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    शहीदी दिवस, गुरूग्राम

    Publish Date: मार्च 23, 2023

    श्री स्वामी धर्मदेव जी परम पूज्य महामंडलेश्वर
    श्री विजय जी, प्रान्त प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, हरियाणा प्रदेश
    श्री सुधीर सिंगला, विधायक, गुरूग्राम
    श्री राकेश दौलताबाद, विधायक, बादशाहपुर
    श्री संजय सिंह, विधायक, सोहना
    श्री सत्यप्रकाश जरावता, विधायक, पटौदी
    श्री राव नरबीर सिंह, पूर्व मंत्री
    श्री जवाहर यादव, ओएसडी, मुख्यमंत्री, हरियाणा
    डा0 कुमार विश्वास, प्रख्यात कवि
    श्री नरेन्द्र यादव, अध्यक्ष, होम डेवलपर्स, गुरूग्राम
    उपस्थित सभी महानुभाव, भाइयों, बहनों, पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं।
    शहीदी दिवस के अवसर पर मैं सर्वप्रथम देश के नायकों शहीदे-आजम सरदार भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को नमन करता हूँ। इसके साथ-साथ आज इस अवसर पर देश के उन सभी वीर शहीदों को भी प्रणाम करता हूं जिन्होंने देश की आन, बान और शान के लिए बलिदान दिया और देश को आजाद करवाया।
    हमारे वीर शहीदों की गाथाओं से देश का इतिहास भरा पड़ा है। तेईस मार्च का दिन भारतीय इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि उन्नीस सौ इकत्तीस की रात्रि में तीनों नायकों ने अपने आप को देश के लिए न्यौछावर कर दिया था।
    अदालत के आदेशों के अनुसार भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव को चौबीस मार्च उन्नीस सौ इकत्तीस को फांसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेजी शासन द्वारा हमारे तीनों सूरमाओं सरदार भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू को तेईस मार्च को ही फांसी लगा दी गई। उन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फंदे को गले लगा लिया।
    सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव तीनों नायक ऐसे सच्चे राष्ट्रवादी थे जिनके खून में देशभक्ति का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ था। इन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए देश के युवाओं में नए जोश के साथ क्रांति की भावना का संचार किया। लाखों युवा उनके इन्कलाब के नारे के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े हुए। जिसके चलते अंग्रेजों को उन्नीस सौ सैंतालीस में भारत छोड़ना पड़ा और देश को स्वतंत्रता मिली।
    आज हम उन्हंे याद करके देश की युवा पीढ़ी में वीरता का साहस भरकर उन्हें देश की जिम्मेवारी के लिए हर तरह के बलिदान के लिए तैयार कर रहे हैं।
    मुझे यह बताते हुए बड़ा गौरव हो रहा है कि आज का यह समारोह उन वीर बलिदानियों की धरती पर मनाया जा रहा है, जिनकी वीरता के चर्चे हरियाणा के इस क्षेत्र की लोक-गाथाओं और लोक-गीतों में आज भी किए जाते हैं। शूरवीरों की इस धरती को मैं प्रणाम करता हूं।
    जैसा कि सभी जानते हैं कि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दक्षिण हरियाणा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सोलह नवंबर अठारह सौ सतावन में स्वतंत्रता संग्राम में दक्षिणी हरियाणा के पांच हजार अनाम वीरों ने नसीबपुर नारनौल की रणभूमि में अपना सर्वस्व न्योछावर कर अपने प्राणों की आहुति दी थी।
    स्वतंत्रता संग्राम के महानायक राव तुलाराम ने जहां मात्र चौदह वर्ष की अल्पायु में ही राजकाज संभालकर अपनी सूझबूझ से अंग्रेजों की घेराबंदी की थी। वहीं राव गोपाल देव ने युद्ध के बाद अंग्रेजों की ओर से की गई सशर्त माफीनामे की पेशकश को ठुकरा दिया था।
    राव तुलाराव के नेतृत्व में मेरठ के बागी सरदार राव किशन सिंह और गोपाल देव ने नारनौल व महेंद्रगढ़ के बीच दौहान नदी के किनारे नसीबपुर के मैदान में कर्नल गेराड की अध्यक्षता वाली अंग्रेजी सेना के साथ भयानक युद्ध किया। इसमें राव किशन सिंह, राव गोपाल देव और हिसार के नवाब व अन्य योद्धा शहीद हो गए। अंग्रेजों के सेनापति कर्नल गैराड को गोली लगी और वे भी मारे गए।
    इस युद्ध में भले ही स्वतंत्रता सेनानियों की हार हुई और अंग्रेंजों ने यहां पर बहुत बड़ा दमन चक्र चलाया और यहां पर काफी लोगों को सामूहिक फांसियां दी गई। नारनौल शहर पर कब्जा करके काफी लोगों को मौत के घाट उतारा तथा लूटपाट मचाई, परंतु फिर भी देश भक्ति की लौ इस क्षेत्र के लोगों के मनों में भभकती रही।
    इसी वजह से आज भी यहां के निवासियों में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी है। क्षेत्रफल का लगभग दो प्रतिशत भाग होने के बावजूद सैनिकों और अर्द्धसैनिकों के लगभग दस प्रतिशत नौजवान हरियाणा से आते हैं और उनमें से भी दक्षिणी हरियाणा के जवानों की संख्या काफी है।
    प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद भारत माता की रक्षा के लिए यहां के नौजवानों ने अपनी आहुति दी है। उन्नीस सौ बासठ के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला के वीर बहादुरों की गाथा अतुलनीय है।
    भारत-चीन के बीच होने वाले इस युद्ध में इस क्षेत्र के रणबांकुरों ने वो इतिहास रचा जिसके लिए दुश्मन ने भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की और पूरी दुनिया के सैनिक इतिहास में आज तक यह युद्ध अद्वितीय एवं असाधारण पराक्रम की मिसाल है।
    इस युद्ध में एक सौ सताईस जवानों ने दिलेरी से यह बर्फीली लड़ाई लड़ी। एक सौ चौदह सैनिकों की शहादत आज भी उनकी जाबांजी की कहानी कह रही है। चुशूल (लद्दाख) की हवाई पट्टी के पास बने एक विशाल द्वार पर लिखा ‘‘वीर अहीर’’ रेजांगला के इन वीर अमर शहीदों की कहानी कह रहा है। मैं जांबाज वीरों की इस भूमि पर आकर स्वयं को धन्य मानता हूं।
    भाईयों और बहनों!
    वीरों, शहीदों का सम्मान करना हमारी परिपाटी रही है और मुझे गर्व है कि हरियाणा सरकार मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में उस परिपाटी को पूरी तरह से निभा रही है। विभिन्न योजनाओं के द्वारा युद्ध के दौरान शहीद हुए सेना के जवानों व केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के जवानों के कल्याण के लिए कार्य कर रही है।
    सरकार की योजनाओं में कुछ का मैं यहां जिक्र करना चाहूंगा कि साठ वर्ष व इससे अधिक आयु के भूतपूर्व सैनिक व उनकी विधवाओं व भूतपूर्व सैनिकों के अनाथ बच्चों तथा उन्नीस सौ बासठ, उन्नीस सौ पैंसठ व उन्नीस सौ इकतहर की युद्ध विधवाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता दो हजार रूपए से बढ़ाकर तीन हजार रूपए मासिक की गई तथा प्रतिवर्ष इस राशि में चार सौ रुपये की वृद्धि की जाती है।
    दिव्यांग, नेत्रहीन, पैराप्लेजिक, टैटराप्लेजिक और हैमियाप्लेजिक भूतपूर्व सैनिकों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता तीन हजार रूपए मासिक दी जाती है तथा प्रतिवर्ष इस राशि में चार सौ रुपए की वृद्धि की जाती है।
    भूतपूर्व सैनिक व केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल कल्याण के लिए सैनिक व अर्द्धसैनिक कल्याण विभाग का गठन किया गया। अब तक शहीद सैन्य/केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के तीन सौ पैसठ आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी प्रदान की गई है।
    अग्निपथ योजना के अंतर्गत कठोर एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया से सर्वश्रेष्ठ युवाओं का प्रशिक्षण अवधि सहित चार साल की सेवा अवधि के लिए थल सेना, नौसेना और वायु सेना में भर्ती करने का निर्णय लिया गया है।
    अंत में, मैं आप सभी को शहीदी दिवस के अवसर पर पुनः बधाई देता हूं और इस समारोह के आयोजन के लिए धन्यवाद देता हूं।
    जयहिन्द!