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    ‘‘वामन द्वादशी मेला कार्यक्रम’’ कुरूक्षेत्र

    Publish Date: सितम्बर 16, 2021

    आदरणीय श्री संदीप सिंह जी, खेल एवं युवा मामले मंत्री,
    गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी ,
    श्री नायब सिंह सैनी जी, सांसद कुरूक्षेत्र
    स्वामी बंसीपूरी जी
    श्री सुभाष सुधा जी, विधायक थानेसर
    स्वामी साक्षी गोपाल जी
    श्री मुकुल कुमार, उपायुक्त कुरूक्षेत्र
    सभी सामाजिक संस्थाओं के सम्मानीय प्रतिनिधिगण, अधिकारीगण, प्रिय श्रद्धालु भाईयो-बहनों, छायाकार एवं पत्रकार बन्धुओं !

    मैं कुरूक्षेत्र की पावन भूमि के पवित्र सन्निहित सरोवर पर आयोजित वामन द्वादशी मेले में उपस्थित होकर स्वयं को पुण्य का भागीदार मान रहा हूँ। इस मेले के आयोजन व इस पवित्र पर्व पर मैं पूरे प्रदेशवासियों के साथ-साथ आप सभी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूँ और प्रदेश के सभी लोगों की सुख शान्ति, समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ।

    मैं के.डी.बी. के पदाधिकारियों व बोर्ड से जुड़ी सभी संस्थाओं को साधुवाद देता हूँ कि आप सब ने मिलकर प्राचीन मेले के आयोजन की नई शुरूआत की है। इससे भारतीय प्राचीन संस्कृति और सुदृढ़ होगी और भारतीय संस्कृति व सभ्यता का प्रचार-प्रसार होगा।
    पृथ्वी पर जब-जब भी अधर्म की वृद्धि और धर्म की हानि हुई है तब-तब धर्म संस्थापन हेतु भगवान अनेक रुपों में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। पुराणों में अवतारों की संख्या दस से लेकर चौबीस तक बताई गई है।
    भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, रामकृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि की गणना होती है। इनमें से लगभग सभी अवतारों का सम्बन्ध धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की पावन भूमि से रहा है जिनमें से वामन अवतार प्रमुख है।
    भगवान वामन की प्रकटस्थली होने के कारण कुरुक्षेत्र में विगत कई सदियों से वामन द्वादशी मेले की परम्परा रही। यह मेला कुरुक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ सन्निहित सरोवर के तट पर आयोजित किया जाता था।
    इस अवसर पर सन्निहित सरोवर में भगवान वामन के नौका विहार की परम्परा के साथ-साथ अनेक क्रीड़ा प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता था। विगत दो दशकों से भी अधिक समय से किन्ही कारणों से कुरुक्षेत्र की पौराणिक पहचान को समर्पित यह इस पर्व का आयोजन बन्द हो गया था। अभी कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं की पहल पर इस मेले को पुनर्जीवित किया जा गया है। इसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं।
    आज मुझे ;ळप्म्व् ळपजंद्ध के पुस्तकालय का उद्घाटन करने का अवसर भी प्राप्त हुआ इसके लिए मैं स्वामी ज्ञानानन्द जी का आभार व्यक्त करता हूँ। इन्होंने ळप्म्व् ळपजं के माध्यम से गीता का संदेश विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया है। इनके इस प्रयास से ळप्म्व् ळपजं पुस्तकालय गीता के प्रचार-प्रसार में एक मील का पत्थर साबित होगा।
    इस पुस्तकालय के माध्यम से विश्वभर की मानव जाति गीता के परम संदेश को ग्रहण कर पाएगी, जो विश्व में शांति-सद्भाव का वातावरण तैयार करने के साथ-साथ अलौकिक अनुभूति का एहसास कराएगी।
    भागवान श्री कृष्ण ने इसी पावन धरा पर मानवता को गीता का उपदेश दिया था। गीता के अमर सन्देश के आगे सारा संसार युगों-युगों से नतमस्तक है। इसलिये गीता सारे विश्व को समता और ममता का पाठ पढ़ाती है। तभी तो महात्मा गांधी जी गीता को केवल पूजा की वस्तु न मानकर साक्षात् अपनी माता ही मानते थे। वे किसी भी समस्या का हल गीता से ढूंढ लेते थे।
    गीता का संदेश वर्तमान में और प्रासंगिक है, जब पूरी दूनिया कोरोना के दौर से गुजरी है। मैं मेरे व्यक्तिगत जीवन के बारे में बता रहा हूँ, जब-जब कभी मुझे अकेलेपन का एहसास हुआ है तब-तब गीता ने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया है। बात चाहे एमरजैन्सी के समय की हो जब मैं जेल में बंद था या कोरोना के समय शिमला मे था, मैने गीता पढ़ी और जीवन में हमेशा विश्वास और मजबूत हुआ और मनोबल बढ़ा।
    आज आप सभी के सहयोग से पौराणिक मेलों को पुनर्जीवित करने की सकारात्मक पहल हुई है। इन मेलों से समाज में भाईचारा बढ़ता है। उंच-नीच की खाई खत्म होती है। जिससे वसुधैव कुटुम्बकम्् की भावना प्रबल होती है।
    मेले के आयोजन के लिए मैं एक बार फिर आप सभी को वामन द्वादशी पर्व की बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि आप सभी आपसी सहयोग कर पौराणिक मेलों को पुनर्जीवत करें जिससे भारतीय संस्कृति और प्रफुलित होगी और कुरूक्षेत्र भूमि की पहचान अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होगी।

    जयहिन्द जय हरियाणा!