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    ‘‘गुरु जम्भेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार‘‘ में रजत जयंती अवसर पर दिए जाने वाले भाषण का प्रारूप

    Publish Date: मई 20, 2022

    महामहिम राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय जी द्वारा 20 मई 2022 को ‘‘गुरु जम्भेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार‘‘ में रजत जयंती अवसर पर दिए जाने वाले भाषण का प्रारूप
    सम्बोधन-
    1. विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. बलदेव राज कम्बोज जी,
    2. कुलसचिव प्रो. अवनीश वर्मा जी,
    3. दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक, प्रो. ओ. पी. सांगवान जी,
    4. विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के पूर्व निदेशकगण,
    5. कार्यक्रम में उपस्थित देश की प्रगति में अहम योगदान दे रहे विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रगण,
    अन्य अधिकारीगण, अभिभावकगण एवं प्रिय विद्यार्थियों।
    आज आपके विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा विभाग के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन वर्षों में आपने एक लम्बा सफर तय किया है और अनेक ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित किया है, जोकि आज भी देश व प्रदेश की उन्नति में अपना अहम् योगदान दे रहे हैं।
    इस समय देश की आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है, जिसके अन्तर्गत देश व प्रदेश में अनेक बडे़ आयोजन किए जा रहे हैं। आपका यह कार्यक्रम भी इस दिशा में महत्वपूर्ण है। इसके लिए मैं विश्वविद्यालय प्रशासन, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय एवं पूर्व छात्रों को इस रजत जयंती अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
    आपके विश्वविद्यालय का नाम, जिन महान संत गुरु जम्भेश्वर जी के नाम पर हैं, उन्होंने पन्द्रहवीं शताब्दी में प्रकृति के उद्धार की आवश्यकता की परिकल्पना की थी और उसके साथ सामंजस्य बढ़ाने के मार्ग का अनुसरण किया। उनकी उनतीस (29) शिक्षाएं मानव विकास और जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।
    गुरू जम्भेश्वर जी बिश्नोई संप्रदाय के संस्थापक थे। इन्होंने सन् चौदह सौ पिचासी (1485) मे बिश्नोई पंथ की स्थापना की। वे भगवान विष्णु के ‘हरि’ नाम का जाप किया करते थे। बिश्नोई शब्द मूल रूप से यही से निकला है, जिसका अर्थ है 29 नियमों का पालन करने वाला।
    गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि भगवान सर्वत्र हैं। वे हमेशा पेड़ पौधों वन एवं वन्यजीवों सभी जानवरों पृथ्वी पर चराचर सभी जीव जंतुओं की रक्षा करने का संदेश देते थे।
    किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं वनस्पतियों के प्रकारों को जैव विविधता कहा जाता है। हमारे चारों और पाये जाने वाले जीव-जंतु तथा वृक्ष तथा सूक्ष्म जीव भी पारिस्थतिकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने का काम करते हैं। गुरू जम्भेश्वर जी ने इसी पर प्रकाश डाला है।
    उनके सिद्धांतों पर चलते हुए उन्नीस सौ पिचानवे (1995) में आपके इस विश्वविद्यालय की शुरूआत हुई थी और आज वही संस्थान देश व दुनिया में अपनी दूरस्थ और निकटस्थ शिक्षा का प्रसार कर रहा है।
    आज आपके विश्वविद्यालय में पूर्व छात्र भी उपस्थित हुए हैं, जिनमें पूर्व आईएएस अधिकारी श्रीमती सुमेधा कटारिया पूर्व छात्र संघ की अध्यक्ष हैं।
    यह विश्वविद्यालय के लिए सम्मानजनक विषय है। दूरस्थ शिक्षा में पीसीपी को भी ऑनलाईन करना सराहनीय कदम है। जैसा कि मुझे बताया गया है गत पच्चीस वर्षों के दौरान दूरस्थ शिक्षा के तहत लगभग अस्सी हजार विद्यार्थियों को डिग्रियां वितरित की गई हैं।
    आप अपने विश्वविद्यालय के नाम में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शब्द को सार्थक करते हुए विज्ञान, फार्मेसी, प्रौद्योगिकी और प्रबंधन विषयों में अनुसंधान से प्रकाशन तक 58 नियमित पाठ्यक्रमांे तथा 17 दूरस्थ कार्यक्रमों का सराहनीय संचालन कर रहे हैं।
    आपने नियमित, ऑनलाइन, दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं के माध्यम से शैक्षणिक विकास के एक मॉडल का नेतृत्व किया है। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के माध्यम से पूर्ण ऑनलाइन कार्यक्रम चलाने वाला आपका गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय बन गया है।
    दूरस्थ शिक्षा का इतिहास कोई नया नहीं है। सबसे पहले शिकागांे विश्वविद्यालय द्वारा अठारह सौज में इसकी शुरूआत की गई, जिसमें अध्यापक और विद्यार्थी दूर-दूर रह कर शिक्षा आदान-प्रदान करते थे। इसके बाद दुनिया के अनेक विश्वविद्यालयों में इसका रूझान आरम्भ हुआ, जो कि सफल रहा।
    लेकिन भारत में यह सुविधा सबसे पहले उन्नीस सौ बासठ ;1962द्ध में दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने विद्यार्थियों को प्रदान की। इसके बाद उन्नीस सौ बैयासी ;1982द्ध में पहला ओपन बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय, हैदराबाद में शुरू हुआ तथा उन्नीस सौ पिचासी ;1985द्ध में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ओपन विश्वविद्यालय (प्ळछव्न्) की शुरूआत हुई। परन्तु आजकल देश के अनेक विश्वविद्यालयों ने दूरस्थ शिक्षा का प्रसार करना शुरू कर दिया।
    आज दूरस्थ शिक्षा अधिकतर लोगों की रूची के साथ-साथ आवश्यकता भी बन गई है। इससे बच्चों के जीवन में अनेक सकारात्मक पहलु शामिल हुए है। इससे कामकाजी लोगों, कम खर्च में पढ़ाई पूरी करने की चाह रखने वाले विद्यार्थियों को समय बचाने में सहायता मिलती है।
    इतना ही नही, विद्यार्थी स्व-अध्ययन को प्राथमिकता देते है और दूसरों की तुलना में अधिक सीखना चाहते है। इससे समय और धन दोनों की बचत होती है। इसके विपरित दूरस्थ शिक्षा ग्रहण करने वाले कुछ विद्यार्थियों में आत्म-प्रेरणा, संचार कौशल तथा व्यवहारिक ज्ञान की कमी भी देखने को मिलती है, जिस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
    आपका विश्वविद्यालय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़ा है, इसलिए यह समझना आवश्यक है कि दुनिया विज्ञान, सूचना और प्रौद्योगिकी का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है। इसमंे आपको अपडेट रहने और नई चीजों को समझने की आवश्यकता है और संस्थान को नई खोजों पर विशेष ध्यान देना होगा।
    इसके अलावा, केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाया जा रहा है। देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को पूरे देश में दो हजार तीस (2030) तक लागू करने का लक्ष्य रखा है। इसमें जहां बच्चों को नैतिक मूल्यों पर बल दिया जाएगा, वहीं बच्चों में वैज्ञानिक चिंतन, तकनीकी ज्ञान तथा रोजगार सृजन की शिक्षा भी शामिल होगी।
    हरियाणा सरकार भी वर्ष दो हजार पच्चीस (2025) तक राज्य में पूर्णतः नई शिक्षा नीति लागू कर दी जाएगी। इससे बच्चों को एक ही मंच पर यूजी से पीजी तक शिक्षा प्राप्त होगी। इसके साथ ही नई शिक्षा नीति में आपको अब एक ही समय में डनसजप म्दजतलए डनसजप म्गपज क्महतमम की सुविधा भी होगी। हरियाणा, ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
    इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की आवश्यकता हैं तथा सभी विश्वविद्यालयों में प्लेसमैंट सैल भी बनाए जाने चाहिए ताकि युवाओं को रोजगार के अवसरों व उनकी सही जानकारी प्राप्त हो सके। इस नीति के तहत विश्वविद्यालय को भारतीय राष्ट्रीय मूल्यांकन प्रत्यायन परिषद से ‘ए‘ ग्रेड प्राप्त होना सराहनीय है।
    विश्वविद्यालय के उत्कर्ष में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय का अहम योगदान रहा है । इसके लिए मैं एक बार फिर आपकी उत्कृष्ट उपलब्धियों व रजत जयंती अवसर पर बधाई देता हूं।
    अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि आपको अपने क्षेत्र में काम करने के लिए कड़ी मेहनत और सही दिशा की आवश्यकता है। इसके लिए विद्यार्थियों को मेहनत स्वयं करनी होगी और मार्गदर्शन विश्वविद्यालय प्राप्त करवाएं, तो वह दिन दूर नहीं होगा जब आपके विद्यार्थी देश में ही नही बल्कि दुनिया में अपना नाम रोशन करेंगे। इसके लिए मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।
    धन्यवाद
    जयहिन्द-जय हरियाणा!
    कृष्ण आर्य पीआरओ