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    पंडित लेख राम जी का 125 वां बलिदान दिवस (रोहतक)

    Publish Date: मार्च 6, 2022

    आदरणीय आचार्य देवव्रत जी, राज्यपाल गुजरात
    सीकर (राजस्थान) से सांसद-स्वामी सुमेधानंद जी
    श्री उमेद शर्मा जी सभा मंत्री
    स्वामी प्रणवानंद जी
    स्वामी देवव्रत जी
    श्री राम पाल आर्य जी
    श्री प्रकाश आर्य जी
    स्वामी विदेही योगी जी
    स्वामी बलेश्वरानंद जी
    स्वामी धर्मदेव जी
    स्वामी सुखानंद जी
    मंच पर आसीन आर्यप्रतिनिधि सभा हरियाणा के पदाधिकारीगण, देश भर से पधारे विभिन्न आर्यसमाजी भाईयों, आचार्यगण तथा पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं!
    सबसे पहले मैं भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पुरोधा महान विद्वान पं0 लेखराम जी के 125वें बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
    साथ ही साथ आर्य प्रतिनिधि के सभी सम्मानीय पदाधिकारियों को बधाई देता हँू जिन्होंने पण्डित लेखराम जी के बलिदान दिवस पर एक भव्य समारोह का आयोजन कर उन्हें याद किया है।
    पंडित लेखराम जी का जन्म 1858 में जिला झेलम के सैदपुर गांव में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। उन्होंने जीवन भर आर्य समाज के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया।
    पण्डित लेखराम जी ने अपने जीवन में महर्षि दयानन्द के ध्येय वाक्य ‘‘धर्मो रक्षति रक्षतः’’ और आदर्शों को जीवन में उतार कर पूर्ण समर्पित भाव से आर्य समाज का प्रचार-प्रसार किया। आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में इतने लीन हुए कि उस समय उन्हें लोग ‘‘आर्य मुसाफिर‘‘ के रूप में जानने लगे।
    पंडित लेखराम जी जब पेशावर में थे, उनके पास स्वामी दयानंद जी के दो पत्र आए। एक पत्र गौ हत्या रोकने और गौरक्षा आंदोलन चलाने के बारे में था और दूसरा मातृभाषा हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए था। पंडित जी ने महर्षि की आज्ञा अनुसार दोनों कार्यों को पूरे उत्साह से किया।
    वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पंडित जी का मानना था कि तहरीर ;लेखनद्ध और तकरीर ;शास्तार्थद्ध का काम बंद नही होना चाहिए । पंडित लेखराम ने अपने प्राणों की प्रवाह न करते हुए हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन से रोका व शुद्धि अभियान के प्रणेता बने।
    महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने 1875 में मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना कर ओउम् शब्द को ईश्वर का सर्वोत्तम नाम दिया। उस समय हमारे देश में पाखण्ड, छुआछुत, जातिगत भेदभाव, बाल-विवाह, धर्मान्तरण सहित अनेक कुरीतियां व्याप्त थी।
    महर्षि दयानन्द ने इन कुरीतियों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ा। हजारों की संख्या में लोग जुड़ते गए। उस समय पण्डित लेखराम जी ने अजमेर में महर्षि दयानन्द जी के साक्षात दर्शन किए और उनके विचारों को सुना और उन्हें अपने जीवन में भी आत्मसात किया।
    महर्षि दयानन्द जी की शिक्षाओं से ओत-प्रोत पण्डित लेखराम की भी तर्क-वितर्क और शास्त्रार्थ में गहरी रूचि बन गई। इसी रूचि को उन्होंने हथियार बनाया और धर्मान्तरण, पाखण्डता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ लोगों को जागरूक किया।
    देश की नई पीढ़ी को वैदिक संस्कृति का ज्ञान देेने में आर्य समाज अग्रणी रहा है। महर्षि दयानन्द जी ने जीवन की सच्चाई की वास्तविकता बताने के लिए तथा वेदों का शास्त्रीय ज्ञान देने के लिए प्रचार-प्रसार किया। वे कहते थे कि ‘‘किसी व्यक्ति को धर्म और शास्त्र का ज्ञान न हो तो भी तर्क और युक्ति के सहारे ऐसे अधर्मियों से वैदिक धर्म की रक्षा करनी चाहिए‘‘।

    आर्य समाज एक संस्था नहीं बल्कि एक आन्दोलन है। आर्य समाज का एक तरफ अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन था तो दूसरी तरफ समाज में शुद्धि के कार्य के उददेश्य से शुद्ध जीवन, शुद्ध आहार, शुद्ध व्यवहार के लिए जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया गया ।
    आर्य समाज की परम्परा में शुद्धि के लिए हवन यज्ञ किया जाता है। उसी प्रकार से हमें अपने जीवन में शुद्धि लानी होगी ।
    संस्कृत में एक श्लोक है-
    परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
    परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
    जिस प्रकार से परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए जल देती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
    इसी प्रकार से हम सभी ने अपने जीवन में परोपकार की भावना को आत्मसात कर बिना किसी लोभ लालच के गरीबों, वंचितों, पिछड़ों के लिए कार्य करना चाहिए और शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम करना चाहिए। यही आर्य समाज के आन्दोलन में हम सब का योगदान होगा।
    आज देश आजादी का अमृृत महोत्सव मना रहा है। इस मौके पर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी व अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों की आजादी के आन्दोलन में भूमिका को याद करना हमारे लिए गर्व की बात है।
    महर्षि दयानन्द सरस्वती जी व उनके अनुयायिओं पं0 लेखराम जी जैसे सरीखे महापुरूषों को भी याद करते हुए हम अत्यन्त गौरवान्वित हो रहे हैं।
    स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को सामान्यतः आर्य समाज के संस्थापक तथा समाज-सुधारक के रूप में ही जाना जाता है। राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए किये गए प्रयत्नों में उनकी उल्लेखनीय भूमिका की जानकारी बहुत कम लोगों को है।
    हमारे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम, 1857 की क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी और वही उसके प्रमुख सूत्रधार थे।
    स्वामी जी जब देश का भ्रमण कर रहे थे तब उन्होंने देखा की ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों पर बहुत जुल्म कर रही है।
    उन्होंने इन अत्याचारों के विरुद्ध लोगों को जागरूक करना शुरू किया और पूर्ण स्वराज हासिल करने के लिए लोगों को एकजुट करना शुरू किया।
    1857 की क्रांति असफल रही थी। तब स्वामी जी ने कहा था-इस हार से निराश होने की जरूरत नहीं है। यह तो खुश होने की बेला है। आने वाले समय में बहुत जल्द एक और आजादी की लड़ाई की लहर उठेगी जो जालिम अंग्रेजी हुकूमत को किनारे लगा देगी।
    आखिरकार हुआ भी यही महर्षि दयानन्द जी के विचारों से ओत प्रोत होकर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिया गया बलिदान काम आया और 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंका और देश आजाद हुआ।
    स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी दयानंद सरस्वती के योगदान को देखते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था-भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने महर्षि दयानन्द को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था।
    देश की मजबूती, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और अध्यात्म के क्षेत्र में महर्षि दयानन्द जी और उनके अनुयायिओं के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने देश को जो दर्शन 19वीं सदी में दिया, उसी दर्शन को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार आगे बढ़ा रहे हैं।
    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा को रोजगारोन्मुखी विश्वस्तरीय और आधुनिक व्यवस्था के अनुरूप बनाने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों और वैदिक संस्कृृति को बढ़ावा दिया गया है।
    वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के सपने साकार करने और आर्य समाज द्वारा स्थापित मानवीय मूल्यों को आगे बढ़ाने में निरंतर कार्य रहे हैं।
    मुझे आशा है कि आज साधु सन्यासियों और विद्वान् आचार्यों द्वारा महर्षि दयानंद व पं0 लेखराम जी की शिक्षा व समाज सुधार से सम्बन्धित सिद्धांतों के बारे में दिये गये मार्गदर्शन से हम सब तथा विशेष रूप से हमारी नई पीढ़ी जागरूक होगी और नवभारत के निर्माण में अपना योगदान देने के लिए उठ खड़ी होगी।
    मैं इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए आर्यप्रतिनिधि सभा की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि सभी आर्यगण समाज की कुरीतियों को दूर करने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण के अभियान से जुड़ कर युवा पीढ़ी को नई दिशा देने का काम करेंगे। एक बार पुनः मैं आर्यप्रतिनिधि सभा का धन्यवाद करते हुए गायत्री मन्त्र के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
    ॐ र्भूभुवः स्वः।
    तत् सवितुर्वरेण्यं।
    भर्गो देवस्य धीमहि।
    धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
    जय हिंद – जय हरियाणा !