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    परम श्रेद्धय सेठ श्री प्रकाश चंद्र जी महाराज के जन्मोत्सव कार्यक्रम में आर्य वज्र स्वाध्याय संघ, गोहाना में नववर्ष पर ‘‘त्रेय महोत्सव ‘‘

    Publish Date: जनवरी 1, 2023

    परम श्रेद्धय सेठ प्रकाश चंद्र जी महाराज,
    श्री सुंदर मुनि जी महाराज,
    श्री सुशील मुनि जी महाराज,
    श्री संयति मुनि जी महाराज,
    साध्वी वृन्द सुषमा जी,
    श्री सुरभी जी,
    उपस्थित महानुभाव, श्रद्धालु, भाईयों-बहनों और मीडिया के बंधुओं!

    आप सभी को नववर्ष की बधाई एवं शुभकामनाएं!
    सर्वप्रथम मैं दिव्य एवं अलौकिक गुणों के धनी, मंच पर विराजमान मुनिजनों को सादर नमन करता हूं। मेरे लिए यह बहुत खुशी का क्षण है कि मुझे आर्य वज्र स्वाध्याय संघ, गोहाना में नववर्ष पर त्रेय महोत्सव में परम श्रेद्धय सेठ श्री प्रकाश चंद्र जी महाराज के जन्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला है।
    मैं सेठ प्रकाश चंद्र जी महाराज को उनके 95वें प्रगटोत्सव पर बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं। इसके साथ ही संत सुदर्शन लाल जी महाराज के जन्म शताब्दी वर्ष तथा सुंदर मुनि जी महाराज के 50वें दीक्षा दिवस के लिए सभी श्रद्धालुगण को शुभकामनाएं देता हूं। यह नव वर्ष और त्रेय महोत्सव आपके और प्रदेशवासियों के जीवन में शक्ति, श्रद्धा और खुशियों का संचार करें।
    सेठ प्रकाश चन्द्र जी महाराज तप, त्याग और तपस्या की त्रिमूर्त हैं। इन्होंने जीवन पर्यन्त भारतीय संस्कृति की शुद्ध विरासत को सहेज कर रखा है। ऐसे महान संत के दर्शन पाकर मैं स्वयः को धन्य महसूस कर रहा हूँ। इसी प्रकार श्री सुदर्शन लाल जी महाराज, जो हरियाणा की मिट्टी मे ही जन्में थे, उन्होंने अध्यात्म के साथ भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया और समाज सुधार के कार्य किए। दोनो महान संतों को मेरा वन्दन और श्री सुन्दर मुनि जी महाराज को उनके स्वर्ण जयन्ती दीक्षित वर्ष पर अनेकानेक शुभकामनाएं।
    भाईयों-बहनों!
    पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि तीर्थकरों, आचार्याें और मुनियों द्वारा स्थापित मूल्यों व सिद्धांतांे को अपनाकर ही मानव सभ्यता फल-फूल रही है। यही नहीं उन्हीं मूल्यों को अपनाकर हम वर्तमान में भौतिकवाद का सामना कर सकते हैं। सेठ प्रकाश चंद्र जी महाराज जैसे तपस्वी आज के भौतिकवादी वातावरण में त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में विद्यमान हैं। जैन मुनियों व स्थानक का तप-त्याग व आचरण का उदाहरण संसार में कहीं और देखने को नहीं मिलता। उन्होंने आहार, घर-परिवार का त्याग कर सम्पूर्ण देश की अविराम पैदल यात्रा कर धर्म की अलख व अहिंसा की ज्योति जला दी। ऐसे जैन मुनियों को मेरा बार-बार वन्दन।
    जैन मुनियों की शिक्षाओं में ऐसे मानव का निर्माण है, जिसमें आत्मा की शुद्धि प्रमुख है। इस शुद्धि को प्राप्त करने के लिए मानव को घमण्ड, छल-कपट, लोभ-लालच और असत्यवादन का परित्याग करना होता है। इसके लिए सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र की आवश्यकता होती है। ऐसे गुणों से भरपूर नागरिक महान मानव संस्कृति और महान देश का सृजन व पोषण करते हैं। ऐसे ही महामानवों से प्राचीन काल में भारत विश्वगुरू था।
    समूचे जैन चिंतन व व्यवहार में चरित्र-निर्माण की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई है। भगवान महावीर ने इसके लिए पांच सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य व ब्रह्मचर्य दिए। इन सिद्धांतों को अपनाकर व्यक्ति अच्छा नागरिक ही नहीं बल्कि नर से नारायण बन सकता है। उन्होंने मानव कल्याण व मुक्ति के लिए ’’अहिंसा-परमोधर्म’’ और ’’जीओ तथा जीने दो’’ का जो महान संदेश विश्व को दिया वह हर मानव को किसी देश, क्षेत्र आदि की सीमाओं से उपर उठाकर श्रेष्ठ विश्व नागरिक बनाने में सक्षम है।
    भाईयों-बहनों!
    धर्म मानव-मानव को जोड़ता है। लेकिन वर्तमान युग में यही सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। इस युग में तो भारत में ही नहीं पूरे विश्व में अनेक धर्म और धर्माें में भी अनेक सम्प्रदाय बन गए हैं। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि धर्म मानव-मानव को जोड़ने वाला होना चाहिए। आज समय बदल गया है। इसके अनुसार हमें कुछ बदलाव भी करने पड़ते हैं। हर धर्म का ध्येय प्रकृति, पर्यावरण संरक्षण व मानव कल्याण होना चाहिए। आर्य वज्र स्वाध्याय संघ को मैं बधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि यहां धर्म के प्रचार के साथ-साथ स्वास्थ, शिक्षा और संस्कार निर्माण के लिए अद्भूत कार्य किया जा रहा है।
    आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि हम सब मुनिजनों द्वारा प्रतिस्थापित जीवन मूल्यों और शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाएं और स्वयं इनका अनुसरण करें ताकि एक ऐसे मानव समाज का सृजन हो सके, जिसमे समस्त मानव मात्र धर्म, जाति, समुदाय और क्षेत्र जैसी संकीर्ण भावनाओं से उपर उठकर सुख-शान्ति और अमन-चैन के साथ जीवन यापन कर सकें। जैन मुनि यह काम सदियों से करते आ रहे हैं। इसीलिए अध्यात्म के क्षेत्र में भारत आज भी पूरी दुनिया को राह दिखा रहा है।
    देवियों और सज्जनों!
    भारत वर्ष सदैव ही विश्व संस्कृति का ध्वज वाहक रहा है। पूरी दूनिया भारत को एक संस्कारित देश के रूप में देखती है। आज देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में शांति, सद्भाव और भाईचारा मजबूत हुआ है। यह दूनिया के लिए एक मिशाल है। इसमें हमारे संत, महात्माओं व धार्मिक तथा सामाजिक संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। मेरा आपसे आग्रह है कि संत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय संस्कृति व मुल्यों की अविरल धारा को प्रवाहित करते रहना है तभी भारतवर्ष फिर से विश्व गुरू कहलाएगा।
    अंत में, मैं एक बार फिर सबको परम श्रेद्धय प्रकाश चंद्र जी महाराज के 95वें जन्मोत्सव पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूं। इस पावन अवसर पर मैं आयोजकों के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करता हूॅ कि उन्होंने मुझे यहां आमन्त्रित करके जैन धर्म की स्थानक परंपरा की अनेक उपयोगी व परोपकारी शिक्षाओं को श्रवण करने का सुनहरी अवसर प्रदान किया। इन्हीं शब्दों के साथ मैं सभी तीर्थकरों को नमन करते हुए अपना स्थान ग्रहण करता हंू।
    जय हिन्द!