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    राष्ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्ठी, नाड़ी परीक्षण, कुरूक्षेत्र

    Publish Date: नवम्बर 20, 2022

    आदरणीय प्रो0 बलदेव कुमार धीमान जी, कुलपति, श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र
    प्र्रो0 बी.वी रमना रेड्डी जी, निदेशक, एन.आई.टी, कुरूक्षेत्र
    प्रो0 सोमनाथ सचदेवा जी, कुलपति, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र
    प्रो0 गोविंद सहाय शुक्ला जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व आयुर्वेद परिषद

    उपस्थित आयुर्वेदाचार्य, चिकित्साशास्त्री, प्रिय छात्रों, महानुभाव व मीडिया के बंधुओं!
    आजादी के अमृत काल में आयोजित नाड़ी परीक्षण की राष्ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्ठी कार्यक्रम में आप सबके बीच आकर मुझे बहुत ही खुशी का अनुभव हो रहा है। मैं इस संगोष्ठी में भाग लेने वाले सभी महानुभावों को बधाई देता हूं और सबके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। साथ ही इस आयोजन के लिए विश्व आयुर्वेद परिषद (उत्तर प्रदेश) श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कुरूक्षेत्र व भाग ले रही सभी संस्थाओं को हार्दिक बधाई देता हूं।
    भाईयों-बहनों!
    आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है जिसे भगवान विष्णु ने भगवान धन्वंतरी के माध्यम से मानव को प्रदान किया है। इसे युगों से पतंजलि, चरक, सुश्रुत, सुषेण और न जाने किन-किन महान ऋषि-मुनियों और चिकित्साशास्त्रियों ने परिष्कृत किया है और हम तक पहुंचाया है।
    आयुर्वेदिक पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया नाड़ी परीक्षण की होती है। यदि कोई भी आयुर्वेदाचार्य नाड़ी परीक्षण सही कर पाता है तो निश्चित रूप से रोग का निदान भी सुनिश्चित है क्योंकि आयुर्वेद अपने आप में एक पूर्व विज्ञान है। हमारे ऋषि-मुनियों और चिकित्साशात्रियों ने इसे गहन आध्यात्म के बाद प्रमाणित किया है।
    रोग के निदान के लिए आचार्य योगरत्नकार ने रोगी के परीक्षण की आठ किस्मों का वर्णन किया है, जिनके नाम हैं नाड़ी, मल, मुत्र, जिव्हा, शब्द, स्पर्श, ड्रिक और आकृति। उनमें से, रोगों की स्थिति का निदान करने के लिए नाड़ी परीक्षण सबसे आवश्यक है। नाड़ी परीक्षण रोग की संपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डालती है।
    प्राचीन आयुर्वेद के विद्वानों ने वात, पित्त, कफ को त्रिदोष कहा है। एक वक्त था जब वैद्य चेहरा देखकर व नाड़ी को छूकर वात, पित व कफ जनित रोग को जान लेते थे। आपको याद ही होगा कि लक्ष्मण को जीवन देने के लिए वैद्य सुषेण ने संजीवनी बूटी मंगवाई थी। आयुर्वेद में काल के ग्रास से रोगी को खींच लाने की वह शक्ति आज भी विद्यमान है।
    समय बदलने पर आधुनिक जीवन-शैली ने हमें जहां अनेक सुख-सुविधाएं दीं तो हमसे बहुत कुछ छीन भी लिया। सुविधाभोगी बनने के साथ ही हमें रोग, विकार और परेशानियां मिल रही हैं। नई-नई बीमारियां से करोड़ों लोग पीड़ित हैं।
    घर-घर में डायबिटीज, रक्तचाप, मोटापा, तनाव, सर्वाइकिल आदि रोग पनप गए हैं। शारीरिक श्रम कम और कम होता जा रहा है। भौतिक सुविधाएं कार, लिफ्ट आदि बनकर हमें चार कदम चलने भी नहीं देतीं। विज्ञान की इस तरक्की में अनन्त उपकरण, मशीनें, दवाईयां, चिकित्सा सुविधाएं आदि उपलब्ध हो गए हैं। लेकिन इन्होंने हमारा चैन छीन लिया है।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव स्वास्थ्य की परिभाषा है। भारत ने पिछले कुछ सालों में तेजी के साथ आर्थिक विकास किया है लेकिन इस विकास के बावजूद बड़ी संख्या में लोग कुपोषण के शिकार हैं जो भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य के प्रति चिंता उत्पन्न करता है।
    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार तीन वर्ष की अवस्था वाले चार प्रतिशत बच्चों का विकास अपनी उम्र के हिसाब से नहीं हो सका है और 42 प्रतिशत बच्चे अपनी अवस्था की तुलना में कम वजन के हैं जबकि 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया 50 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ा है।
    भाईयों-बहनों!
    स्वास्थ्य से बढ़कर कोई धन-दौलत नहीं है। धन-दौलत को गंवाने के बाद पुनः कमाया जा सकता है लेकिन स्वास्थ्य खराब हो जाए तो उसे कमाया नहीं जा सकता।
    स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद ऐसा वरदान है जो सस्ते, सुलभ और जांचे-परखे विज्ञान के रूप में उपलब्ध है। इसके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। इसका कारण यह है कि धरती मां की गोद से उपजे मिर्च-मसाले, जड़ी-बूटियां, खनिज, फल-फूल, अन्न आदि मिलकर आयुर्वेद के अवयय बनते हैं। इन्हें हमारे पूर्वजों ने और विद्वान चिकित्साशास्त्रियों ने ‘एक विज्ञान’ बनाया है।
    आयुर्वेद के इसी महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी आयुर्वेद का प्रसार दुनियाभर में करना चाहते हैं। भारत सरकार ने नई पीढ़ी को आयुर्वेद, योग प्रशिक्षण व योग साधना के लिए प्रेरित किया है। प्रधानमंत्री जी ने इनके लिए अलग आयुष मंत्रालय ही बना दिया गया है।
    योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी इस मंत्रालय के तहत आते हैं। उन्हीं के प्रयासों से 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय किया। अब हर वर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।
    हरियाणा सरकार ने भी आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार करने और इस पद्धति से लोगों को लाभांवित करने के लिए 17 जिलों में पंचकर्मा केन्द्रों पर पंचकर्मा की सुविधा शुरू की है। हरियाणा में श्री कृष्णा आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना की है जो देश में अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय है।
    मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार का यह प्रयास फलीभूत होगा और जन-जन में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आएगी और वे आयुष पद्धतियों को अपनाएंगे। इस तरह हम स्वस्थ भारत का निर्माण करने में सफल रहेंगे जो पुनः विश्वगुरू का दर्जा प्राप्त करेगा।
    मुझे खुशी है कि हमारी शिक्षण संस्थाएं आयुर्वेद के जरिए मानवसेवा में लगी हैं। मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाली इस नाड़ी परीक्षण की इस कार्यशाला व संगोष्ठी में हम बहुत कुछ सीखगें, जिसका मनुष्य को स्वस्थ बनाने में प्रयोग करेगें। इससे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत तथा फिट इंडिया अभियान भी आगे बढ़ेगा।
    जयहिन्द!