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    आत्महत्या रोकथाम व जागरूकता कार्यक्रम वेबिनार

    Publish Date: अगस्त 6, 2021

    सबसे पहले मैं स्पन्दना ईडा इंटरनेशनल फाउन्डेशन का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ। जिन्होंने एक बहुत ही ज्वलन्त समस्या यानि ‘‘आत्महत्या की रोकथाम व जागरूकता‘‘ विषय पर वेबिनार का आयोजन किया है। साथ ही साथ अतिथिगण का भी आभार व्यक्त करता हूँ जो इस महत्वपूर्ण वेबिनार से जुड़े हैं।
    मुझे विश्वास है कि आज के इस वेबिनार में सभी बुद्धिजीवियों के वक्तव्यों एवं विचारों से जो निष्कर्ष सामने आएगें, ये निष्कर्ष समाज से आत्महत्या की प्रवृति की रोकथाम के लिए रामबाण साबित होगें।
    आज समाज में विशेष रूप से युवा पीढ़ी के दिमाग में भौतिकवाद का प्रभाव दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है, जो चिन्ताजनक भी है और चिन्तनीय भी है। भौतिकवाद और प्रतिस्पर्धा के चलते मनुष्य तनाव का शिकार हो रहा है। जो व्यक्ति तनाव को मैनेज कर लेते हैं वे जीवन जीना सीख जाते हैं, जो तनाव को मैनेज नहीं कर पाते वे नकारात्मक दिशा में चल जाते हैं। नकारात्मकता ही आत्माहत्या का कारण बनती है। आत्महत्या के अन्य कारणों की बात की जाए तो व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में छोटी-छोटी बाते घर कर जाती है, जो जीवन की दिनचर्या का हिस्सा होती है जैसे- घरेलू कलह, आपसी झगड़े, मन-मुटाव, कैरियर से संबधित चिंता, जीवन साथी के साथ एडजस्टमैंट न होना, लेकिन ये सारी समस्याएं अस्थाई हैं। इन सभी समस्याओं से पार पाने के लिए व्यक्ति को सहनशीलता से आगे बढ़ना होगा। जीवन में निश्चित रूप से समाधान होता है।
    मेरा ये मानना है कि जो व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है उसके जीवन में तनाव होता है, क्योंकि तनाव के बिना तरक्की नहीं है। आज विकसित देशों में भौतिकवाद प्रभावी होने के कारण अधिक तनाव के चलते आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि दूनिया में 40 सैकंडों में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। इस प्रकार से मौतों का 10वां बड़ा कारण आत्महत्या है। विश्वभर की बात की जाए तो 2016 में एक लाख लोगों में 10.5 लोगों ने खुदखुशी की है। आज विश्व में दूर्घटनाओं, हत्याओं, आतंकी घटनाओं से हाने वाली मौतों में सबसे अधिक मृत्यु आत्महत्या से हो रही हैं।
    यह पूरी दूनिया व समाज के लिए चिंताजनक है। स्पन्दना ईडा इंटरनेशनल फाउन्डेशन ने इस चिंताजनक विषय पर फोकस किया है। इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन से ही समाज की इस समस्या का निश्चित रूप से समाधान निकल सकेगा। यह विकराल समस्या भौतिकवादी व सुविधावादी युग की देन है।
    इन सबके साथ-साथ विश्व में नशा भी आत्म हत्याओं का एक बड़ा कारण रहा है। नशा व्यक्ति को शारीरिक रूप से कमजोर तो करता ही है मानसिक रूप से भी बीमार करता है, जिससे व्यक्ति बाद में हर तरह से परेशान होकर स्वयं को निरर्थक समझने लगता है और आत्महत्या की ओर बढ़ता है।
    आत्महत्या की घटनाएं समाज में बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। इस प्रवृति का जड़ मूल से तो खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन आत्महत्या से होने वाली मौतों को जरूर कम किया जा सकता है। इसके लिए सरकार भी प्रयास कर रही है।
    समाज मंे शांति व भाईचारे का वातावरण कायम होने से व्यक्ति को तनाव से बाहर निकाला जा सकता है। ये कार्य सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं, समाजसेवी संस्थाओं व धार्मिक संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान के माध्यम से किया जा सकता है। हम सब को समाज को नशामुक्त बनाने के लिए अधिक प्रयास करने होगें। नशामुक्त के लिए विशेषकर युवाओं को सामाजिक संगठनों से जोड़ना और प्रचार-प्रसार के सभी माध्यम अपनाने होगें। सरकार के स्तर पर और संस्थाओं द्वारा ज्यादा से नशामुक्ति केन्द्र खोलने और उन केन्द्रों में नशेड़ी व्यक्तियों का ईलाज करने पर जोर देना होगा। इसके साथ-साथ काउंसलिंग भी बढ़ानी होगी तथा इसके लिए ट्रेनर तैयार करके ऐसे लोगों तक पहुंचना है जो नशड़ी है या मानसिक रूप से बीमार है। मनोचिकित्सीय सुविधाएं बढ़ानी होगी। युवा शक्ति को चैनलाईज कर रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने पर जोर देना होगा।
    आज आई.टी. सोशल मीडिया का युग है। नशा रोकथाम व मानसिक बीमारियों की रोकथाम के लिए ज्यादा से ज्यादा सार्थक प्रयास की जरूरत है। अतः इस समस्या की रोकथाम के लिए जागरूकता हेतू सोशल मीडिया का भरपूर प्रयोग करना है।
    भौतिकता के इस युग में अध्यात्मिकता व योग का प्रचार-प्रसार करके लोगों को मानसिक रूप से मजबूत किया जा सकता है। मनुष्य के दिमाग को फिल्मी साहित्य भी प्रभावित करता है। फिल्म निदेशकों को चाहिए कि वे मनोबल बढ़ाने से संबंधित फिल्मों का निर्माण करें। पवित्र पुस्तकों के पठन-पाठन से भी जीवन को बेहद ढंग से मैनेज कर सकते हैं। सभी धर्मों के लोग अपनी-अपनी आस्थानुसार हर रोज पवित्र पुस्तकंेे पढ़े।
    तीन दिन पहले 03 अगस्त को मुझे एक ‘‘जियो गीता‘‘ के कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला। कार्यक्रम में गीता के विभिन्न पहलुओं पर गहन मंथन हुआ। इसी कार्यक्रम में गीता पर अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च जर्नल शोध पत्र का भी लोकार्पण किया। इस शोध पत्र में सभी स्कोलर ने गीता के महत्व पर प्रकाश डाला। मेरा मानना है कि गीता एक मात्र पुस्तक नहीं बल्कि जीवन जीने का मार्ग है। इसलिए हम सबको अच्छा साहित्य पढ़ने के साथ-साथ गीता का हर रोज अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि गीता में हर समस्या का समाधान है।
    आज के इस वेबिनार से जुड़कर मुझे अत्यंत खुशी हुई है। मैं एक बार फिर आयोजकों का विशेषकर स्पन्दना ईडा इंटरनेशनल फाउन्डेशन का धन्यवाद प्रकट करता हूँ।

    जय हिन्द।