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हमारे युवा हरित परिवर्तन और आशा के अग्रदूत बने
युवाओं में भारत को और अधिक बेहतर बनाने की अपार क्षमता है। वे नशीली दवाओं के दुरुपयोग, गरीबी और बेरोजगारी जैसी सामाजिक बुराइयों और चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हालाँकि, लोगों के व्यापक हित में उनकी प्रतिभा को उजागर करने के लिए उन्हें सही प्रकार के मानवीय मूल्यों, कौशल और ज्ञान से परिपूर्ण करना समय की मांग है। किसी राष्ट्र की प्रगति युवा ऊर्जा के सर्वाेत्तम और सकारात्मक उपयोग पर निर्भर करती है। अगर युवा गुमराह हों तो समाज को बहुत नुकसान होता है। हमने जापान में युवाओं की ताकत देखी है। इसके दो शहर – हिरोशिमा और नागासाकी – द्वितीय विश्व युद्ध में राख में बदल गए थे। कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और सकारात्मकता के दम पर जापान के युवाओं ने न केवल दो तबाह शहरों का बल्कि पूरे देश का पुनर्निर्माण किया। आज जापान विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्था है। यही देशभक्ति एवं राष्ट्रवाद की शक्ति है! अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस (12 अगस्त) की थीम उपयुक्त है- ’युवाओं के लिए हरित कौशल’ एक सतत विश्व की…

देश के इतिहास में जुड़े काले अध्याय के साये में...
आज एक बार फिर 48 वर्ष पहले आपातकाल की यातनाओं/प्रताड़नाओं से भरे उस काले अध्याय की याद ताजा हो गयी जोकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में दर्ज है। देश में इसी दिन अकस्मात आपातकाल लागु किया गया था। आजाद भारत में घटे इस काले अध्याय को दोहराने का मेरा मकसद यह है कि देश के युवा कर्णधारांे को यह पता चल सके की स्वतंत्र भारत में किस तरह से उनके परिवारों के बुजुर्गाें को अपनी देश की आजादी और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बिना किसी कसूर के यातनाओं और प्रताड़नाओं को जेलों में पड़े रहे कर सहना पड़ा था। निःसंदेह मेरे इन विचारों से देश के युवा कर्णधारांे को प्रेरणा मिलेगी और उनके अन्दर देश भक्ति, देश के प्रति समर्पण और बलिदान की भावना जागृत हो सकेगी तथा वे अपने परिवार के बुजुर्गाे के त्याग और तपस्या पर गर्व महसूस कर सकेंगे। देश में आपातकाल घोषित होने के समय मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कर्मठ एवं सक्रिय प्रचारक था और हैदराबाद एवं…

देश के इतिहास में जुड़े काले अध्याय के साये में...
आज एक बार फिर 48 वर्ष पहले आपातकाल की यातनाओं/प्रताड़नाओं से भरे उस काले अध्याय की याद ताजा हो गयी जोकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में दर्ज है। देश में इसी दिन अकस्मात आपातकाल लागु किया गया था। आजाद भारत में घटे इस काले अध्याय को दोहराने का मेरा मकसद यह है कि देश के युवा कर्णधारांे को यह पता चल सके की स्वतंत्र भारत में किस तरह से उनके परिवारों के बुजुर्गाें को अपनी देश की आजादी और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बिना किसी कसूर के यातनाओं और प्रताड़नाओं को जेलों में पड़े रहे कर सहना पड़ा था। निःसंदेह मेरे इन विचारों से देश के युवा कर्णधारांे को प्रेरणा मिलेगी और उनके अन्दर देश भक्ति, देश के प्रति समर्पण और बलिदान की भावना जागृत हो सकेगी तथा वे अपने परिवार के बुजुर्गाे के त्याग और तपस्या पर गर्व महसूस कर सकेंगे। देश में आपातकाल घोषित होने के समय मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कर्मठ एवं सक्रिय प्रचारक था और हैदराबाद एवं…

अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस
आइए हम सब मिलकर नशाखोरी का प्रतिकार करें नशीली दवाओं के दुरुपयोग की समस्या वैश्विक स्तर पर भयानक रूप से फैल चुकी है। इस वर्ष के विश्व मादक पदार्थ निषेध दिवस का विषय पीपुल फर्स्ट – कलंक और भेदभाव को रोकें, रोकथाम बढ़ाएं पूरी तरह उपयुक्त है। यह एक कटु वास्तविकता है कि नशीली दवाओं के दुरुपयोग से पीड़ित व्यक्ति को पारिवारिक व सामाजिक अलगाव और लोगों की उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। इससे निश्चित रूप से उन्हें बहुत मानसिक और शारीरिक कष्ट और आघात पहुंचता है। वे आवश्यक मदद से भी वंचित रह जाते हैं। इससे उनका और उनके परिवारों का जीवन दयनीय और कठिन बन जाता है, इसलिए, नशीली दवाओं से छुटकारा पाने की नीतियों के लिए एक जन-केंद्रित सोच की आवश्यकता है, जो मानव अधिकारों और करुणा पर लक्ष्यित हों। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के पीड़ितों की सामाजिक और भावनात्मक उपचार के साथ मदद करना और साथ ही नशीली दवाओं और अवैध तस्करी के बढ़ते जाल के बारे में प्रभावी कदम उठाना एक बड़ा और मुश्किल…

भारत रत्न डॉ बीआर अम्बेडकर होने की सार्थकता
सदियों से हम एक राष्ट्र के रूप में अस्पृश्यता और जाति-आधारित भेदभाव से निपटने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। इस तरह की अमानवीय प्रथाओं ने हिंदुओं के एक बड़े वर्ग को नीचा दिखाया, जिन्हें अछूतों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। समय-समय पर महान आत्माओं ने हमें विभिन्न सामाजिक बुराइयों से उबारने का प्रयास किया। उनमें से कुछ थे संत शिरोमणि रविदास, संत चोखामेला, संत कबीर दास, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी राम कृष्ण परमहंस और संत तुकाराम। 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक के उत्तरार्ध में, सुनहरे भविष्य की उम्मीदों से भरा हुआ एक मासूम सा बालक स्कूल की अपनी कक्षा में बड़ी मेहनत से पढ़ाई कर रहा था। वह कक्षा में किस स्थान पर और किसके साथ बैठेगा यह उसके लिए यह कोई मुद्दा नहीं था। हालांकि, जब अन्य छात्रों को उसकी अछूत जाति के बारे में पता चला तो उसे कक्षा में सबसे पीछे बैठा दिया गया। एक बार वह अपने भाई और फुफेरे भाई के साथ अपनी बुआ के गांव जा रहा था। जब पता चला…