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    ‘वायब्रेशन म्युजिकल ग्रुप’ समारोह

    Publish Date: दिसम्बर 12, 2021

    महान संगीत निर्देशक पदम्श्री श्री आनन्द जी,
    श्री नरेश जैकब जी, संस्थापक वायब्रेशन म्युजिकल ग्रुप,

    प्रतिष्ठित कलाकार बंधुओ, उपस्थित महानुभाव, श्रोतागण भाईयो एवं बहनों !
    गीत-संगीत को जीवन समर्पित कर देने वाले दम्पत्ति स्व0 गुरशरण कौर व श्री हरिभगत बैंस की स्मृति में आयोजित इस संगीत संध्या में आकर मुझे अत्यंत आनन्द का अनुभव हो रहा है। सर्वप्रथम मैं उन दोनों दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
    सौभाग्य है कि यहां मुझे भारतीय संगीत का दुनिया में डंका बजाने वाले श्री आनन्द जी से मिलने का अवसर प्रदान हुआ है। उनकी यहां उपस्थिति युवा कलाकारों को भी अपनी संस्कृति की महानता से रूबरू कराती हुई प्रेरित करेगी।
    यह वास्तविकता है कि संगीत, कला और साहित्य देशों की सीमाओं से परे होते हैं। ये मानवमात्र की बपौती हैं। अनेक संगीतकारों ने संगीत की इस सार्वभौमिकता को सिद्ध किया है और वर्तमान समय में ऐसे अनेक समारोहों का आयोजन भी होता है। आज यहां भी हम ऐसे ही एक प्रयास से रूबरू हो रहे हैं।
    आज विश्व में हमारी संस्कृति की अलग पहचान है। नृत्य, गीत, संगीत, साहित्य, चित्रकारी और लेखन जैसी रचनात्मक विधाओं के माध्यम से हमारे कलाकार, लेखक व साहित्यकार देश की बहुरंगी संस्कृति को विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत करते हैं।
    आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश विभिन्न माध्यमों से हमारे शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहा है। मेरा आज की युवा पीढ़ी को यही सन्देश है कि अपनी संास्कृृतिक विरासत को अपनी कला के माध्यम से संजोये रखने में सक्रिय योगदान दें। जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता को और मजबूती मिलेगी।
    इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई इन्सान हो जिसे संगीत से प्यार ना हो। संगीत के बिना इस संसार में इंसान मात्र एक मशीन होता। सारे भाव क्रोध, दुःख, सुख, अध्यात्म सबके तार संगीत से ही जुड़े हैं। संगीत वह कला है जिसके द्वारा इंसान अपने ह्रदय के सूक्ष्म भावों को स्वर और लय की सहायता से सुन्दर रूप में प्रकट करता है।
    संगीत सिर्फ हमारे मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि साहस, एकाग्रता एवं करुणा जैसे गुणों का विकास करता है। आत्मा से इसका गहरा सम्बन्ध है। इसलिए इसे आत्मा का भोजन भी कहा जाता है।
    अब तो पाश्चात्य विद्वानों की मान्यताएं भी इसका समर्थन कर रही हैं। उनके कथन से जो निष्कर्ष मिलते हैं, उनसे यही सिद्ध होता है कि यदि मानवीय गुणों, आत्मिक आनंद और आत्मिक शक्ति को बनाएं रखना है तो मनुष्य स्वयं को संगीत से जोड़े रखे।
    कला और साहित्य सदियों से हमारी संस्कृति को जीवंत रखने का महान कार्य कर रहे हैं। संगीत, संस्कृति अथवा संस्कार देश की आत्मा व प्रेरणा के स्रोत होते हैं जिनके सहारे देश अपने लक्ष्यों और आदर्षाें का निर्माण करता है। संगीत, कला और साहित्य का मुख्य उद्देश्य सामाजिक विरासत और नैतिक मानवीय मूल्यों और परम्पराओं को स्थापित रखना है। इससे देश व समाज मार्गदर्शन मिलता है। संगीत व साहित्य को बढ़ावा देकर हम समाज की प्रगति की नींव रखते हैं।
    मैं, आज के इस संगीत संध्या कार्यक्रम के आयोजकांे की सराहना करता हूं और कला व संस्कृति के संरक्षण की दिशा में किए जा रहे उनके सब प्रयासों की सफलता की कामना करता हूं। मैं इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले कलाकारों को शुभकामनाएं देता हुआ उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। साथ ही साथ आशा करता हूं कि आप सभी सांस्कृतिक-पुर्नजागरण के लिए ऐसे समारोह आयोजित करके युवा वर्ग में नई प्ररेणा व नई चेतना का संचार करते रहेंगे।

    धन्यवाद जयहिन्द!