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    कौथीग उत्तरायणी मेला कार्यक्रम, सैक्टर-42 लेक, चण्डगीढ़

    Publish Date: जनवरी 15, 2023

    श्री वासुदेव शर्मा जी, अध्यक्ष, उत्तराखंड युवा मंच,
    पदमश्री डा0 प्रीतम भरतवान जी, सुप्रसिद्ध लोक गायक,
    श्री राकेश कुमार जी, अध्यक्ष, उत्तराखंड युवा मंच,
    उपस्थित उत्तराखंड युवा मंच के पदाधिकारीगण, श्रद्धालु भाईयों-बहनों, महानुभाव, मीडिया के बंधुओं!
    आप सबको पवित्र पर्व कौथीग उत्तरायणी व मकर संक्रांति पर्व की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं व बधाई। आज मुझे इस उत्तरायणी मेला कार्यक्रम में शामिल होकर बहुत खुशी हो रही है। आपने इस पवित्र व भव्य कार्यक्रम में शामिल होने का मौका दिया। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

    भाईयों-बहनों!
    जैसा कि हम सबको पता है कि भारतवर्ष बहुत समृद्ध संस्कृति, सभ्यता, सामाजिक सौहार्द, समानता, श्रद्धा व परंपराओं का देश है। देश में विविधता होते हुए भी एकता है। हमारे त्योहार, पर्व, मेले हमारी समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं और आपस में प्रेम, प्यार, खुशी, भाईचारे का संदेश देकर देश में एक आनंद व उल्लास का वातावरण पैदा करते हैं। इन आयोजनों से संस्कृति का विकास होता है। यह भी सच है कि जहां सुख, शांति होगी वहां समृद्धि होगी। इसलिए ये आयोजन देश व समाज में प्रगति के प्रतीक हैं।
    देश के हर राज्य में तीज, त्योहार और पर्व अपने-अपने तरीके से मनाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को खुशियां बाटते हैं। इसी प्रकार उत्तरायणी व संक्रांति का यह पर्व जो आज हम मना रहे हैं। यह भी देश में समृद्धि लेकर आया है। उत्तरायणी पर्व बागेश्वर में गोमती और सरयू नदी के अलावा भागीरथी के संगम पर बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व पूरे देश में अपनी-अपनी तरह से मनाया जाता है। हरियाणा, पंजाब में मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, आसाम और उतर-पूर्व में बिहु के रूप में मनाया जाता है। उद्देश्य सबका एक ही है, आपस में खुशियां बाटना और एक-दूसरे के सुंदर, स्वस्थ, भविष्य की कामना करना। इन मेलों व पर्वों के माध्यम से प्रकृति, पर्यावरण, धरती, जल, वायु और अन्य जीव को पेड़-पौधों का संरक्षण की भी कामना की जाती है।
    उत्तराखंड राज्य को देव भूमि भी कहा जाता है। राज्य की सभ्यता, संस्कृति बहुत पुरानी है। प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां, वहां के पहाड़, नदियां, वन सम्पदा, सभ्यता, संस्कृति के कारण ही प्रदेश को देवधरा का दर्जा प्राप्त है। भारतीय संस्कृति के अनुसार मान्यता है कि विश्व की प्राकृतिक सम्पदा को बचाए रखने के लिए सूर्य देवता दो बार दिशाएं बदलते हैं। उत्तराखंड में उसे उत्तरायणी और दक्षिणायन कहते हैं। उत्तराखंड की भाषा में उत्तरेणी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि सूर्य देवता ने उतर दिशा में प्रवेश कर बढ़ना शुरू की दिया है। यह उत्तरेणी महोत्सव सूर्य के उतर दिशा में प्रवेश करने का महोत्सव है और सूर्य देवता को समर्पित है। धर्म ग्रंथों में इस पर्व की विशेष महता है।
    उत्तराखंड बागेश्वर में मनाएं जाने वाले इस मेले में कई प्रकार के आयोजन होते हैं। इसमें श्रद्धालु सूर्य देवता से अपने परिवार, समाज, देश, प्रदेश और पूरे मानव मात्र की सुख, समृद्धि की मन्नत मांगते हैं। सच्चे दिल से मांगी गई मन्नत पूरी भी होती है। इसलिए इस पर्व की मान्यता बढ़ रही है और देश की संस्कृति विकसित हो रही है।
    सांस्कृतिक दृष्टि के साथ-साथ ऐतिहासिक दृष्टि से इस मेले की बात की जाए तो इस मेले के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाने का काम किया गया था। उत्तराखंड के बहादुर लोगों ने 1921 में तो बंधुआ मजदूरी के खिलाफ इसी मेले से हूंकार भरी थी और अंग्रेजों पर यह प्रथा बंद करने पर दबाव बनाया गया था। इस आंदोलन को ‘कुली बेगार बंद‘ के नाम से जाना जाता है। इसी आंदोलन से जुड़ने के लिए 1929 में स्वयं महात्मा गांधी जी बागेश्वर आए थे। इसके बाद पूरे देश में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ आवाज उठी थी।
    आज उत्तराखंड की धरती हमारी देश की देव धरोहर है। हमारी संस्कृति का संरक्षण किए हुए हैं वहीं उत्तराखंड के लोगों के बहादुरी के चर्चें भी कम नहीं हैं। हमारी सेनाओं में आज कुमाऊं, गढ़वाल रैजिमेंट सेना की सबसे पुरानी रैजिमेंट है। इस रैजिमेंटों में शामिल उत्तराखंड के जवानों ने सदैव देश की रक्षा में योगदान दिया है। मैं भी उत्तराखंड की बहादुरी व सांस्कृतिक परंपरा का कायल हूं। सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए आज आपने इस मेले का आयोजन किया है। मैं आप सबको एक बार फिर उत्तरायणी पर्व की शुभकामनाएं देता हूं। आप सभी का धन्यवाद करता हूं।
    जय हिन्द!