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    हैदराबाद में सर्वाथ संक्षेमा समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम

    Publish Date: जून 19, 2022

    आज आप अपनी समिति का स्थापना दिवस मना रहे हैैं। वर्ष 1992 में स्थापित इस संस्था द्वारा आप प्रतिवर्ष यज्ञ, सेमिनार, स्मृति भाषण तथा प्रवचन सहित अन्य कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे है।
    इसके साथ ही सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए आप निरंतर प्रयासरत हैं। आज आप अपना 30वां स्थापना दिवस मना रहे है।
    इस कार्यक्रम के आयोजन में पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव के भाई श्री पी वी मनोहर राव महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है।
    पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव जी का जन्म 28 जून 1921 को आन्ध्रप्रेदश के करीमनगर में हुआ था तथा 23 दिसम्बर 2004 को स्वर्गवास हो गया।
    वे 20 जून 1991 से 16 मई 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। वह दक्षिण से बनने वाले पहले प्रधानमंत्री थे।
    वे बहुप्रतिभा के धनी थे और उन्हें भारतीय संस्कृति से काफी लगाव था।
    इन्हें “भारतीय आर्थिक सुधारों के जनक” भी कहा जाता है। इनके आदेश पर तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ मनमोहन ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष नीति प्रारंभ की।
    भारत के राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने इनके लिए कहा था कि यह ऐसे देशभक्त है जो देश को राजनीति से सर्वाेपरी मानते है।
    1996 के चुनाव में काँग्रेस की हार के बाद उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। इसके बाद राव ने साहित्य में अपना योगदान दिया। उन्हें 17 भाषा बोलने में महारथ थी। इनकी मातृ भाषा तेलगु थी, लेकिन इनकी मराठी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी।
    उन्होंने कई उपन्यास को हिंदी में और हिंदी को अन्य भाषा में रूपांतरित किया। बाबरी मस्जिद एवम् राम मंदिर पर भी लेख एवम् किताबें लिखी।
    नरसिम्हा राव जी ने ज्ीम प्देपकमत दवअमस में अपने राजनैतिक अनुभवों को लिखा।
    वे 1962 से 1971 तक आंध्रप्रदेश मंत्रीमंडल में शामिल रहे और एक बडे नेता के रूप में पहचाने जाने लगे। उन्होंने 1971 से 1973 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य किया।

    आज आपने 12 महत्वपूर्ण लेखकों को आमंत्रित किया है, जिन्होंने श्री राव पर पुस्तकें लिखी है। इनमें प्रसिद्ध लेखक ैीतप डनअअं टतनेींकतपचंजीप भी प्रमुख तौर पर उपस्थित है।
    पुस्तकों से हमारी बुद्धि और ज्ञान का विकास होता है जोकि हमंे सभ्रांत लोगों के संग रहने और अच्छी पुस्तके पढने के लिए प्रेरित करती है।
    इससे पहले भी आपने अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। इनमें एक-दो कार्यक्रमों में मैंने भी भाग लिया था।

    ऐसे आयोजनों के लिए आपको निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए क्योंकि हमारे साहित्यिक पुस्तकों में कहा गया है कि
    गच्छन् पिपिलिको याति योजनानां शतान्यपि । अगच्छन् वैनतेयः पदमेकं न गच्छति ॥
    अर्थात लगातार चल रही चींटी सैकड़ों योजनों की दूरी तय कर लेती है, परंतु न चल रहा गरुड़ एक कदम आगे नहीं बढ़ पाता है ।
    धर्म का हमारे जीवन में अति महत्वपूर्ण स्थान है, जोकि हमें हमेशा अपने कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित करता रहता है। हमारे शास्त्रों में कहा कि
    उद्योगिनं पुरुषसिंहं उपैति लक्ष्मीः
    दैवं हि दैवमिति कापुरुषा वदंति।
    दैवं निहत्य कुरु पौरुषं आत्मशक्त्या
    यत्ने कृते यदि न सिध्यति न कोऽत्र दोषः।
    अर्थात मेहनती तथा साहसी लोगों को ही लक्ष्मी और लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। परन्तु जो भाग्य के सहारे बैठे रहते हैं वे तो निकम्मे लोग होते हैं।
    आपने अनेक यज्ञों का अनुष्ठान भी किया है। यज्ञ के विषय में कहा गया है कि
    ‘यज्ञो वै श्रेष्ठतमं् कर्मम्’
    यानि यज्ञ दुनिया का सबसे श्रेष्ठ कर्म है चाहे वह किसी भी प्रकार से किए गए शुभ कार्य रूपी यज्ञ हो।

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