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    स्वामी विवेकानंदः युवाओं के लिए सच्चे आदर्श और मार्ग दर्शक

    राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र में राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में स्वामी विवेकानंद को नमन करते हुए

    भारत में 19वी सदी में अंग्रेजी शासन का बोल-बाला था और दूनिया हमें हेय दृष्टि से देखती थी। उस समय भारत माता ने एक ऐसे लाल को 12 जनवरी 1863 में जन्म दिया, जिसने भारत के लोगांे का ही नहीं पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया। माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा। इसके बाद वे आध्यात्म से सरोबोर होकर स्वामी विवेकानंद कहलाए। स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्व भर में फैलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वाेच्चता स्थापित की।
    योगिक स्वभाव से परिपूर्ण, वे बचपन से ही ध्यान का अभ्यास करते थे। श्री रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। इनका सम्बन्ध गुरु-शिष्य संबंध के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने नवंबर 1881 में एक दिन श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा, सर, क्या आपने भगवान को देखा है? उन्हांेने “हाँ“ में उत्तर दिया और कहा कि मैं उन्हें उतने ही स्पष्ट रूप से देखता हूं, जितना कि मैं आपको देख रहा हूं।
    श्री रामकृष्ण परमहंस के दिव्य मार्गदर्शन में, स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक पथ पर अद्भुत प्रगति की। 11 सितंबर, 1893 को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में उनके भाषण ने दुनिया भर के धार्मिक और आध्यात्मिक सन्तों पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत अमेरिकी बहनों और भाईयों के रूप में संबोधित करते हुए की, जिससे पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उन्होंने कहा जिस गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल में मेरा स्वागत किया है, उस से मेरा हृदय गद-गद है। भारत भूमि के सभी समुदायों, वर्गों व लाखों-करोड़ों भारतीयों तथा धर्मभूमि की तरफ से मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं।
    उन्होंने कहा था- “मुझे उस धर्म व राष्ट्र से संबंध रखने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता सिखाई है। हम न केवल सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास रखते हैं बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे भारतीयता होने पर गर्व है, जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के पीड़ितों और शर्णार्थियों को आश्रय दिया है। स्वामी जी का दृढ़ मत था कि सभी मार्ग एक सच्चे ईश्वर की ओर ले जाते हैं, जैसा कि ऋग्वेद में भी उल्लेख किया गया है कि “एकम सत विप्र बहुदा वदन्ति“ अर्थात सत्य एक है; दार्शनिक इसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं।
    उनके भारतीय धर्मनिरपेक्षता के विचार सभी धर्मों के लिए समान थे। उन्होंने सदैव सार्वजनिक संस्कृति के रूप में धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया, क्योंकि वे सद्भाव और शांति चाहते थे। यह केवल एक सुझाव नहीं था, बल्कि जाति या धर्म के आधार पर बिना किसी भेदभाव के लोगों की सेवा करने का एक मजबूत इरादा था। उनके विचारों में धर्मनिरपेक्षता के संबंध में तुष्टिकरण के लिए कोई स्थान नहीं था। यह सर्व समावेशी था, जिसका उन्होंने अमेरिका में प्रचार किया और 1893 में विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक व्याख्यान देने के बाद यूरोप का भी व्यापक दौरा किया।
    जब वे चार साल बाद अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा कर भारत लौटे तो वेे मातृभूमि को नमन कर पवित्र भूमि में लेट कर लोट-पोट हुए। यह मातृभूमि के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा और मां भारती के प्रति प्रेम था। उन्होंने कहा कि मातृभूमि का कण-कण पवित्र और प्रेरक है, इसलिए इस धूलि में रमा हूं। उन्होंने माना कि पश्चिम भोग-लालसा में लिप्त है। इसके विपरीत आध्यात्मिक मूल्य और लोकाचार भारत के कण-कण में रचा बसा है।
    स्वामी विवेकानंद की दिव्यता, नैतिकता, पूर्व-पश्चिम का जुड़ाव व एकता की भावना विश्व के लिए वास्तविक संपत्ति है। उन्होंने हमारे देश की महान आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए एकता की भावना को परिभाषित किया। उनके बारे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लिखा है ‘‘स्वामीजी इसलिए महान हैं कि उन्होंने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान, अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित किया है, देशवासियों ने उनकी शिक्षाओं से अभूतपूर्व आत्म-सम्मान, आत्मनिर्भरता और आत्म-विश्वास आत्मसात किया है।‘‘ इसी ऐतिहासिक संबोधन से प्रभावित होकर प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ए.एल. बाशम ने कहा था-स्वामी विवेकानंद जी को भविष्य में आधुनिक दुनिया के प्रमुख निर्माता के रूप में याद किया जाएगा।”
    स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के लिए कहा था ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए‘‘। वे युवाओं में आशा और उम्मीद देखते थे। उनके लिए युवा पीढ़ी परिवर्तन की अग्रदूत है। उन्होंने कहा था- “युवाओं में लोहे जैसी मांसपेशियां और फौलादी नसें हैं, जिनका हृदय वज्र तुल्य संकल्पित है।“ वह चाहते थे कि युवाओं में विशाल हृदय के साथ मातृभूमि और जनता की सेवा करने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो। उन्होंने युवाओं के लिए कहा था “जहां भी प्लेग या अकाल का प्रकोप है, या जहां भी लोग संकट में हैं, आप वहां जाएं और उनके दुखों को दूर करें“ आप पर देश की भविष्य की उम्मीदें टिकी हैं।
    स्वामी विवेकानंद के आदर्शों से प्रेरित होकर, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्म निर्भर, स्वस्थ भारत अभियान शुरू किया है, जिस पर 2025-26 तक 64,180 करोड़ रूपए खर्च होगें। इसका उद्देश्य 10 उच्च फोकस वाले राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सुदृढ़ करना है। सभी राज्यों में 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित करना और 602 जिलों और 12 केंद्रीय संस्थानों में विशेष केयर अस्पताल स्थापित करना है। सरकार का यह कदम इस मन्सा को दर्शाता है कि स्वस्थ लोग ही मजबूत राष्ट्र और जीवंत समाज का निर्माण कर सकते हैं।
    अपनी भारत यात्रा के दौरान, स्वामी विवेकानंद विशेष रूप से दलितों में भयानक गरीबी और पिछड़ेपन को देखकर बहुत प्रभावित हुए। वह भारत के पहले धार्मिक नेता थे, जिनका यह मानना था कि जनता ही जनार्दन है। जनता की उपेक्षा करने से देश पिछड़ जाएगा। सदियों से चले आ रहे दमन के कारण सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की अपनी क्षमता पर उन्होंने प्रश्नचिन्ह लगाया। उन्होंने महसूस किया कि गरीबी के बावजूद, जनता धर्म से जुड़ी हुई है, क्योंकि जनता को यह नही सिखाया गया कि वेदांत के जीवनदायी सिद्धांतों और उन्हें व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार से धारण किया जा सकता है।
    वे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार करने, आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक बल को मजबूत करने में शिक्षा को ही एकमात्र साधन मानते थे। उनके शब्दों में शिक्षा मनुष्य को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार करने में मदद करती है। शिक्षा चरित्रवान, परोपकार और साहसी बनाती है।
    आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गई है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी-2020) स्वामी विवेकानंद के वैज्ञानिक दृष्टिकोण, नैतिक मूल्यों और नए भारत के निर्माण की दृष्टि के अनुरूप है। एनईपी-2020 में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना, शिक्षा में मातृभाषा को बढ़ावा देना और समावेशी शिक्षा के लिए प्रावधान करने के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 2035 तक 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है। इसके साथ-साथ साढ़े तीन करोड़ नए पद सृजित करना है। यह शिक्षा नीति दलितों, पिछड़ों के समग्र और समावेशी सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए स्वामी जी के दृष्टिकोण को आत्मसात करने में एक गेम चेंजर साबित होगी। आज सभी सरकारें, विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाएं 2030 तक एनईपी-2020 को लागू करने के लिए एकजुट होकर काम कर रही हैं। हरियाणा सरकार ने तो इसे 2025 तक लागु करने की तैयारी पूरी कर ली है।
    दिव्यात्मा स्वामी विवेकानंद ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका की कल्पना की। इसलिए जब वे एक जहाज में प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेदजी टाटा से मिले, तो उन्होंने विज्ञान के विकास में उनकी मदद मांगी। स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर जमशेदजी टाटा ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु की स्थापना की। वे भारतीय संस्कृति व पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के दोनों सर्वाेत्तम पहलुओं को सामने लाना चाहते थे।
    स्वामी जी का दर्शन और आदर्श भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हैं। वे महान विचारक, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी, कवि और युवा संरक्षक थे। स्वामी विवेकानंद के दिखाए रास्ते पर चलकर ही एक भारत-श्रेष्ठ भारत, आत्म निर्भर भारत, स्वस्थ भारत और भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना साकार किया जा सकता है। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के सुशासन केंद्र में हैं। आइए हम अमृत काल में एक महान दार्शनिक, विचारक और युवाओं के प्रेरणा पुंज, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं, राष्ट्रीयता की भावना, देशभक्ति, विविधता में एकता और समावेशिता को आत्मसात करने का संकल्प लें। यही स्वामी विवेकानंद को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

    • Author : श्री बंडारू दत्तात्रेय माननीय राज्यपाल, हरियाणा
    • Subject : स्वामी विवेकानंदः युवाओं के लिए सच्चे आदर्श और मार्ग दर्शक
    • Language : Hindi
    • Year : 2023