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    महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल में पुरातात्विक और शास्त्रीय साक्ष्यों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनरावलोकन,

    Publish Date: अक्टूबर 10, 2022

    आदरणीय डॉ. रोजर गोपाल जी, त्रिनिदाद गणराज्य के उच्चायुक्त
    डॉ नायब सिंह सैनी जी, सांसद, कुरुक्षेत्र
    श्री लीला राम जी, विधायक, कैथल
    प्रो. के.एन दीक्षित जी, वयोवृद्ध पुरातत्वविद्
    प्रो0 मोहन चंद जी, प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान
    डॉ संजय मौजुल जी, आईकोनिक साइट, संयुक्त निदेशक, पुरातत्व संस्थान
    आदरणीय प्रो0 रमेश चन्द्र भारद्वाज जी, कुलपति, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्याल, कैथल
    उपस्थित सभी अतिथिगण, शिक्षक एवं इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पहुंचे आचार्य तथा शोधार्थिगण!
    मुझे इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर महर्षि वाल्मीकि संस्कृति विश्वविद्यालय में पहुंचकर अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। आशा है कि इस सम्मेलन में शोध-पत्रों की प्रस्तुति से न केवल शोधकर्ता, आचार्य एवं विद्यार्थिगण लाभान्वित होगें अपितु सम्पूर्ण अकादमिक जगत को नई दृष्टि मिलेगी।
    प्रिय भाईयों-बहनों!
    इस समय देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे सुअवसर पर जरूरी हो जाता है कि हम ऐतिहासिक व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं से अवगत हों। ऐतिहासिक घटनाओं व इतिहास पुरूषों के जीवन परिचय से सीख लेकर हम देश की एकता, अखण्डता, सामाजिक सद्भाव और देश के विकास के लिए रोडमैप तैयार कर वर्तमान पीढ़ी को तैयार कर सकते हैं।
    अभी हाल ही में भारत में ही नहीं पूरी दूनिया में दशहरा पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया गया। जगह-जगह रामलीलाओं का मंचन किया गया, जिसमें हमारे आदर्श मर्यादा पुरूषोतम श्री राम के जीवन चरित्र के बारे में दर्शाया गया। देश में ऐसे वीर योद्धा, महापुरूष हुए हैं जिनके बारे में वर्तमान पीढ़ी को बताना अत्यंत आवश्यक है इससेे समाज को मार्गदर्शन मिलता है और राष्ट्र व समाज आगे बढ़ता है।
    अपने पिछले इतिहास, उत्पति और संस्कृति के ज्ञान के बिना व्यक्ति जड़हीन वृक्ष के समान होता है। इतिहास मनुष्य का एक सच्चा शिक्षक है। किसी भी राष्ट्र, समाज, समुदाय को सजीव, उन्नतिशील तथा गतिशील बने रहने के लिए इतिहास का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्तमान समाज को समझने के लिए आवश्यक है कि विकास के उन विभिन्न सोपानों को जान सकें जिनमें से गुजरकर यह समाज वर्तमान स्थिति में आया है। इतिहास किसी तत्कालीन समाज के आचार-विचार, धार्मिक जीवन, आर्थिक जीवन, सांस्कृतिक जीवन, राजनैतिक व्यवस्था, शासन पद्धति आदि सभी ज्ञातव्य बातों का एक सुन्दर चित्र हमारी अंतदृष्टि के सामने स्पष्ट रख देता है। इतिहास के अध्ययन द्वारा ही किसी राष्ट्र के उत्थान की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त होता है।
    आज इतिहास के वास्तविक तथ्यों को उजागर करने व पुनरावलोकन के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया जाना बेहद ही सार्थक है। आजादी के 75 वर्ष के बाद ‘भारतवर्ष का इतिहास को पुनर्कथन, पुनव्र्याख्या और पुनर्खोज की दरकार है। पूर्व में पढ़ाए गए इतिहास में उपनिवेशवादी पश्चिमी दृष्टि का प्रभाव रहा है जिससे भारतीय संस्कृति का ह्रास होता है।
    भाईयों-बहनों!
    विगत साठ वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप, पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया में जो पुरातात्विक खुदाईं हुई हैं उनके साक्ष्य अलग ही तथ्यों को उजागर करते हैं ऐसे में भारतीय इतिहास पुरातात्विक और साहित्यिक स्त्रोतों के आधार पर लिखे जाने से भारतीय समाज के उज्जवल स्वरूप का ज्ञान होगा। इतिहास समाजविज्ञान का विषय है जिसे नए साक्ष्यों के आलोक में बदला जाना आवश्यक है। दुर्भाग्य से हमें उन्नीसवीं सदी के विचारों पर आश्रित इतिहास पढ़ाया जाता है। पुरातात्विक और वैदिक शास्त्रों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनरावलोकन करना समय की मांग है।
    प्राचीन भारतीय इतिहास के संबंध में पुरातत्व के साक्ष्य पूरी तरह से ठोस सबूतों से सुसज्जित हैं। हाल के दिनों में, वैदिक सरस्वती नदी के जलग्रहण क्षेत्र व हरियाणा में मुख्य रूप से राखीगढ़ी, कुणाल, भिराना, फरमाना आदि से खुदाई के माध्यम से कई नई खोजें भी सामने आईं, जिससे प्राचीन भारतीय इतिहास के वास्तविक तथ्यों का पता चलता है।
    प्रिय सज्जनों!
    वर्तमान समय के शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के लिए चुनौती और जिम्मेदारी है कि वे नए पुरातात्विक साक्ष्यों और तथ्यों की पुनव्र्याख्या के आधार पर ‘भारतवर्ष‘ के इतिहास की समीक्षा करें और साथ ही साहित्यिक साक्ष्यों को वस्तुनिष्ठता को रेखांकित करें। भारत के गौरवशाली इतिहास को अपनी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हमारा नैतिक दायित्व है। भारतीय पुरातात्विक और पाठ्य अभिलेखों की धौंकनी हमें ‘भारत‘ के लोगों को एक वास्तविक इतिहास समर्पित करने के प्रेरित कर रही है। इस सम्मेलन का आयोजन पूरी तरह से प्रामाणिकता पर आधारित होगा।
    हरियाणा सरकार पिछले सात वर्षों से सरस्वती नदी के तट पर विकसित एवं पल्लवित वैदिक सभ्यता और संस्कृति की पुनः स्थापना का कार्य कर रही है। हरियाणा सरकार द्वारा सरस्वती नदी में पानी छोड़ने के लिए सरस्वती नदी पुनरोद्वार तथा धरोहर विकास परियोजना के प्रथम चरण के लिए 388.16 करोड रूपये अनुमानित लागत की एक परियोजना को मंजूरी दे दी गई है। वर्ष 2018 में स्थापित यह महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल हरियाणा सरकार के इस महत्वपूर्ण तथ्य को सम्मेलन के माध्यम से अकादमिक आधार देने का प्रसास किया है। अतः मैं एक बार पुनः आप सभी आयोजकों एवं शोधार्थियों को हार्दिक बधाई देता हूं क्योंकि आपने इस विश्वविद्यालय के शिशु अवस्था में होते हुए भी पुरातात्विक एवं साहित्यिक तथ्यों को यथार्थ रूप से परिभाषित करने के लिए तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया है।
    इस सम्मेलन से विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति का हरियाणा ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ऐतिहासिक तथ्यों का भी प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया है। मुझे विश्वास है कि संस्कृत विश्वविद्यालय इस सम्मेलन से प्राप्त निष्कर्षों को राष्ट्रहित में पुस्तक एवं दस्तावेज के रूप में भी प्रकाशित कर पाएगा जिसका लाभ विश्व में कहीं भी बैठे व्यक्ति भी ले पाएगें। एक बार फिर मैं सम्मेलन के आयोजन पर आभार प्रकट करता हूं और सफलता की कामना करता हूं।
    जय हिन्द!