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    बाल श्रम निषेध दिवस – बाल विकास से ही राष्ट्र की उन्नति संभव

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    बच्चे किसी भी राष्ट्र के भावी निर्माता होते हैं। इस भावी पीढ़ी के सर्वागींण विकास की जिम्मेवारी राष्ट्र के साथ-साथ हम सब की है। बच्चों को बाल श्रम जैसे शिकंजे से उन्मुक्त कर शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाने से ही इनका भविष्य उज्जवल हो सकता है।
    दुनिया भर में बाल श्रम की बुराई व्यापक रूप से घर कर चुकी है। इसके पीछे, गरीबी निरक्षरता, कानून में ढील व सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं। केवल सुदृढ़ आर्थिक स्थिति से ही विश्व का कोई भी देश बाल श्रम की समस्या को समाप्त करने में सफल नहीं हो सकता। बाल श्रम की बुराई को सामाजिक दृष्टिकोण और राजनीतिक संवेदनशीलता से ही दूर किया जा सकता है। विकसित देशों ने बाल श्रम की समस्या का समाधान आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने से बहुत पहले ही कर दिया था।
    विगत् आठ वर्षों में, भारत बाल श्रम रोकने में काफी हद तक सफल रहा है। इस दिशा में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम -2016 एक मील का पत्थर साबित हुआ है। जब मैं केंद्रीय श्रम और रोजगार (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री था तब बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में एक आशा की किरण दिखाई दी और यह अधिनियम तैयार किया गया । अधिनियम के तहत 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को किसी भी व्यवसायिक प्रक्रिया में नियोजित करने की अनुमति नहीं है। 14 से 18 वर्ष के आयु वाले बच्चों को खतरनाक व्यवसायों में नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, यह अधिनियम एक बच्चे को अपने परिवार या पारिवारिक व्यवसाय में मदद करने की छूट देता है बशर्ते कि वह खतरे का व्यवसाय न हो और बच्चे की स्कूली शिक्षा में व्यवधान न हो। बचपन में मैं भी स्कूल समय के बाद अपनी मां ईश्वरम्मा की मदद करता था, जो एक अस्थाई दुकान में प्याज बेचने का कार्य करती थी। यह भी 2016 के बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम से पहले एक दंडनीय अधिनियम था।
    मैं इसे अपने बचपन की घटना से जोड़ना इसलिए चाहता हूॅं क्योंकि आज भी कई माता-पिता अपने बच्चों को बिना खतरे वाली व्यावसायिक गतिविधियों में मदद लेते है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है लेकिन इससे उनकी शिक्षा प्रभावित न हो। मेरी माँ ने मुझे स्कूल के समय में कभी भी अपने काम में मदद नहीं करने दी। आज भी मैं उनके दृढ़ संकल्प का सम्मान करता हूं और उन्हें सलाम करता हूं । इसी सच्चाई के बावजूद हमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और मुझे एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई। अधिकांश बाल मजदूर कम प्रति व्यक्ति आय वाले ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, उन्हें सहयोग की दरकार है।
    सरकार द्वारा मजदूरों के बच्चों की देखभाल के लिए कई पहल की गई हैं ताकि वे शिक्षा और विकास से वंचित न रहें। राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) के तहत विशेष प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से 14 लाख से अधिक बच्चों को मुख्यधारा में लाया गया है, जहां उन्हें टयूटोरियल शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वजीफा, स्वास्थ्य सेवाएं आदि प्रदान किए जाते हैं। ऐसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है और इसे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से जोड़ा जाना चाहिए।
    विशेष प्रशिक्षण केंद्रों (एसटीसी) के माध्यम से बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों को समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत अपनी आजीविका कमाने के लिए तैयार किया जा रहा है, इसमें एनसीएलपी योजना को शामिल किया गया है। प्राय यह देखा गया है कि बच्चे अपनी आजीविका कमाने के लिए अपने माता-पिता के व्यवसायों में आसानी से शामिल हो जाते हैं। ईंट भट्टे इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। इसी तरह, बुनकरों के बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम में लगे रहते हैं। ढाबे, चाय की दुकान, कालीन और चूड़ी बनाने वाली इकाइयों में अक्सर बच्चे कई तरह के काम करते पाए जाते हैं। असंगठित क्षेत्र के बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। उनके नियोक्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है।
    बाल किशोर (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 2016 के उल्लंघन पर प्रभावी कार्रवाई की आवश्यकता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन खतरनाक या गैर-खतरनाक परिस्थितियों में काम करने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए कारगर होगा। अपनी शिक्षा बीच में छोड़ने वाले बच्चों के माता पिता की काउंसिलिंग की जानी चाहिए ताकि वे अपने बच्चों की शिक्षा के दौरान पारिवारिक व्यवसायों में संलग्न न करें। माता पिता को आय अर्जन के रूप में इन बच्चों का शिक्षा के दौरान उपयोग नहीं करना चाहिए। गरीबी बाल श्रम उन्मूलन कार्य में लगी सरकारी व गैर सरकारी एजैन्सियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, कि बच्चे बाल श्रम के दुष्चक्र में वापस न आएं क्योंकि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में माता-पिता को अपने बच्चों को घर पर अकेला छोड़कर काम पर जाना पड़ता है। अगर कोई बच्चा काम करना शुरू कर दे तो उसे शिक्षित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे में 5-8 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को एसएसए के साथ औपचारिक शिक्षा प्रणाली से सीधे जोड़ा जाना नितांत आवश्यक है। इसी तरह, बेहतर निगरानी और कार्यान्वयन के माध्यम से एनसीएलपी को सफल बनाने के लिए एक समर्पित मंच पेंसिल (प्लेटफॉर्म फॉर इफेक्टिव इंफोर्समेंट फॉर नो चाइल्ड लेबर) की प्रभावी निगरानी की जानी जरूरी है।
    मेरा मानना है कि घर में युवा लड़के और लड़कियों के कार्यों को वर्गीकरण करने से इस गंभीर समस्या का समाधान कभी नहीं होगा। जब तक कॉरपोरेट, अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को नहीं अपनाते, तब तक समस्या जस की तस बनी रहेगी। बाल श्रम की समस्या का समाधान सरकारी व गैर सरकारी संगठनों, समाज सेवी संस्थाओं के सहयोग से ही किया जा सकता है।
    मुझे खुशी है कि बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस-2022 बाल श्रम को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण को समर्पित किया गया है। एक बाल-श्रम मुक्त दुनिया सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का आधार है। विश्व स्तर पर 2025 तक बाल श्रम सभी रूपों में समाप्त करने का लक्ष्य है और 2030 तक गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था लागू करके एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा स्थापित करना है। भारत ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। पिछले आठ वर्षों में बाल श्रम के मामलों में गुणात्मक कमी आई है। कोविड -19 महामारी ने हमारे प्रयासों को बाधित किया दिया लेकिन हमारी प्रतिबद्धता परिवारों को संकट के समय बाल श्रम का सहारा लेने से रोकेगी। देश और प्रदेश की सरकारों व हम सब के प्रयासों से भारत जल्द ही बाल श्रम के खतरे से मुक्त होगा।

    • Author : श्री बंडारू दत्तात्रेय माननीय राज्यपाल, हरियाणा
    • Subject : बाल श्रम निषेध दिवस - बाल विकास से ही राष्ट्र की उन्नति संभव
    • Language : hindi
    • Year : 2022