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    विश्व परमार्थ फाउण्डेशन, पंचकूला

    Publish Date: अगस्त 16, 2022

    आदरणीय श्री ज्ञानचंद गुप्ता जी, अध्यक्ष, हरियाणा विधान सभा

    आदरणीय श्री सम्पूर्णानन्द जी, सचिव श्री अग्नि अखाड़ा

    आदरणीय श्री अतुल कोठारी जी, शिक्षा न्यास, दिल्ली
    आदरणीय श्री मुरलीधर राव जी, प्रभारी भारतीय जनता पार्टी , मध्य प्रदेश
    आदरणीय श्री विचित्रानन्द महाराज जी,
    उपस्थित अधिकारीगण, महानुभाव, भाईयों-बहनों, पत्रकार एवं छायाकार बन्धुओं!

    आज समय की आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए विश्व परमार्थ फाउण्डेशन के तत्वावधान में ‘शिक्षा में भारतीय मूल्यों का महत्व‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इसके लिए मैं श्री सम्पूर्णानंद ब्रह्मचारी जी व विश्व परमार्थ फाउण्डेशन से जुड़ी सभी विभुतियों को साधुवाद देता हूं। मुझे खुशी है कि आपने संगोष्ठी के ऐसे विषय का चयन किया जो शिक्षा को चरित्र एवं मानवीय मूल्यों से जोड़ता है।
    । विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
    ।। पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।।

    संस्कृत भाषा के इस उपनिषद श्लोक में उल्लेखित “विद्या” शब्द से तात्पर्य है “शिक्षा” से है। वह ज्ञान जो ऋषियों की देन है, वह शिक्षा जो हमारे धर्मशास्त्र पर आधारित है। यह शिक्षा मनुष्य को विनम्रता प्रदान करती है, और विनम्रता किसी भी मनुष्य को किसी कर्म के लिए योग्य बनाती है। जब मनुष्य योग्यता पा लेता है तो वह अपने बलबूते पर धन भी प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है और इसके फलस्वरूप मनुष्य धार्मिक कार्यों को भी संपन्न करता है। यही धार्मिक कार्य मनुष्य को परम आनंद की प्राप्ति करवाते है। इसका मूल अर्थ यह है कि मनुष्य को शिक्षित और ज्ञानवान तथा विवेकवान होने की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है।
    आज देश में शिक्षा के क्षेत्र में इसी श्लोक को चरितार्थ करने की जरूरत है। यह तभी हो सकता है जब देश की शिक्षा व्यवस्था में भारतीय मूल्यों का समावेश होगा। भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों व समुदायों के लोग रहते हैं। सदियों-सदियों से देश समृद्ध व विविध मान्यताओं, परंपराओं व शाश्वत मूल्यों की अनुपालन कर रहा है। इसी कारण से ही भारतीय संस्कृति का पूरे विश्व में अपना महत्व है। पिछले लंबे समय से भारत में विदेशी शासन के चलते देश की सभ्यता व संस्कृति को नुकसान पहुंचाया गया और भारतीय संस्कृति को शिक्षा से ही दूर नही रखा गया बल्कि हमारे लोगों को शिक्षा से ही दूर कर दिया गया।
    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी देश में लार्ड मैकाले पद्धति की शिक्षा को लागू रखा गया जिससे देश में बाबू संस्कृति विकसित हुई और देशवासियों को अंग्रेजी का गुलाम बना दिया गया। विदेशी भाषा जानना, सीखना अच्छी बात है, लेकिन गुलाम बनना ठीक नहीं।
    देवीयों और सज्जनों!
    विश्व प्रसिद्ध महान अत्याधिक संत स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘‘हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, मानसिक विकास और बुद्धि का विकास हो, मनुष्य स्वयं और राष्ट्र को आत्म निर्भर बनाने में सक्षम हो‘‘।
    महात्मा गांधी जी ने अपने जीवन में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के आवश्यक मूल्यों पर आधारित शिक्षा की योजना की वकालत की है। उन्होंने भारत के लिए औपनिवेशिक प्रणाली की आलोचना की।
    इसी प्रकार पूर्व राष्ट्रपति व महान शिक्षक डा0 राधाकृष्णन सर्वपल्ली ने शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के साधन के रूप में परिभाषित किया है।
    देश के विभिन्न महान शिक्षा शास्त्रियों, दार्शनिकों तथा समाज सुधारकों ने शिक्षा को भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा के उचित उद्देश्यों के निर्माण की आवश्यकता जताई।
    इन्हीं उद्देश्यों को मद्देनजर रखते हुए शिक्षा सुधार के लिए देश में डा0 के.कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया गया। डा0 रंगन समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू की गई। इस रिपार्ट में डा0 कस्तूरीरंगन ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप मिशन नालंदा, मिशन तक्षशिला संचालित करने की सिफारिश की।
    इसके साथ-साथ रिपोर्ट में पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण, व्यवसायिक शिक्षा के मानक, प्रौद्योगिकी, एकीकरण, वयस्क शिक्षा और आजीवन सिखने की पहलों की सिफारिश की थी। इसी प्रकार से नई शिक्षा नीति में विश्व स्तरीय रोजगारोन्मुखी और कौशल शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति मूल्यों, मातृ भाषा, प्रथाआंे, परम्पराआंे, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों इत्यादि के समावेश की भी वकालत की। इसी रिपोर्ट को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परिलक्षित किया गया।
    नई शिक्षा नीति में जहां प्रोद्यौगिकी, ऑन लाईन शिक्षा, इनोवेशन, रोजगारपरक शिक्षा, कम्प्यूटर आधारित विश्व स्तरीय शिक्षा के ढांचे पर बल दिया गया है। वहीं युवा पीढ़ी को चरित्रवान बनाने पर भी सांस्कतिक, सामाजिक मूल्यों व मातृ भाषा के साथ व्यावहारिक शिक्षा पर महत्व दिया गया है।
    हमारे बच्चे मातृ भाषा में शिक्षा ग्रहण कर भारतीय संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में समावेश कर पाएगें। भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा ग्रहण कर युवा पीढ़ी नशा, जातिवाद, छुआछुत, भ्रष्टाचार, दहेज प्रथा व अन्य सामाजिक कुरितियों से दूर होगी। एक समृद्ध समाज और नव-भारत का निर्माण होगा। इससे बच्चे अपने देश की संस्कृति से रू-ब-रू होगें, उनमें आत्म विश्वास पैदा होगा। इस प्रकार से बच्चों की प्रतिभा निखरेगी और पुरूषार्थ से लबालब होगें और जीवन के हर क्षेत्र में अपना शत-प्रतिशत देकर देश का नाम रोशन करेगें।
    शिक्षक, हमारी शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। योग्य समर्पित, ईमानदार, सहृदय व निष्ठावान शिक्षक वर्तमान शिक्षा के स्वरूप में बदलाव ला सकते हैं। वर्तमान संदर्भ में शिक्षा केवल भौतिक उपलब्धियां प्राप्त करने का साधन ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के बौद्धिक व मानसिक विकास का भी सशक्त माध्यम होनी चाहिए।
    मेरी शिक्षाविदों से अपील है कि वे विद्यार्थियों में नई चेतना, नई उमंगों को जगाते हुए उन्हें मानवीय मूल्यों व आदर्शों से भी जोड़े, जिससे विद्यार्थियों में देश प्रेम, राष्ट्र भक्ति की भावना के साथ-साथ सामाजिक समरसता का भाव पैदा होगा।
    मैं विश्व परमार्थ फाउण्डेशन को बधाई देता हूं कि आपके द्वारा समय-समय पर जन कल्याण, सामाजिक मूल्यों, जन चेतना जगाने, समरसता बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षा व सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। निश्चित रूप से इस प्रकार के कार्यक्रमांे का समाज में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण महत्वपूर्ण योगदान होगा। इसी के साथ मैं विश्व परमार्थ फाउण्डेशन की पूरी टीम को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
    धन्यवाद!
    जय हिन्द!