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    संत सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव, कुरूक्षेत्र

    Publish Date: दिसम्बर 3, 2022

    आदरणीय श्री बनवारी लाल पुरोहित जी, राज्यपाल पंजाब एवं प्रशासक चण्डीगढ़,
    आदरणीय स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज,
    आदरणीय स्वामी धर्मदेव जी,
    आदरणीय बाबा गुरविन्द्र जी,
    आदरणीय बाबा भूपेन्द्र सिंह जी,
    आदरणीय आचार्य विवेकमुनी जी,
    आदरणीय स्वामी बंसीपुरी जी,
    आदरणीय संत सत्यात्मा नंद जी,
    आदरणीय संत ब्रहमदास जी,
    आदरणीय श्री सतपाल जी,
    आदरणीय संत सम्पूर्णानंद जी,
    आदरणीय स्वामी साक्षी गोपाल जी,
    आदरणीय संत रविशाह जी,
    विश्व हिंदू परिषद एवं देशभर से आए प्रमुख माननीय संत महात्मा साहेबान, उपस्थित विद्वतजन, श्रद्धालुगण, धर्म-प्रेमी बहनों और भाइयांे, पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं !
    आज के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, इसी दिन को गीता जयंती (ळपजं श्रंलंदजप) के रूप में मनाया जा रहा है। आज इस पवित्र दिन का स्वरूप इतना बड़ा हो गया है कि पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है।
    यह जयंती मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन मनाई जाती है जो आज 03 दिसम्बर को है। विधिपूर्वक पूजन व उपवास का अवसर कल यानि चार दिसम्बर को है। इस दिन उपवास व पूजन से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है।
    गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है कि-
    धर्म एव हतो हन्ति धर्माे रक्षति रक्षितः।
    तस्माद्धर्माे न हन्तव्यो मा नो धर्माे हतोऽवधीत्।।

    अर्थात् जो लोग धर्म की रक्षा करते हैं उनकी रक्षा स्वतः परमात्मा द्वारा होती है। धर्म की रक्षा करने से प्रकृति की रक्षा हो जाती है। जल, वायु, आकाश, अग्नि, पृथ्वी, वन एवं पर्यावरण की रक्षा होती है। इन सब की रक्षा से मानव की रक्षा होती है।
    अर्जुन जब अधर्म के खिलाफ रणक्षेत्र में पहुंचे तो वह अपने पितामह, अपने गुरू और परिजनों, रिश्तेदारों की मोह-ममता के चक्कर में पड़कर कांप उठे और युद्ध न करने का निश्चय करने के लिए आतुर हो गए। श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाकर धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि-
    क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
    क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥

    हे अर्जुन! तुम इस कार्यरता, नपुंसकता को मत प्राप्त हो जो तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। इस दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के मैदान में खड़े हो जाओ और धर्म की रक्षा करो।
    अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् !
    सम्भावितस्य चाकीर्ति र्मरणादतिरिच्यते !!
    अर्थात सदैव आपकी कीर्ति और यश का गुणगाण होगा नहीं तो अपकीर्ति का भी बखान होगा जो मृत्यु से भी बढ़कर है।
    इस धर्म युद्ध से प्रकृति, पर्यावरण, वन और जल की रक्षा होगी, जो मानव कल्याण के लिए नितांत आवश्यक है।
    हे अर्जुन! मनुष्य की आत्म चेतना पांच सुक्ष्म तत्वों आकाश, जल, वायु, अग्नि व पृथ्वी से है। ये पांच तत्व पांच भौतिक तत्वों को जन्म देते हैं, जिनसे पांच ज्ञानेन्द्रियां सृष्टि, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद और गन्ध जागृत होती हैं, तब पांच कर्मइन्द्रियों का जन्म होता है। धारणा, गति, उत्सर्जन, प्रजनन और आत्म चेतना। समस्त इन्द्रियां ब्रहम और परमात्मा के मध्य कार्य करती हैं।
    कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
    मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
    अर्थात हे अर्जुन! तुम्हारा कर्म करने का अधिकार और कर्तव्य है, उसके फलों का नहीं। तुम संसार के माया जाल को छोड़ कर कर्म करो और मेरा अनुसरण करो। तुम आत्म बल और दृढ़ इच्छा से सांसारिक कल्याण के लिए युद्ध के लिए तैयार हो। मैं तुम्हारे साथ हूं। तब अर्जुन उठ खड़े हुए और अधर्म के खिलाफ लड़े और धर्म की जीत हुई। श्रीमद्भगवत गीता से हमे यही प्रेरणा मिलती है कि आज के संदर्भ में भी गीता इसी तरह प्रासंगिक है।
    आज पूरा विश्व भौतिकता के जाल में जकड़ा हुआ है। सब ओर पूंजीवाद का बोलबाला है और सभी सत्ता की तरफ दौड़ रहे हैं। जिससे समता का भाव कम होता जा रहा है। इससे मानव में वैमनस्य की भावना बढ़ी है और आतंकवाद बढ़ा है। वर्तमान पीढ़ी के दिगभ्रमित होने की सम्भावनाएं बढ़ी हैं।
    ऐसे वातावरण में केवल गीता का सन्देश ही पूरे विश्व में मानव समाज को सही व सच्ची राह दिखा सकता है। गीता हमें मानवीय, पारिवाहिक मूल्यों से ओत-प्रोत करती है। इससे समाज का जुड़ाव होता, वैमनस्य की भावना खत्म होती है। विश्व में गीता का सन्देश जितने प्रभावी रूप से पहुंचाया जाएगा उतनी ही शान्ति, सद्भाव व भाईचारे की भावना बढ़ेगी धर्म की रक्षा होगी और प्रगति के मार्ग प्रशस्त होंगें।
    वर्तमान में गीतोपदेश के प्रचार-प्रसार की सबसे अहम जिम्मेवारी सन्त, महात्माओं, प्रचारकों, शिक्षाविदों की है जो समाज को नई दिशा देने का काम करते है। सच्चे संत जाति, धर्म, मत, पंथ, सम्प्रदाय आदि दायरों से परे होते हैं। ऐसे करुणावान संत ही अज्ञान-निद्रा में सोए हुए समाज के बीच आकर लोगों में भगवद्भक्ति, भगवद्ज्ञान, निष्काम कर्म की प्रेरणा जगाकर समाज को सही मार्ग दिखाते हैं।
    आज हमारे बीच में संत जनों के चरण पड़े हैं। इससे पूरी मानवता के लिए आध्यात्म, योग और धर्म रक्षा का मार्ग प्रसस्त होगा। मुझे विश्वास है कि हम गीता की प्रासंगिकता को प्रमाणित कर मानवता को एक नई राह दिखाने में कामयाब होगें।
    मैं कुरूक्षेत्र की पावन धरा को नमन करता हूँ। इस पवित्र भूमि की गणना विश्व के प्राचीनतम तीर्थस्थल के रूप में होती है। माना जाता है कि गंगा के जल से तो मुक्ति प्राप्त होती है, वाराणसी (काशी) की भूमि और जल में मोक्ष देने की शक्ति है, परन्तु कुरूक्षेत्र के जल, थल और वायु-तीनों ही मुक्ति प्रदान करते हंै।
    इस अवसर पर मंच पर आसीन सभी संत-महात्माओं तथा सभा मंे उपस्थित देश-विदेश से आए सभी विद्वानों, विदुषियों, देवियों तथा सज्जनों का, मैं सन्त सम्मेलन में हृदय से स्वागत एवं अभिनन्दन करता हूं।
    गीता देश के जन-मानस की नस-नस में वास करती है। गीता के प्रति आम-जन के आकर्षण को और उबारना है। छात्रों व युवा पीढ़ी में गीता के पठन-पाठन की संस्कृति और अधिक विकसित करनी है, जिससे हम विश्वभर में गीता का सन्देश पहुंचा पाएंगे।
    इससे पूरी दुनिया में गीता के उपदेश की बयार बहेगी और भारतवर्ष के साथ कुरूक्षेत्र का नाम और विख्यात होगा। संत सम्मेलन के इस पवित्र आयोजन के लिए मैं कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड की पूरी टीम को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
    धन्यवाद।
    जय हिन्द-जय गीता!