृष्टि सृजन का वह दिन है, जिसके बारे में हमारे धर्म शास्त्रों में यह मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी।
    इस पर्व को पूरे देश में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। जहां दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र इत्यादि प्रदेशों में इसे युगादि अर्थात उगादी के नाम से मनाया जाता है, वहीं उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित कई राज्यों में इसे बैशाखी के नाम से मनाते हैं। इस समय नई फसल के आगमन पर भी घरों में खुशियां मनाई जाती है।
    भारतीय नववर्ष का प्रकृति के साथ-साथ धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। इस समय प्राणियों के शरीरों में नवरसों का संचार होता है। इसलिए इसको ‘नवरस‘ का मौसम भी कहा जाता है।
    इससे शरीर ऊर्जा और मन उत्साह और उल्लास से भर जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही मातृशक्ति दुर्गा माता के नौ रूपों की की पूजा की जाती है। दो अप्रैल से पूरे देश में नवरात्रों का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जा रहा है। इसे दौरान श्रद्धालु लोग दुर्गा माता के अष्ट रूपों की उपासना करते है और व्रत रखते है, जिससे शरीर निरोग व शुद्ध होता है।
    भारतीय नव वर्ष एवं नव संवत्सर का ऐतिहासिक महत्व भी है। हमारे तपस्वी पूर्वजों ने इस दिन की प्राकृतिक महत्ता को समझाते हुए, इसे इतिहास के पन्नों से जोड़ने का प्रयास किया है ताकि हमारी भावी पीढ़ियां इसे जीवन का अंग बना सके।
    वैदिक शास्त्रों के अनुसार सृष्टि की रचना आज से करोड़ों वर्ष पूर्व भारत की इसी भूमि पर हुई थी। इस धरा पर अनेक यशस्वी राजाओं और महापुरुषों ने जन्म लिया और सामान्य जीवन को सरल और सहज बनाने का प्रयास किया।
    इसी कड़ी में भगवान श्रीराम ने लंका विजय के उपरांत चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही अयोध्या का राज सिंहासन ग्रहण किया था। महाभारत युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। महाभारत काल के बाद इस देश के महान एवं तपस्वी राजा वीर विक्रमादित्य हुए हैं, उनका राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हुआ था।
    इस कारण उस दिन को विक्रमी संवत के नाम से जाना जाने लगा, जो कि दो अप्रैल से दो हजार उनासी (2079) लग गया है। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार का जन्म भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही हुआ था।
    आज हम अपनी प्राचीन संस्कृति और मान्यताओं को भूले बैठे हैं, जिसके कारण हमारे आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन हुआ है जो कि भारतीय समाज और जनमानस के लिए अच्छा नहीं है।

    अंत में मैं आपको एवं पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी विजेताओं को पुनः नव वर्ष और नव संवत की शुभकामनाएं एवं बधाई देते हुए इन्ही दो लाइनों के साथ अपनी वाणी को विराम दूंगा कि ..
    मंद- मंद धरती मुस्काए, मंद-मंद बहे सुगंध,
    ऐसा ‘उगादी’ त्यौहार हमारा, सबके हो चित प्रसन्न।।

    धन्यवाद
    जयहिंद।