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    भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ के पवित्र पहियों का स्थापना समारोह (सिरसा)

    Publish Date: अप्रैल 10, 2022

    आदरणीय प्रो0 गणेशी लाल जी, राज्यपाल उडीसा
    माननीय चौ0 रणजीत सिंह, बिजली मंत्री हरियाणा सरकार
    डा0 अजय सिंह चौटाला जी,
    माननीय श्री देवेन्द्र सिंह, बबली जी, विकास एवं पंचायत मंत्री हरियाणा सरकार
    श्री बृजमोहन सिंगला जी, समाजसेवी (दिल्ली)
    मनीष सिंगला जी, हारे का सहारा चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रधान
    उपस्थित अधिकारीगण, श्रद्धालु भाईयों-बहनों पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं!
    आज मैं बाबा सरसांई नाथ की नगरी सिरसा में भगवान श्री जगन्नाथ जी के पवित्र रथ के पवित्र पहियों के स्थापना समारोह में पहुंच कर बहुत ही गौरवान्वित और पुण्य का महसूस कर रहा हूँ।
    यह कार्यक्रम प्रो0 गणेशी लाल जी की धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती सुशीला देवी व श्री बृजमोहन सिंगला जी की धर्मपत्नी श्रीमती ललिता देवी की पुण्य स्मृति में आयोजित किया गया है। मैं दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और इस पवित्र समारोह के लिए सिरसा के साथ-साथ हरियाणा की जनता को बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
    ‘‘हारे का सहारा चैरिटेबल ट्रस्ट’’ सिरसा की पूरी टीम का यह सराहनीय प्रयास है। इससे प्रदेश के लोगों को भगवान श्री जगन्नाथ के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा और प्रदेश की जनता में उत्साह, उमंग, उर्जा, ज्ञान तथा अपार श्रद्धा का संचार होगा।
    सिरसा की धरती पहले से ही अध्यात्म का केन्द्र रही है। यहां साधु, संत, महात्माओं और गुरूओं ने क्षेत्र के लोगों का मार्गदर्शन कर उनके जीवन में भगवान के प्रति विश्वास की ज्योति जगाई है।
    देश में धाम, पीठ, मठ, मंदिर व सांस्कृतिक विरासतें भारतीय संस्कृति को और समृद्ध बनाते हैं। यही संस्कृति देश में अनेकताओं के चलते देश को एकसूत्र में पिरो कर रखने का कार्य करती हैं।
    हमारी संस्कृति में चार सिद्ध पीठ हैं। पूर्व में गौवर्धन जगन्नाथ पुरी पीठ, पश्चिम में शारदा मठ, उत्तर में ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड) तथा दक्षिण में श्रृंगेरी रामेश्वर (तमिलनाडु) में स्थित है। चारों दिशाओं में स्थापित में ये पीठ भारतीय संस्कृति हर समुदाय, अमीर-गरीब को समानता और एकरूपता का संदेश देती है।
    सभी समुदायों के लोग तरह-तरह के अनुष्ठानों व समागमों का आयोजन करते हैं। समय-समय पर किए गए धार्मिक व अध्यात्मिक अनुष्ठान से पूरे देश की वेशभूषा, सांस्कृतिक विरासत तथा परंपराओं को जानने का अवसर मिलता है। यहां तक की अन्य राज्यों में विज्ञान व नई टैक्नोलॉजी की विस्तार जानकारी मिलती है, जो राष्ट्रीय एकता के साथ राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    आजादी के अमृत महोत्सव के श्रंृखला में भारतीय संस्कृति और समृद्धता प्रदान करने के लिए केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा सांस्कृतिक समारोह अनुदान योजना, टैगोर राष्ट्रीय फैलोशिप योजना, सांस्कृतिक विरासत नेतृत्व कार्यक्रम, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए योजना, इंटरनेशनल कल्चरल रिलेशन बढ़ावा देने के लिए अन्य योजनाएं शुरू की गई है। इन योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा चालू वित्त वर्ष के बजट में 3 हजार करोड़ से भी अधिक राशि देने का प्रावधान किया गया है। ये सरकार केन्द्र और राज्य सरकार संस्कृति के विकास के लिए प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है। इन योजनाओं के पूरा होने से आत्म निर्भर भारत अभियान को बल मिलेगा।
    आज यहां भगवान श्री जगन्नाथ जी पूरी पीठ से जुड़ा हुआ पवित्र समारोह आयोजित किया गया है। श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। इसमें भाग लेने हेतु लाखों की संख्या में बाल, युवा, वृद्ध, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं। अपने आराध्य भगवान श्री जगन्नाथ के दर्शन करते और मन्नत मानते है।
    युगोंयुगों से महाप्रभु रथ पर स्वार होकर भक्तों को दर्शन देते रहे हैं। जैसे ही भगवान श्री जगन्नाथ रथ पर विराजमान होते हैं, रथ मंदिर बन जाता है, और महाप्रभु उस मंदिर के अधिष्ठाता देवता हैं। इसीलिए रथ को छूने मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय हो जाता है।
    आज उसी पवित्र रथ के पहियों को स्थापित करने का काम उड़ीसा के राज्यपाल प्रो0 गणेशी लाल के प्रयासों से हुआ है। आप लोगों को रथ के पहिये छुने व दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह अपने आप में एक अद्भूत एवं महापुण्य का कार्य है।
    भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ के 16 पहिये, बलभद्र जी के रथ के 14 पहिये, सुभद्रा के रथ के 12 पहिये है इसी प्रकार से इन पहियों की कुल संख्या 42 है। रथ यात्रा के दौरान 42 पहिए और लौटती रथ यात्रा के दौरान 42 पहिए, अर्थात कुल 84 पहियों को जिसने ‘बड़ दाण्ड’ पर चलते हुए देख लिया, उसे 84 योनियों में भटकने के भय और पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।
    इस समग्र सृष्टि में महाप्रभु जगन्नाथ के अलावा कोई देवता ऐसे नहीं हैं, जो अपने रत्न सिंहासन को छोड़ कर अपनी जनता के सुख व समृद्धि की कामना करने के लिए बाहर आते हैं। रास्ते में रुकते हुये, सबकी पुकार सुनते हुये, सबके दुःख दूर करते हुये, सबको ढ़ाढ़स बँधाते हुये गुँडिचा मंदिर तक जाते हैं।
    इन तीनों पवित्र रथों के निर्माण में किसी भी आधुनिक प्रकार के कील, कांटों व धातू का प्रयोग नहीं किया जाता। यात्रा पूरी होने के बाद जब इन रथों का विसर्जन होता है तो रथ के पहियों को धार्मिक संस्थाएं व धार्मिक लोग अपने-अपने क्षेत्रों में ले जाकर स्थापित करते हैं और रथ की लकड़ी का प्रयोग हवन यज्ञ व मंदिर का प्रसाद बनाने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि पवित्र रथ की लकड़ी से हवन यज्ञ करने व प्रसाद प्राप्त करने से और पहियों के मात्र दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है उसकी तुलना किसी बड़े से बड़े पुण्य से भी नहीं की जा सकती।
    अध्यात्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र जीवन में आस्था, विश्वास, निष्ठा, शुद्धता और सकारात्मकता का संचार करते है वहीं इनका साम्प्रदायिक सौहार्द लोक कला, सामाजिक आचार-व्यवहार के प्रबल करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
    जब लोगों में किसी भी सांस्कृतिक सथान के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिाकोण बनता है तो, उससे देश आगे बढ़ता है। पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। देश में जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णोदेवी, रामेश्वर (तमिलनाडु) में श्रृंगेरी मठ, गुजरात में शारदा मठ और उड़ीसा में श्री जगन्नाथ जी तथा देश की चालीस (40) विश्व सांस्कृतिक विरासत हम सबके सामने उदाहरण है।
    भाईयों-बहनों!
    हमारे सांस्कृतिक केन्द्रों का विज्ञान से गहरा संबंध है। भगवान जी जगन्नाथ के पवित्र रथ की बात करें तो इनके दर्शनों से व्यक्ति में धैर्य सहिष्णुता कार्यशीलता, कौशलता और प्रकृति पर्यावरण सरंक्षण का भाव पैदा होता है।
    श्री जगन्नाथ पीठ में अध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान का समावेश है। अध्यात्म हमें धैर्य एवं सहिष्णुता सिखाता है। इससे ओत-प्रोत होकर वैज्ञानिक अत्यंत धैर्य के साथ लंबे समय तक शोध कर अविष्कार करते हैं और उसे मानव जाति को भेंट स्वरूप दे देते हैं। अध्यात्म एवं विज्ञान का एक सुंदर समाहार श्रीक्षेत्र पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रूप में देखा जा सकता है।
    हरियाणा के सिरसा जिले में आज संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म की पवित्र रथ के पहियों के रूप में त्रिवेणी की स्थापना हुई है। इस स्थापना से हरियाणा में साम्प्रदायिक सौहार्द, आपसी भाईचारे के साथ-साथ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और प्रदेश में खुशहाली आएगी।
    अंत में एक बार फिर मैं, इस पुण्य के कार्य के लिए चैरिटेबल ट्रस्ट सिरसा की पूरी टीम को हार्दिक बधाई एवं शुभाकामनाएं देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
    धन्यवाद
    जय हिन्द-जय हरियाणा!