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    अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव सेमिनार, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र

    Publish Date: नवम्बर 29, 2022

    भारत की राष्ट्रपति माननीया श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी,
    आदरणीय श्री मनोहर लाल जी, मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार
    आदरणीय स्वामी गोविंद गिरि जी महाराज
    आदरणीय स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज
    आदरणीय डा0 शंकर प्रसाद शर्मा जी, नेपाल के राजदूत
    आदरणीय कंवर पाल जी, शिक्षामंत्री हरियाणा सरकार
    आदरणीय श्री नायब सिंह सैनी जी सांसद, कुरूक्षेत्र
    आदरणीय श्री सुभाष सुधा जी, विधायक, थानेसर
    श्री सोमनाथ सचदेवा जी कुलपति, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र
    उपस्थित विद्ववतजन, विशारद, मनीषी, गणमान्य महानुभाव, प्रिय छात्रों, भाईयो और बहनों, मीडिया के बंधुओं!
    मैं माननीय राष्ट्रपति महोदया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का धर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्र में पहुंचने पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। माननीय महोदया द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का उद्घाटन करने पर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूं। महोदया, भारतीय संस्कृति के इस बड़े महोत्सव का आपके कर-कमलों से आरम्भ होने से इसकी गरिमा कई गुणा बढ़ गई है।
    आपने यहां कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता के परिपेक्ष में विश्व शांति एवं सद्भाव‘‘ विषय पर आयोजित सेमीनार का शुभारम्भ करने की जो अनुकंपा की है, इस के लिए मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद व बधाई देता हूं।
    श्रीमद्भगवद्गीता जिसे सम्मान से गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, भारतीय धर्म, दर्शन और अध्यात्म का सार है। जो वेद ज्ञान नहीं पा सकते, दर्शन और उपनिषद् का स्वाध्याय नहीं कर सकते भगवद्गीता उनके लिए अतुल्य सम्बल है।
    जीवन के उस मोड़ पर जब व्यक्ति स्वयं को द्वन्द्वों तथा चुनौतियों से घिरा हुआ पाता है और कर्तव्य-अकर्तव्य के असमंजस में फंस जाता है भगवद्गीता उसका हाथ थामती है और मार्गदर्शन करती है, प्रोत्साहित करती है, रक्षा करती है, उत्थान करती है, सावधान करती है।
    आज श्रीमद्भगवद्गीता का भाव व अर्थ सही तरह से विश्व के सामने प्रस्तुत किया जाए तो यह विश्व को आतंकवाद जैसी बीमारी का समाधान दे सकता है। गीता के प्रभाव से विश्व में न कोई भी दुश्मन होगा न कोई दुर्भाव होगा।
    भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा भी है-
    अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
    निर्ममो निरहंकारः समदुरूखसुखः क्षमी ।।
    संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्र्चयः।
    मय्यर्पितमनोबुद्धिर्याे मद्भक्तः स मे प्रियः।।
    अर्थात वह व्यक्ति जो किसी भी प्राणी से घृणा, ईष्र्या या अहंकार का पालन-पोषण नहीं करता है और जो दयालु और करूणामय है, जो दर्द और सुख के सामने समान रहता है, जो सहिष्णु, आत्म-संयमित, अपने संकल्प में दृढ़ व भक्ति अभ्यास में स्थिर है और जिसका मन और बुद्धि मुझ पर केन्द्रित है, वह मेरा प्रिय भक्त है।
    देवीयों और सज्जनों!
    विश्व की सभी संस्कृतियाँ जीवन के किसी न किसी दर्शन पर आधारित हैं। भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित है। विश्व संस्कृति पर गीता के प्रभाव को बड़े-बड़े विद्वानों, विचारकों और वैज्ञानिकों ने माना है।
    जर्मन के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि जब मैं गीता पढ़ता हूं तो जो असीम आनन्द की प्रप्ति होती है वह किसी भी और ग्रंथ से नहीं होती। 1784 में पहली बार चाल्र्स विल्किंस द्वारा गीता का संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। इसके बाद गीता के 75 भाषाओं 1982 अध्याय प्रकाशित हो चुके हैं। यह गीता की विश्वव्यापी स्वीकृति को प्रमाणित करता है।
    विश्व जनमानस को भारतीय दर्शन और अध्यात्म से परिचित कराने वाले इस काव्य का अध्ययन आज आॅक्सफोर्ड, हार्वर्ड और बर्कले जैसे विश्व के नामचीन विश्वविद्यालयों में किया जा रहा है।
    इस प्रमाणिकता से यह सिद्ध होता है कि पूरे विश्व साहित्य में भगवदगीता के समान ऊँचा और प्रेरक ग्रंथ कोई नहीं है। गीता किसी एक मजहब का ग्रंथ नहीं है। यह एक पवित्र ग्रंथ है जो मनुष्य को कर्तव्य, निष्ठा, ईमानदारी और कर्म करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    गीता पाठ अध्ययन से मनुष्य को जीवन में सकारात्मकता, कर्तव्यपरायण और कर्म करने की प्रेरणा मिलती है जिससे समाज में जातिवाद, छुआछूत, नशा, दुराचार, सामाजिक कुरितियों व सभी प्रकार की बुराईयों से छुटकारा मिलता है और मन को निर्मल बनाते हैं। निर्मल मन से व्यक्ति की परिवार व समुदाय के बारे में साकारात्मक धारणा बनती है जो मानवता को विश्व शान्ति की ओर ले जाती है।
    गांधी जी का कहना था कि ‘जब कभी संदेह मुझे घेरते हैं और निराशामय में होता हूं, मैं गीता में एक उम्मीद की किरण देखता हूं। इससे मुझे आनन्द की प्रप्ति होती है। तब मैं कष्टों का उपहार करके आगे बढ़ता हूँ।
    देवीयों और सज्जनों!
    हम भाग्यशाली हैं कि भाारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागु की गई है। इस शिक्षा नीति में गीता के सारांश के आधार पर नैतिक मूल्यों, नेतृत्व, कर्म, कर्तव्य, जिम्मेवारी, प्रगति का समावेश किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरी तरह से लागू करने की जिम्मेवारी विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों की है। सही मायनों में हमारे शिक्षक और युवा ही हैं जो भारत को विश्व गुरू बनाने का मार्ग तय करेंगें।
    जरूरत इस बात की है कि गीता के प्रति आम-जन का आकर्षण और उबारना है। इसके साथ-साथ बच्चों, विद्यार्थियों और आमजन मानस में गीता के पठन-पाठन की संस्कृति और अधिक विकसित करनी है। जिससे हम विश्वभर में गीता का सन्देश पहुंचा पा रहे हैं। मुझे खुशी है कि पिछले दिनों कनाडा के ब्रैम्पटन शहर नगर निगम द्वारा श्रीमद्भगवतगीता के नाम पर पार्क विकसित किया गया है।
    गीता ज्ञान से मानव के चरित्र को बल मिलेगा। चरित्रवान लोग राजनितिज्ञ, उद्योगपति, वैज्ञानिक और शिक्षक बनेंगे। ऐसे लोग इतिहास बनाते और इतिहास बदलते हैं। वे लोग विश्व शांति व सद्भाव के अग्रदूत होगें जिससे भारतवर्ष फिर से विश्वगुरू होगा।
    मैं आशा करता हूं कि इस संगोष्ठी में विद्वान, विशारद, मनीषी, विचारक गीता की सार्वभौम प्रासंगिकता को आज के ‘‘गीता परिप्रेक्ष्य में विश्व शांति व सद्भाव‘‘ को परिलक्षित करेगें, जिससे विश्व में शांति, सद्भाव बढ़ेगा और भारत विश्व संस्कृति का सिरमौर होगा।
    एक बार फिर मैं भारत की राष्ट्रपति माननीया श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी का प्रदेश की जनता की तरफ से हार्दिक अभिनंदन करते हुए कोटि-कोटि धन्यवाद करता हूं।
    धन्यवाद। जय हिन्द-जय गीता।