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    आत्मनिर्भर भारत के लिए मानचित्रण प्रणाली विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन

    Publish Date: अक्टूबर 27, 2021

    आदरणीय श्री नवीन तोमर जी, महासर्वेक्षक भारत सरकार
    आदरणीय प्रो0 राजकुमार जी, कुलपति पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़
    आदरणीय वाईस एडमिरल अधीर अरोड़ा जी, मुख्य जल-सर्वेक्षक भारत सरकार
    डा0 शैलेश नायक जी, निदेशक एन.आई.ए.स बैंगलुरू
    श्री कृष्ण मोहन जी, अध्यक्ष, इंडियन नेशनल कार्टोग्राफी एसोसिएशन
    विश्वविद्यालय के आदरणीय प्रोफेसर साहेबान, प्राध्यपाकगण, प्रिय छात्रों, भाईयो-बहनों, पत्रकार व छायाकार बंधुओं। मैं इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता महसूस कर रहा हूँ। साथ ही मैं बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर सम्मेलन आयोजित करने के लिए आयोजकों को बधाई व शुभकामनाएं देता हूँ।
    विश्व में मानचित्रण का एक प्राचीन इतिहास रहा है। मानचित्रण प्रणाली के माध्यम से ही किसी भी देश के इतिहास और भौगोलिक स्थिति के बारे में जाना जा सकता है। इन्टरनेट व प्रौद्योगिकी के इस युग में पूरा विश्व डिजीटलीकरण का रूप ले चुका है। जिस कारण से विश्व बहुत छोटा दिखाई देने लगा है। ऐेसे में देश के विकास के लिए स्क्रीन मानचित्र और मुद्रित मानचित्र के साथ-साथ डिजीटल भौगोलिक डाटा के कार्य पर और अधिक शोध कार्य किए जाने से देश की प्रगति में और गति लाई जा सकती है।
    जैसा कि विदित है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी देश में ‘‘आत्मनिर्भर भारत’’ का नारा दिया है। इस नारे को साकार करने के लिए देश में ‘‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’’ शुरू किया गया है। जिसके तहत सुक्ष्म, लघु उद्योगों, किसानों, श्रमिकों और गरीबों के लिए दर्जनों योजनाओं व कार्यक्रमों की शुरूआत की गई हैं। इन योजनाओं में श्रमिकों और गरीबों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ-साथ किसानों की आय दोगुणी करना भी शामिल है। आज वैश्वीकरण का दौर है। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में वैश्वीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए विश्व के अन्य देशों से जुड़कर हमें अपने देश में संसाधनों का प्रयोग कर देश को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है।
    इसके लिए केन्द्र स्तर पर ‘‘भौगोलिक सूचना विज्ञान’’ का प्रयोग करके पूरे देश का मानचित्रण प्रणाली के तहत डिजीटलाईजेशन करके ही इन सभी योजनाओं पर प्रभावी रूप से कार्य किया जा सकता है। मानचित्र के डिजीटलाईजेशन के चलते कार्टोग्राफी के क्षेत्र में शिक्षा और शोध में काफी कार्य किया जाना है। इस कार्य के लिए देश में जी.आई.एस. पेशेवरों की मांग बढ़ेगी। इस कारण से हम कह सकते हैं कि मानचित्रण के क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार सम्भावनाएं भी हैं।
    आधुनिक भौगोलिक सूचना विज्ञान की (जी.आई.एस) मानचित्रण प्रणाली से विकास के अनेक रास्ते खुलने के साथ-साथ प्राकृतिक आपदांओं को भांपने और आपदा प्रबन्धन करने में मददगार साबित हो रही है।
    भौगोलिक सूचना विज्ञान (जी.आई.एस.) से इलैक्ट्रोनिक मानचित्रण, समुद्री चित्रकारी, आकाशीय मानचित्रण, ड्रोन मैपिंग तथा भू-स्थानिक डेटा तैयार करने में तेजी से काम हुआ है। देश के कईं राज्यों ने इस तकनीक का प्रयोग करते हुए अपने-अपने राज्यों की भूमि का ई-रिकॉर्ड तैयार कर लिया है।
    इन राज्यों में हरियाणा ने और आगे बढ़ कर कार्य किया है। प्रदेश की ‘‘हरियाणा बड़ा पैमाना मानचित्र परियोजना’’ को भारत सरकार ने भी अपनाया है। पूरे राज्य में 44 हजार 212 किलोवर्ग के क्षेत्र मंे बड़े पैमाने पर जी.आई.एस मानचित्र प्रणाली शुरू की जा चुकी है।
    हरियाणा की इस परियोजना के आधार पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वामित्व‘ परियोजना के रूप में एक राष्ट्रव्यापी योजना शुरू की है। मैं यहां जिक्र करना चाहूंगा कि हरियाणा में तो राजस्व सम्पदा के 1239 गांवों में मानचित्रण का कार्य पूरा भी कर लिया गया है।
    मानचित्रण के आधुनिकीकरण में भारतीय सर्वेक्षण विभाग व सर्वे ऑफ इण्डिया जैसी संस्थाओं ने जो कार्य किया वह बहुत ही सराहनीय है। आज इस महत्वपूर्ण विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है जो कि प्राकृतिक आपदा प्रबन्धन व विकास योजनाओं का प्रभावीकरण देने में बहुत ही महत्वपूर्ण है।


    इस सम्मेलन के लिए मैं इण्डियन नेशनल कार्टोग्राफी एसोसिएशन व पंजाब विश्वविद्यालय को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देता हूँ। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन में दिए गए वकतव्यों से बहुत ही सार्थक निष्कर्ष निकलकर सामने आएंगे जो आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे। इसी के साथ एक बार फिर मैं आप सब का आभार व्यक्त करते हुए सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूँ।
    जयहिन्द!