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    भगवान जगन्नाथ यात्रा मनीमाजरा, चंडीगढ के शुभारम्भ अवसर पर दिए जाने वाले भाषण का प्रारूप

    Publish Date: जुलाई 3, 2022

    इस्कॉन के संस्थापक आचार्य भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद जी,
    आचार्य एंव ट्रस्टी गोपाल कृष्ण गोस्वामी जी
    क्षेत्र सचिव नन्द महाराज दास जी,
    चण्डीगढ़ के इस्कॉन अध्यक्ष श्री अकरूर नन्दन जी,
    डॉ पवन शर्मा जी एवं
    श्री निरोत्तमानन्द जी

    चण्डीगढ़ व देश-विदेश से आये श्रद्धालुगण, माताओं, बहनों एवं प्रिय बच्चों।

    भारतवर्ष की सांस्कृतिक धरोहर अत्यन्त प्राचीन एवं अमूल्य है जो देशभर में प्रतिवर्ष मनाये जा रहे विभिन्न त्योहारों, उत्सवों व अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक पर्वों के माध्यम से अपनी छटा बिखेरती रहती है।
    आज इस्कॉन संस्था के द्वारा भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का शुभारंभ किया जा रहा है जोकि सराहनीय कार्य है। इसके लिए मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूँ। श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। इसमें भाग लेने हेतु लाखों की संख्या में महिलाएं, बुजुर्ग, युवा तथा बच्चे देश के विभिन्न प्रदेशों से जाते हैं और अपने आराध्य भगवान श्री जगन्नाथ से आशीर्वाद लेते है।
    हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में आपसी प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से होता है और सभी त्योहारों को लोग मानवीय गरिमा के साथ मिलजुल कर मनाते हैं।
    भारतीय दर्शन ने विश्व को भौतिक प्रगति के साथ साथ अध्यात्म चिंतन के जरिए मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। भगवान ने समय-समय पर इस धरा पर अवतरित होकर मानवता को जीवन की सच्ची राह दिखाई है। इसी तरह भगवान जगन्नाथ अपने मन्दिर से बाहर आकर रथ पर आरूढ़ होकर विचरण करते है और जन मानस पर कृपा बरसाते हैं।
    भगवान जगन्नाथ रथयात्रा हमारा एक महत्वपूर्ण उत्सव है। शास्त्रों के अनुसार जगन्नाथपुरी में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम व बहन सुभद्रा के साथ निवास करते हैं। यह रथ यात्रा लोगों को भेदभाव मिटाकर एक सूत्र में पिरोने का काम करती है।
    यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि आपकी ही भांति आज देश के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकाली जा रही है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का सराहनीय कर्म है। ऐसे कार्य व्यक्ति के मन को शुद्ध और आत्मा को पवित्र करने में सहायक होते है।
    हमारे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी और पूर्व से पश्चिम तक अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल देश का मार्गदर्शन कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णोदेवी, उत्तर में ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड), तमिलनाडु के रामेश्वर में श्रृंगेरी मठ, गुजरात में शारदा मठ और उड़ीसा में श्री जगन्नाथ जी तथा देश में स्थित चालीस (40) से अधिक विश्व सांस्कृतिक विरासत इसके उदाहरण है। चारों दिशाओं में स्थापित ये पीठ भारत की समस्त शक्तियों और संस्कृति को एक जुटता के सूत्र में बांधने का कार्य करते है।
    भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ के 16 पहिये, बलभद्र जी के रथ के 14 पहिये, सुभद्रा के रथ के 12 पहिये है इसी प्रकार से इन पहियों की कुल संख्या 42 है। इस प्रकार रथ यात्रा के आवागमन के कुल 84 पहियों को 84 योनियों का परिचायक मन जाता है।
    आजादी के अमृत महोत्सव पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा सांस्कृतिक समारोह अनुदान योजना, सांस्कृतिक विरासत नेतृत्व कार्यक्रम तथा इंटरनेशनल कल्चरल रिलेशन को बढ़ाने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की है। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 3 हजार करोड़ से भी अधिक राशि का प्रावधान किया गया है।
    अंत में एक बार फिर मैं, इस कार्यक्रम की सफलता के लिए आपकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई एवं शुभाकामनाएं देते हुए कहना चाहता हूं कि
    ’श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् ।
    अर्थात श्रद्धालु जन ही ज्ञान को प्राप्त करते हैं । इसलिए व्यक्ति को प्रत्येक कार्य श्रद्धा से करना चाहिए।

    धन्यवाद
    जय हिन्द!