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Emergency is Darkest Period in the Indian History
चंडीगढ, 25 जून- हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की यादों को ताजा करते हुए बताया कि जब 26 जून को सुबह लोगों को पता चला कि देश में सरकार द्वारा आपातकाल लगा दिया गया है, जिससे सारे देश में अफरा तफरी का माहोल हो गया था। उन्होंने बताया कि उस दौरान मैं आरएसएस का प्रचारक था। आपातकाल के नाम पर देश में बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया, बड़े-बड़े नेताओं को अटल बिहारी वाजपेय, मोरारजी देसाई, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस और बहुत से नेताओं को मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट MISA के तहत गिरफ्तार किया गया। उन्होंने बताया कि 26 जून को सुबह जब मैं दौरा करने के लिए निकला तो मैंने पाया कि हमारे कार्यालय पर पुलिस वाले तलाशी करने के लिए आ रहे थे, मैं वहां से चला गया लेकिन मुझे पता नहीं था कि कहां जाना है यदि किसी संघ के कार्यकर्ता के घर पर जाता तो वहां भी पुलिस की निगरानी लगाई गई थी। ऐसी स्थिति में…
डॉ. बी. आर अंबेडकर : समावेशिता, न्याय और समानता के...
भारत रत्न डॉ. बीआर अंबेडकर को न्यायपूर्ण और समावेशी भारत के निर्माण में उनके योगदान के लिए हमेशा सम्मानजनक ढंग से याद किया जाएगा। 14 अप्रैल 1891 में पैदा हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक न्याय के संरक्षक देवदूत, समावेशिता, न्याय और समानता के अग्रदूत थे। एक प्रख्यात न्यायविद्, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक के रूप में, उन्होंने अपना जीवन हमारे देश में जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। भारतीय संविधान के वास्तुकार के रूप में, उन्होंने सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की। दलितों और अन्य उत्पीड़ित जातियों के अधिकारों के लिए उनकी निरंतर वकालत से हमारे सामाजिक ताने-बाने में महत्वपूर्ण सुधार हुए। डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा उठाए गए कारगर कदमों एवम् उनकी विरासत आज भी वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों को प्रेरित कर रही है, सम्मान और समानता के लिए प्रयास कर रहे वंचित समुदायों के लिए आशा की किरण के रूप में खड़ी है, सामाजिक न्याय के उनके दृष्टिकोण से हम बहुत कुछ सीख…
विकसित भारत@2047 के राष्ट्र कल्याण के लक्ष्य को साकार करने...
19वीं सदी के भारतीय दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता, महान विचारक, वक्ता, कवि और युवाओं के महान संरक्षक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को भारत और दुनिया के उत्थान के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में जाना है। उनका मानना था कि युवाओं के भीतर छिपी शक्ति का यदि उपयोग किया जाए और उसे महान आदर्शों की ओर निर्देशित किया जाए, तो समाज में गहरा परिवर्तन आ सकता है। स्वामी जी ने युवाओं में चरित्र निर्माण, नैतिक अखंडता और आत्मविश्वास की मजबूत भावना के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उन्हें आधुनिक शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत की, जो न केवल ज्ञान प्रदान करे बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी के साथ कर्तव्य और आत्मनिर्भरता की भावना को भी बढ़ावा दे। स्वामी विवेकानन्द जी एक महान हिंदू संत थे जिनकी जयंती हम हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं उन्होंने युवाओं की एक ऐसी पीढ़ी की कल्पना की थी जो निडर, निस्वार्थ और मानवता की सेवा के…
हमारे युवा हरित परिवर्तन और आशा के अग्रदूत बने
युवाओं में भारत को और अधिक बेहतर बनाने की अपार क्षमता है। वे नशीली दवाओं के दुरुपयोग, गरीबी और बेरोजगारी जैसी सामाजिक बुराइयों और चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हालाँकि, लोगों के व्यापक हित में उनकी प्रतिभा को उजागर करने के लिए उन्हें सही प्रकार के मानवीय मूल्यों, कौशल और ज्ञान से परिपूर्ण करना समय की मांग है। किसी राष्ट्र की प्रगति युवा ऊर्जा के सर्वाेत्तम और सकारात्मक उपयोग पर निर्भर करती है। अगर युवा गुमराह हों तो समाज को बहुत नुकसान होता है। हमने जापान में युवाओं की ताकत देखी है। इसके दो शहर – हिरोशिमा और नागासाकी – द्वितीय विश्व युद्ध में राख में बदल गए थे। कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और सकारात्मकता के दम पर जापान के युवाओं ने न केवल दो तबाह शहरों का बल्कि पूरे देश का पुनर्निर्माण किया। आज जापान विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्था है। यही देशभक्ति एवं राष्ट्रवाद की शक्ति है! अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस (12 अगस्त) की थीम उपयुक्त है- ’युवाओं के लिए हरित कौशल’ एक सतत विश्व की…
देश के इतिहास में जुड़े काले अध्याय के साये में...
आज एक बार फिर 48 वर्ष पहले आपातकाल की यातनाओं/प्रताड़नाओं से भरे उस काले अध्याय की याद ताजा हो गयी जोकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में दर्ज है। देश में इसी दिन अकस्मात आपातकाल लागु किया गया था। आजाद भारत में घटे इस काले अध्याय को दोहराने का मेरा मकसद यह है कि देश के युवा कर्णधारांे को यह पता चल सके की स्वतंत्र भारत में किस तरह से उनके परिवारों के बुजुर्गाें को अपनी देश की आजादी और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बिना किसी कसूर के यातनाओं और प्रताड़नाओं को जेलों में पड़े रहे कर सहना पड़ा था। निःसंदेह मेरे इन विचारों से देश के युवा कर्णधारांे को प्रेरणा मिलेगी और उनके अन्दर देश भक्ति, देश के प्रति समर्पण और बलिदान की भावना जागृत हो सकेगी तथा वे अपने परिवार के बुजुर्गाे के त्याग और तपस्या पर गर्व महसूस कर सकेंगे। देश में आपातकाल घोषित होने के समय मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कर्मठ एवं सक्रिय प्रचारक था और हैदराबाद एवं…