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    Ethics and Philosophy in Shrimad Bhagavad-Gita: Antidote for Challenges and Predicament of Humanity

    Publish Date: सितम्बर 28, 2021

    आदरणीय गीतामनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी
    चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा जी–
    आदरणीय श्री शंकरानन्द जी, सहसंगठन मंत्री भारतीय शिक्षण मण्डल
    भारतीय शिक्षण मण्डल हरियाणा के प्रान्त मंत्री श्री सुनील शर्मा जी–
    डा. राजेश बंसल जी, कुलसचिव, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद–
    आज के कार्यक्रम से जुड़े सभी शिक्षाविद, गणमान्य व्यक्तिगण, श्रद्धालुगण, भाईयो बहनों व पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं।
    मैं भारतीय शिक्षणमण्डल और चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से Ethics and Philosophy in Shrimad Bhagavad-Gita: Antidote for Challenges and Predicament of Humanity विषय पर आयोजित सम्मेलन से जुड़कर बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
    इसके लिए मैं आयोजकों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूँ। मुझे विश्वास है कि श्रीमद्भगवतगीता पर आयोजित यह सम्मेलन हमारी समृद्ध संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं से अधिक से अधिक लोगों को लाभान्वित करेगा।

    गीता का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक धर्मग्रन्थ का रूप उभरकर सामने आता है। इसको पढ़कर पाठक इस नतीजे पर पहुँचता है कि यह ग्रन्थ मानवमात्र के लिये प्रेरणादायक और मनुष्य को हर कठिन परिस्थिति से बाहर निकालने का एक राम-बाण है।
    गीता मनुष्य को जीने की कला सिखाती है। यह मनुष्य को दुःख-सुख, हानि-लाभ, हार-जीत आदि में सन्तुलित रहकर कर्म करने का महान् सन्देश देती है। इसलिए गीता के उपदेश को ‘‘नैतिक मूल्यों व दर्शन’’ में मानवीय जीवन की कठिनाईयों के लिए एक विषहर औषधि माना जाता है और यह शत प्रतिशत सत्य भी है।
    गीता के ज्ञान से सराबोर मनुष्य सुख-दुःख से ऊपर उठकर उनसे उसी प्रकार अछूता रहता है, जैसे जल में रहकर भी कमल का पत्ता जल से अछूता रहता है। क्योंकि इस तरह से मनुष्य को संसार के सुख और दुःख विचलित नहीं कर पाते, इसलिए संसार की बातों से ऊपर उठकर वह एक दिव्य और और गीता ज्ञान से प्रेरित मनुष्य अद्भुत सुख का अनुभव करता है। यही सबसे बड़ा सुख है, यही परम आनन्द है और गीता मनुष्य को इसी आनन्द का रास्ता दिखाती है और मनुष्य के जीवन में आने वाली हर कठिनाई और बाधा का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार करती है। इस प्रकार से मनुष्य के जीवन में आत्मविश्वास को निर्माण करती है।

    गीता की शुरुआत ‘धर्म’ शब्द से होती है-धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। यहां धर्म शब्द किसी सम्प्रदाय या त्मसपहपवद का वाचक नहीं है, अपितु यहाँ धर्म शब्द का अर्थ कर्त्तव्य, न्यायपूर्ण कर्म, नैतिक मूल्य और सामाजिक व्यवस्था, जीवन प्रबंधन आदि समझना चाहिए।

    गीता को ध्यान से पढ़ा जाए तो शुरु से लेकर अन्त तक सम्पूर्ण गीता का यही सार निकलता है कि मनुष्य को अपना कर्त्तव्य सही ढंग से निभाना चाहिए, न्यायपूर्ण कर्म करना चाहिए और सामाजिक व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए। इस प्रकार के आचरण से ही मनुष्य हर स्थिति में सफलता या जय प्राप्त कर लेता है।
    गीता के एक अन्य प्रसंग की चर्चा करना बहुत जरूरी है। गीता का अर्जुन केवल पाण्डुपुत्र अर्जुन नहीं है अपितु यह अर्जुन सारी मानवता का प्रतिनिधि है। धर्म की लड़ाई करने के लिये अर्जुन जब रणक्षेत्र में पहुँचा तो वह अपने पितामह, अपने गुरु और चाचा-ताऊ आदि रिश्तेदारों की मोह-ममता के चक्कर में पड़कर काँप उठा और युद्ध न करने पर अड़ गया। श्रीकृष्ण ने उसे अपना विराट रूप दिखाकर गीता सन्देश के माध्यम से अर्जुन को जीवन की वास्तविकता के बारे में बताया।
    गीता का यह सन्देश यदि विश्व के सारे लोग समझ लें तो फिर सारे झगड़े ही मिट जाएं, सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएं और सारा संसार एक वसुधैव कुटुम्बकम में बदल जाएगा। गीता के इसी अमर सन्देश के आगे सारा संसार युगों-युगों से नतमस्तक है। इसलिये गीता सारे विश्व को समता और ममता का पाठ पढ़ाती है।
    भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान-सागर को 18 अध्यायों तथा 700 श्लोकों की गीता रूपी गागर में भरकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग दिखाया है। इसके 700 श्लोक जीवन के 700 सूत्र प्रतिपादित करते हैं। सच तो यह है कि मानव जीवन की सभी समस्याओं के हल और मानव प्रबन्धन यानी ‘ह्नयूमन मैनेज़मेंट‘ का यह सबसे उत्तम मार्गदर्शक है।
    श्रीमद्भगवद्गीता एक पवित्र ग्रंथ है, जो हमें समानता, न्याय, बंधुत्व और स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त करने और मानवता को खुश करने और खुद को दमन और भेदभाव के चंगुल से मुक्त करने की शिक्षा देता है।
    सुखी एवं समावेशी जीवन ही हमारा लक्ष्य है इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता मानवता की मार्गदर्शक, शिक्षक और दार्शनिक है।
    एक बार फिर मैं भारतीय शिक्षण मण्डल हरियाणा और चौधरी रणबीर विश्वविद्यालय जींद को श्रीमद्भगवतगीता पर सम्मेलन आयोजित करने के लिए बधाई देता हूं। मेरा विश्वास है कि यह सम्मेलन हजारों युवा विद्वानों को राष्ट्र निर्माण और मानवता की रक्षा में रचनात्मक योगदान देने के लिए भी प्रेरित करेगा।

    जय हिन्द! जय गीता! जय हरियाणा!