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    सन्त ज्ञानेश्वर गीता प्रचार समिति (रजि0) पानीपत

    Publish Date: अक्टूबर 21, 2021

    वेद विद्यालय व श्री बाँके बिहारी ज्ञानेश्वर मंदिर में लोकार्पण समारोह।
    1. आदरणीय श्री ओम बिरला जी, अध्यक्ष, लोक सभा
    2. आदरणीय महामण्डलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी
    3. आदरणीय योग ऋषि स्वामी रामदेव जी
    4. आदरणीय स्वामी गोविन्द देव गिरी जी, कोषाध्यक्ष, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट
    5. आदरणीय श्री कपिल जिन्दल जी, सम्माननीय आचार्यगण, सन्त ज्ञानेश्वर गीता प्रचार समिति के सम्माननीय सदस्यगण, श्रद्धालुगण, बहनों-भाईयों, पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं।
    मैं वेद विद्यालय व बाँके बिहारी ज्ञानेश्वर मन्दिर के लोकार्पण समारोह में उपस्थित होकर अत्यन्त ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हँू। सबसे पहले मैं पानीपत में इस गरिमापूर्ण व गौरवशाली कार्यक्रम में शामिल होने पर सभी महानुभावों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करता हँू। साथ ही सन्त ज्ञानेश्वर प्रचार समिति को इस आध्यात्मिक व पवित्र आयोजन के लिए शुभकामनाएं व बधाई देता हूँ।
    गीता व वेदों का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में धर्मग्रन्थों का रूप उभरकर सामने आता है। इनको पढ़कर पाठक इस नतीजे पर पहुँचता है कि ये ग्रन्थ मानवमात्र के लिये प्रेरणादायक हैं। जिस प्रकार गीता मनुष्य को जीने की कला सिखाती है और मनुष्य को दुःख-सुख, हानि-लाभ, हार-जीत आदि में सन्तुलित रहकर कर्म करने का महान् सन्देश देती है। उसी प्रकार वेद मनुष्य को सुखपूर्वक जीने की राह बताते हैं। वेदों में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रशासनिक व्यवस्था व परस्पर सम्बन्ध आदि विषयों का ज्ञान भरा हुआ है।
    गीता की शुरुआत ‘धर्म’ शब्द से होती है-धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। यहां धर्म शब्द किसी सम्प्रदाय या त्मसपहपवद का वाचक नहीं है, इसी प्रकार वेदमंत्र की शुरूआत ऊँ भूर्भवः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् से शुरू होती है। इस मंत्र का संबंध भी किसी मज़हब विशेष से न होकर व्यक्ति को बुरे कर्मों के प्रयोग से छुटकारा दिलवाने के लिए जागरूक करता है।
    इस प्रकार गीता व वेदों को ध्यान से पढ़ा जाए तो शुरु से लेकर अन्त तक सम्पूर्ण ग्रन्थों का यही सार निकलता है कि मनुष्य को अपना कर्त्तव्य सही ढंग से निभाना चाहिए, न्यायपूर्ण कर्म करना चाहिए और सामाजिक व्यवस्थाओं का पालन कर बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए।
    गीता व वेद ज्ञान सारे संसार को एकता और भाईचारे के सूत्र में बाँधने का काम करते है। पवित्र ग्रन्थ, श्रीमद्भगवद गीता व वेदों की महत्ता के विषय में जितना भी कहा जाए कम है। आज भारत की पहचान विश्व में श्रीमद्भगवद गीता, योग, आर्युवेद, वेदान्त, संगीत, शिल्प व अनगिनत आध्यात्मिक विधाओं से है। भारत की भूमि अनगिनत आध्यात्मिक रत्नों की खान है।
    इसी धरोहर को सहेजने के लिए व आगे बढ़ाने के लिए हमारी धार्मिक संस्थाएं पूरे सामर्थय के साथ कार्य कर रही हैं। आज समाज में नशा, अपराध, दुरूचार को रोकने के लिए सरकार अपने स्तर पर कानून के माध्यम से कार्य कर रहीं है । सरकार के साथ-साथ समाजिक संस्थाओं का भी दायित्व है कि वे वर्तमान पीढ़ी को नैतिक शिक्षा देकर समाज में समरस्ता बढ़ाएॅं। हम सभी को भी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक जज़्बे के साथ कार्य करना होगा। हर व्यक्ति को गीता व वेदों के प्रचार के लिए काम करना होगा नहीं तो भारतीय संस्कृति पर अन्यों संस्कृतियों का प्रभाव बढ़ जाएगा। इसके लिए हमें सांस्कृतिक समरस्ता का निर्माण कर वेदमन्त्रों की गूंज को और तेज़ करना है।
    वर्तमान शिक्षा की व्यवस्था में आज संवैधानिक व नैतिक मूल्यांे का भीे समावेश करना नितांत आवश्यक है। इससे देश की युवा पीढ़ी समृद्ध संस्कार ग्रहण कर देश को फिर से विश्व गुरू बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
    श्री कृष्ण वेद विद्यालय व श्री बाँके बिहारी ज्ञानेश्वर मंदिर के लोकार्पण समारोह में शामिल होने के लिए मैं सन्त ज्ञानेश्वर गीता प्रचार समिति, पानीपत का आभार प्रकट करता हूँ और एक बार फिर हरियाणा की इस पावन धरा पर सभी महापुरूषों का स्वागत करता हूँ।
    जयहिन्द!