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    सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र

    Publish Date: दिसम्बर 9, 2021

    माननीय श्री आचार्य देवव्रत जी, राज्यपाल गुजरात
    आदरणीय श्री श्री श्री त्रिदंडी चिन्ना श्री मन्नारायणा रामानुज जीयर स्वामीजी
    आदरणीय स्वामी ज्ञानानन्द जी
    आदरणीय कंवर पाल जी, शिक्षामंत्री हरियाणा सरकार
    आदरणीय श्री इंद्रेश जी
    आदरणीय जनरल जी.डी. बख्शी जी
    आदरणीय श्री नायब सिंह सैनी जी सांसद, कुरूक्षेत्र
    आदरणीय श्री सुभाष सुधा जी, विधायक, थानेसर
    श्री सोमनाथ सचदेवा जी कुलपति, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र
    आदरणीय मौलाना कौकब् मुजतबा जी
    श्री विजय सिंह दहिया जी,
    श्री मुकुल कुमार जी, उपायुक्त कुरूक्षेत्र
    श्री अनुभव मेहता जी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड
    उपस्थित विद्ववान, गणमान्य महानुभाव, श्रद्धालु, भाईयो और बहनों, पत्रकार एवं छायाकार साथियों !
    सर्वप्रथम,
    अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के पावन पर्व पर मैं जन-जन को शुभकामनाएं देता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह महोत्सव आप सभी के जीवन को ज्ञान के आलोक से जगमगाए।
    आप सभी का इस पावन पर्व में सम्मलित होने पर मैं स्वागत करता हूँ व अपने वक्तव्य का आरम्भ गीता के ही एक श्लोक से करता हूँ जो इस प्रकार हैः-
    सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
    श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।
    भावार्थ है कि:- हे भरतवंश यानि भारत की जनता। मनुष्य की श्रद्धा और विश्वास उसके अन्तकरण के अनुरूप होती है। श्रद्धा और विश्वास से ही मनुष्य आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता है।
    आज हम ‘‘आत्मनिर्भर भारत’’ बनाने का जो सपना संजोये हुए हैं यह सपना गीता के श्लोक से प्रेरणा पाकर आगे बढ़ने से ही पूरा हो सकता है।
    गीता में कई तरह के दार्शनिक तथा धार्मिक सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया है, जैसे योग, स्वधर्म, स्थितप्रज्ञ, आपद धर्म, कर्म योग ,लोक संग्रह की अवधारणा, राज ऋषि का सिद्धांत तथा निष्काम कर्म का सिद्धांत इत्यादि।
    गीता के सभी सिद्धांतों का केंद्र बिंदु मनुष्य को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना ही है। श्रीमद्भागवत गीता में कृष्ण के द्वारा दिए गए अर्जुन को उपदेशों का वर्णन किया गया है, जब रण के मैदान में अर्जुन अपने क्षत्रिय धर्म को इस बात पर टालना चाहता है, कि जिन से वह युद्ध कर रहा है, वह उसके शत्रु ना होकर उसके ही परिवार के लोग हैं।
    गीता का प्रमुख उद्देश्य सभी परिस्थितियों में व्यक्ति को अपने कर्तव्य पथ से विचलित ना होने का संदेश देना है। इसके लिए भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्म करने की शिक्षा दी। श्री कृष्ण ने अर्जुन को संदेश देते हुए बताया कि परिणामों की ओर ध्यान ना देकर तथा फल की इच्छा किए बगैर अपने कर्तव्यों का पालन करते रहें।
    ज्ञान योग, भक्ति योग, तथा निष्काम कर्म योग तीनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है ! इसकी सही व्याख्या करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 12वें श्लोक में बताया है कि लगातार किए गए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से भी श्रेष्ठ भक्ति है, भक्ति से भी श्रेष्ठ निष्काम कर्म योग है क्योंकि निष्काम कर्म योग करने से ही से शांति प्राप्त होती है।
    2020 में कोविड महामारी के प्रकोप से विश्व में सब कुछ स्थिर हो गया था, तब भी हमारे समाज ने वंचित व व्यथित लोगों की रक्षा के लिए जिस तरह से सामने आकर काम किया है, वह निष्काम कार्य की एक जीवन्त मिशाल है और यह गीता का ही सच्चा परिचारक है। गीता से हमें सीख मिलती है कि विपदा का हमें हिम्मत और दृढ़ता से सामना करना है और विपदा के समय गीता हमारा मनोबल बढ़ाती है।
    गीता में कर्मवाद व कर्तव्य का मुख्य वर्णन है। कर्मवाद व कर्तव्य से ओतप्रोत ज्ञानी, और कर्मठ व्यक्ति को गीता जीवन की सही राह दिखा रही है। गीता किसी एक मजहब का पवित्र ग्रंथ न होकर बल्कि समस्त प्राणी जगत के कल्याण की अनुठी वैश्विक प्रेरणा है।
    प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।
    आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।
    कहने का भावार्थ है किः- जिस समय मनुष्य अन्तर्मन की सभी कामनाओं को त्याग देता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है, उस समय वह स्थित प्रज्ञ यानि ज्ञानी कहलाता है।।
    जब जब जीवन में हम राह से भटकते है या असमंजस की स्थिति में होते है तब तब हमें एक सच्चे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती हैं. मेरे जीवन में भागवत गीता ने यह भूमिका अदा की है जीवन के समक्ष जब भी नयें प्रश्न उपस्थित हुए, मेरा रुख गीता की ओर हुआ और मैंने संतोषजनक जवाब मिला है। कुछ सरल सी अवधारणाएं गीता में दी गई जिसको लेकर मनुष्य सदैव अनुतरित रहता हैं।
    भगवान श्री कृष्ण ने जिस दिन अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, उसे गीता जयंती (ळपजं रंलंदजप) के रूप में मनाया जाता है यानी श्रीमद् भगवद गीता के जन्मदिन के तौर पर इस दिन को देखा जाता है.
    यह शुक्ल एकादशी के दिन मनाई जाती है जो इस वर्ष 14 दिसम्बर को मनाई जा रही है। इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है।
    गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी जिंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें।
    श्रीमद्भगवद्गीता जिसे सम्मान से गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, भारतीय धर्म, दर्शन और अध्यात्म का सार है। जो वेदज्ञान नहीं पा सकते, दर्शन और उपनिषद् का स्वाध्याय नहीं कर सकतेय भगवद्गीता उनके लिए अतुल्य सम्बल है। जीवन के उस मोड़ पर जब व्यक्ति स्वयं को द्वन्द्वों तथा चुनौतियों से घिरा हुआ पाता है और कर्तव्य-अकर्तव्य के असमंजस में फंस जाता हैय भगवद्गीता उसका हाथ थामती है और मार्गदर्शन करती है।
    गांधी जी का कहना था कि ‘जब कभी संदेह मुझे घेरते हैं और मेरे चेहरे पर निराशा छाने लगती है। मैं क्षितिज पर गीता रूपी एक ही उम्मीद की किरण देखता हूं। इसमें मुझे अवश्य ही एक छन्द मिल जाता है जो मुझे सान्त्वना देता है। तब मैं कष्टों के बीच मुस्कुराने लगता हूँ।
    गीता को लेकर अल्बर्ट आइंस्टाइन से बेहतर वर्णन कौन कर सकता है, जिन्हें अफसोस था कि वे अपने यौवन में इस ग्रन्थ के बारे में जानकारी नहीं थी नहीं तो उनके जीवन की दिशा कुछ और होती। उनका कहना था कि ‘जब मैं भगवद्गीता पढ़ता हूं तो इसके अलावा अन्य ग्रंथ पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
    बाल गंगाधर तिलक ने अपनी गीता रहस्य नामक पुस्तक में कहा है कि श्रीमद्भगवतगीता हमारे धर्म ग्रंथों का एक अत्यंत तेजस्वी और निर्मल हीरा है।
    भगवद्गीता भारत की सभी धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परम्पराओं में सहज स्वीकार्य है। सांख्य, योग, वेदान्त के तो अनेक रहस्य इसके श्लोकों में समाहित हैं हीय न्याय, वैशेषिक और मीमांसा के सूत्रों की व्याख्या भी यहाँ उपलब्ध हो जाती है। यह वेद से लेकर दर्शनों के सिद्धान्तों और उपनिषदों से पुराणों तक की कथावस्तु को अपने में समेटे हुए है।
    गीता के सन्देश को जनसामान्य के लिए बोधगम्य बनाने के लिए आदिशंकराचार्य, रामानुजाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, मध्वाचार्य, बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, विनोबा भावे, सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर, सुभाषचन्द्र बोस, स्वामी चिन्मानन्द व अन्य महानुभावों ने गीता से ही प्रेरणा ली है। गीता के इन भाष्यों से इसके अनुशीलकों को नई प्रेरणा और जीवनदृष्टि मिलती है चाहे वे वैज्ञानिक, मनस्विद, राजनीतिज्ञ, सन्यासी, दार्शनिक, शिक्षक या विद्यार्थी ही क्यों न हांे। गीता के सन्देश से प्रेरणा पाकर देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर किया था। आज उन्हीं की बदोलत देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि वे हमें इस महान उपदेश से अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाने का आशीर्वाद प्रदान करें। साथ ही साथ देश को सुदृढ़, एक भारत-श्रेष्ठ भारत बनाने की शक्ति प्रदान करें।
    हम भाग्यशाली हैं कि भाारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागु की गई है। इस शिक्षा नीति में गीता के उपदेश के आधार पर नैतिक मूल्यों, नेतृत्व, कर्म, कर्तव्य, जिम्मेवारी, प्रगति का समावेश किया गया है, जो भारत को फिर से विश्व गुरू बनाने का मार्ग प्रसस्त करेगी।
    इस अवसर पर मंच पर आसीन सभी संत-महात्माओं, लोकप्रतिनिधि, गणमान्य व्यक्तियों तथा सभा मंे समुपस्थित देश-विदेश से आए सभी विद्वानों विदुशियों, देवियों तथा सज्जनों का, विश्वविद्यालय के आचार्य, विद्यार्थियों व उपस्थित जनों का मैं हृदय से स्वागत एवं अभिनन्दन करता हूं। गीता देश के जन-मानस की नस-नस में वास करती है। जरूरत इस बात की है कि गीता के प्रति आम-जन का आकर्षण और उबारना है। इसके साथ-साथ बच्चों, विद्यार्थियों में गीता के पठन-पाठन की संस्कृति और अधिक विकसित करनी है। जिससे हम विश्वभर में गीता का सन्देश पहुंचा पाएंगे।

    गीता ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब मनुष्य, मिथ्या, नशें से दूर होंगे, सत्य और दयावान होंगे, अहंकार से रहित होंगे वे एक संतुष्ट योगी होंगे। इसके साथ-साथ अपनी इंद्रियों व शरीर को वश में रखने वाले होंगे व बुद्धिमान भी होंगे। ऐसे चरित्रवान लोग राजनितिज्ञ, उद्योगपति, वैज्ञानिक और शिक्षक बनेंगे तो भारतवर्ष फिर से विश्वगुरू होगा।

    मैं आशा करता हूं कि तीन दिन तक चलने वाली इस संगोष्ठी में विद्वान्, वक्ता, पत्र वाचक एवं विचारक गीता की सार्वभौम प्रासंगिकता को आज के राष्ट्रीय, सामाजिक एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अवश्य स्थापित करेंगे, जो भारत को फिर से विष्वगुरू बनाने में एक मील का पत्थर सबित होंगे।
    धन्यवाद।
    जय हिन्द-जय गीता।