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    महावीर जयंती व द सेंटेनियल स्कूल के जूनियर विंग का उद्घाटन समारोह, पानीपत

    Publish Date: अप्रैल 4, 2023

    माननीय भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद जी,
    आदरणीय मुनिवरश्री 108 समर्पण सागर जी महाराज,
    श्री संजय भाटिया जी, सांसद
    श्री प्रमोद विज जी, विधायक
    श्री नंद किशोर जी,
    श्री अशोक जिंदल जी,
    श्री विनोद जी, प्रमोद जी,
    सर्वप्रथम मैं दिव्य एवं अलौकिक गुणों के धनी मंच पर विराजमान मुनिजनों के चरणों में सादर नमन करता हूं। आज मैं स्वयं को धन्य समझता हूं कि मुझे महावीर जयन्ती के पावन अवसर पर आयोजित इस समारोह में भाग लेने का अवसर मिला है। मैैं आप सबको भगवान महावीर जयंती पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। मुझे खुशी है कि आज यहां शुल्क श्री 108 समर्पण सागर जी महाराज के सानिध्य में द सेंटेनियल स्कूल के जूनियर विंग का भी उद्घाटन हुआ है।
    भगवान महावीर का जीवन और शिक्षाएं ऐसे मानव के निर्माण की बात करते हैं जिसमें मानव की आत्मा की शुद्धि का महत्व प्रमुख है। इस शुद्धि को प्राप्त करने के लिए मानव को घमण्ड, छल-कपट, लोभ-लालच और असत्यवादन का परित्याग करना होता है। इसके लिए सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र की महती आवश्यकता होती है। ऐसे गुणों से भरपूर नागरिक महान मानव संस्कृति और महान देश का सृजन व पोषण करते हैं। ऐसे ही महामानवों से भारत विश्वगुरू बना था।
    चरित्र-निर्माण की इस आवश्यकता को समूचे जैन चिंतन व व्यवहार में प्राथमिकता दी गई है। भगवान महावीर ने इसके लिए पांच सिद्धांत-सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य व ब्रह्मचर्य दिए। इन सिद्धांतों को अपनाकर व्यक्ति अच्छा नागरिक बन सकता है। उन्होंने मानव कल्याण व मुक्ति के लिए ’’अहिंसा-परमोधर्म’’ और ’’जीओ तथा जीने दो’’ का जो महान संदेश विश्व को दिया वह हर मानव को किसी देश, क्षेत्र आदि की सीमाओं से उपर उठाकर विश्व नागरिक बनाने में सक्षम है। आज भी वह संदेश उतना ही प्रासंगिक तथा उपयोगी है जितना कि वह उस समय था। उनकी पावन शिक्षाओं ने मानवमात्र को जीवन का सही मार्ग दिखलाया। उनकी शिक्षाएं व उपदेश आज भी समय की कसौटी पर बिल्कुल खरे उतरते हैं। आधुनिक विश्व में भौतिक प्रगति होने के बावजूद भी अशांत, आतंकित और हिंसक वातावरण मानव मात्र को भयभीत कर देता है। भगवान महावीर द्वारा बताए गए संस्कार और अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है। पूरे विश्व में अहिंसा और संस्कारों की ऐसी मिसाल कहीं नही मिलती जैसी कि जैन समुदाय में देखने को मिलती है।
    वास्तव में अहिंसा जहां एक ओर दूसरों को दुख पहुंचाने से रोकती है, तो दूसरी ओर इसका आरम्भ और अन्त क्षमा पर होता है। अहिंसा वास्तव में विश्व में भाइचारे का सन्देश है। यह हृदय परिवर्तन का सुगम मार्ग है जिस पर चलकर भगवान महावीर व अन्य जैन मुनियों ने मानव मुक्ति व कल्याण के मार्ग की खोज की थी। भगवान महावीर इस अर्थ में सर्वज्ञ हैं कि उन्होनंे स्वयं को जान लिया था। स्वयं को जान लेना ही सबको जान लेना है। महावीर को केवल्य ज्ञान हो गया था जिसका मूल विषय आत्मा ही है और उन्होंने इस मूल विषय को प्राप्त कर लिया था। उनके लिए इस ज्ञान दृष्टि द्वारा सब ओर देखना सम्भव हो गया था।
    धर्म व संस्कृति के विशेषज्ञों के मतानुसार भगवान महावीर कोई चिकित्सक नहीं थे, अर्थशास्त्री नहीं थे लेकिन उन्होंने चिकित्सा शास्त्र में, अर्थशास्त्र में सार्थक और मौलिक हस्तक्षेप किया। वे दार्शनिक नहीं थे, पर गीता की उनकी अपनी व्याख्या है। समाजशास्त्री नहीं थे, लेकिन स्त्री कल्याण, दरिद्र उद्धार आदि को उन्होंने अपनी निजी मौलिक योजनाओं के अनुसार प्रस्तुत किया। वे शिक्षाषास्त्री नहीं थे, पर मातृभाषा, शिक्षा प्रणाली, लिपि आदि पर उनके विचार शिक्षा शास्त्रीयों के लिए चुनौती बन गए। महावीर सिर्फ मुक्ति के ही नहीं, जीवन के भी पैरोकार हैं। उनका चिन्तन प्राणी मात्र के जीवन को बचाना चाहता है।
    व्यक्ति सत्ता पर महावीर का अटूट विश्वास है। इसलिए सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र से संपन्न व्यक्ति को महावीर कोई निर्देश नहीं देना चाहते। उनकी दृष्टि में वह तो खुद उनके बराबर है। सच्चा लोकतंत्र सबसे निचले पायदान पर खड़े अपने सदस्य मनुष्य को सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचने की छूट देता है। महावीर के विराट लोकतंत्रात्मक चिंतन में यह छूट जीव मात्र को है जिसमें कोई भी प्राणी महावीर बन सकता है।
    यह बात महावीर के समय में आज से कई गुणा ज्यादा महत्व रखती थी। उस समय धर्म अनेक रूढ़ियों का शिकार था। भगवान महावीर ने धर्म के क्षेत्र में एक मंगल क्रांति सम्पन्न की। उन्होंने उद्घोष किया कि आंख मूूंदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण न करो। धर्म दिखावा नहीं है, रूढि अथवा प्रदर्शन नहीं है। वह किसी के प्रति घृणा व द्वेशभाव की अनुमति नहीं देता। उन्होंने धर्माें के आपसी भेदों के खिलाफ आवाज उठाई। धर्म को कर्मकांडों, अंधविश्वासों, शोषण और भाग्यवाद की अकर्मण्यता से बाहर निकाला। भगवान महावीर के अनुसार धर्म ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिसमें आत्मा का शुद्धिकरण होता है। यह केवल संन्यासियों व मुनियों के लिए नहीं बल्कि सब गृहस्थ स्त्री-पुरूषों के लिए भी आवश्यक है। इसीलिए उन्होंने संन्यासियों के लिए महाव्रतों और गृहस्थों के लिए अणुव्रतों के पालन का विधान किया। उन्होंने संसार को न केवल मुक्ति का संदेश दिया बल्कि मुक्ति की सरल व सच्ची राह भी बताई। यही कारण है कि 26 सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी भगवान महावीर का नाम उसी श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है।
    आज संसार में हिंसा, आतंक, तनाव, अशान्ति और असंतोष की जो स्थिति है, उसका एक मात्र कारण यही प्रतीत होता है कि लोग भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध और गुरू नानक जैसे धर्मावतारों के आदर्श मूल्यों और शिक्षाओं को भुलाकर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के चक्र में आकर अपनी आत्मिक शान्ति को खो बैठे हैं। इसलिए आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि हम सब भगवान महावीर द्वारा प्रतिस्थापित जीवन मूल्यों और शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाएं और स्वयं इनका अनुसरण करें ताकि एक ऐसे मानव समाज का सृजन हो सके जिसमें विश्व के सब लोग धर्म, जाति, समुदाय और क्षेत्र जैसी संर्कीण भावनाओं से उपर उठकर सुख-शान्ति और अमन-चैन के साथ जीवन यापन कर सकें। इसी में आज उनकी जयंती मनाने की सार्थकता निहित है।
    प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत अपने धर्म, मूल्यों, संस्कृति और इतिहास के पुनरूत्थान के लिए जी-तोड़ लगा हुआ है। पिछले नौ वर्षों के दौरान हमें इसके साकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं और युवा पाश्चात्य संस्कृति की अपेक्षा भारतीय संस्कृति से जुड़ने में गौरव का अनुभव कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि यह स्कूल भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों पर चलते हुए बच्चों को सत्य और अहिंसा की शिक्षा प्रदान करेगा।
    अंत में, मैं एक बार फिर सबको महावीर जयंती पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूं। इस पावन अवसर पर मैं आयोजकों के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करता हूॅ की उन्होंने इस समारोह में मुझे आमन्त्रित करके जैन धर्म की अनेक उपयोगी व परोपकारी शिक्षाओं को श्रवण करने तथा जैन धर्म के सिद्धान्तों पर अपने विचार प्रकट करने का सुनहरी अवसर प्रदान किया। इन्हीं शब्दों के साथ मैं सभी तीर्थंकरों को नमन करता हुआ अपना स्थान ग्रहण करता हंू।
    जय हिन्द!